अजब गजब

jharkhand deoghar trikut ropeway accident case report come but it found no one responsible । ‘एक बुलबुले की वजह से हुआ हादसा’, तो क्या देवघर रोपवे हादसे का कोई जिम्मेदार नहीं?

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देवघर रोपवे हादसा

रांची: झारखंड के देवघर की त्रिकूट पहाड़ी पर बीते साल 10 अप्रैल को हुए रोपवे हादसे का एक साल गुजर गया है। इसकी दर्दनाक यादें अब भी लोगों के जेहन से नहीं उतरी हैं, लेकिन इसे लेकर आज तक किसी की जिम्मेदारी तय नहीं हो सकी। आप इस बात पर चौंक सकते हैं कि इसकी जांच के लिए बनाई गई हाई लेवल कमेटी ने सरकार को जो रिपोर्ट सौंपी है, उसमें कहा गया है कि यह हादसा हाइड्रोजन की वजह से बने बुलबुले की वजह से हुआ।

झारखंड हाईकोर्ट ने नए सिरे से रिपोर्ट दाखिल करने का दिया निर्देश


जांच रिपोर्ट में मेटलर्जिकल जांच का हवाला देते हुए बताया गया है कि रोपवे का संचालन जिस इंजन के जरिए हो रहा था, उसके शैफ्ट में हाइड्रोजन का एक बुलबुला बन गया था। इस बुलबुले की वजह से शॉफ्ट टूटा और इसके बाद लोहे से बनी रोप रील से उतर गई। इसके बाद एक ट्रॉली नीचे गिर पड़ी और बाकी 23 ट्रॉलियां हवा में लटकी रह गईं। यह जांच रिपोर्ट साढ़े चार सौ पन्नों में है और इसमें लगभग 1200 पन्ने के एन्क्लोजर्स भी लगाए गए हैं। इधर झारखंड हाईकोर्ट ने पिछले दिनों इस मामले में हुई सुनवाई के दौरान इस जांच रिपोर्ट पर असंतोष जाहिर करते हुए सरकार को नए सिरे से रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया है।

तीन लोगों की मौत, डेढ़ दर्जन से ज्यादा हुए थे जख्मी

बता दें कि झारखंड के प्रसिद्ध धार्मिक पर्यटन केंद्र देवघर के त्रिकूट पर्वत पर बीते साल 10 अप्रैल की शाम लगभग 6 बजे रोपवे का एक तार टूट जाने की वजह से तीन लोगों की मौत हो गई थी, जबकि डेढ़ दर्जन से ज्यादा लोग जख्मी हो गए थे। रोपवे की 24 में से 23 ट्रॉलियों पर सवार कुल 78 लोग पहाड़ी और खाई के बीच हवा में फंस गए थे। इनमें से 28 लोगों को उसी रोज सुरक्षित निकाल लिया गया था, जबकि 48 लोग 36 से लेकर 72 घंटे तक बगैर कुछ खाए-पिए पहाड़ी और खाई के बीच हवा में लटके रह गए थे।

deoghar ropeway accident

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देवघर रोपवे हादसा

वायुसेना, एनडीआरएफ, आईटीबीपी और आर्मी के लगातार 45 घंटे के जोखिम भरे ऑपरेशन के बाद हवा में लटके इन 48 में से 46 लोगों को बचा लिया था, जबकि रेस्क्यू के दौरान दो लोगों की मौत हो गई थी। एक व्यक्ति की मौत ट्रॉली गिरने से पहले ही हो गई थी। तब यह बात सामने आई थी कि रोपवे चलाने वाली कंपनी ने न तो मापदंडों के अनुसार इसका मेंटेनेंस किया था और न ही सेफ्टी ऑडिट में सामने आई खामियों को दूर करने की जरूरत समझी थी। हादसे से तीन हफ्ते पहले ही एक सरकारी एजेंसी ने 1,770 मीटर लंबे इस रोपवे का सेफ्टी ऑडिट किया था और इसमें करीब 24 खामियां बताई थीं। इन्हें नजरअंदाज कर रोपवे का संचालन धड़ल्ले से किया जा रहा था।

70 दिन बाद घटनास्थल पर जांच के लिए पहुंची थी कमेटी

हादसे के बाद झारखंड सरकार ने 19 अप्रैल को राज्य के वित्त सचिव अजय कुमार सिंह की अध्यक्षता में जांच समिति के गठन का नोटिफिकेशन जारी किया था। नोटिफिकेशन में कहा गया था कि कमेटी दो महीने में रिपोर्ट सरकार को सौंपेगी। सच यह है कि जिस कमेटी को दो महीने यानी 60 दिनों में रिपोर्ट देनी थी, वह पूरे 70 दिन बाद घटनास्थल पर जांच के लिए पहुंची थी। बहरहाल, जो जांच रिपोर्ट आई है उसमें हाइड्रोजन के एक बुलबुले को इसकी वजह बताया गया है, लेकिन न तो किसी की जिम्मेदारी तय की गई है और न ही किसी को इसके लिए कसूरवार माना गया है।

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एडवोकेट अरविन्द जैन

संपादक, बुंदेलखंड समाचार अधिमान्य पत्रकार मध्यप्रदेश शासन

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