कभी गैराज में झाड़ू-पोंछा लगाते थे होंडा मोटर्स के फाउंडर साइचिरो होंडा, कैसे बनाई अरबों की कंपनी, जानिए

नई दिल्ली. आज होंडा दुनिया की सबसे बड़ी ऑटोमोबाइल कंपनियों में से एक है. मोटरसाइकिल बनाने और बेचने में यह दुनिया की नंबर वन कंपनी है. लेकिन, क्या आपको पता है कि होंडा की नींव रखने वाले साइचिरो होंडा एक बेहद गरीब परिवार से संबंध रखते थे. साइचिरो के पिता साइकिल रिपेयर करते थे और कपड़ा बुनती थी. बिना किसी प्रोफेशनल डिग्री के ही साइचिरो ने अपनी मेहनत और दूरदर्शिता के दम पर होंडा जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनी को खड़ा कर दिया. उनकी कहानी सिखाती है कि कठिनाइयों के बावजूद, अगर हौसला और मेहनत हो, तो कोई भी सपना असंभव नहीं है. उनकी जिंदगी प्रेरणा, कठिनाइयों से जूझने और असफलताओं को सफलता में बदलने की मिसाल है. आज हम आपको साइचिरो होंडा के संघर्ष और सफलता के बारे में बताएंगे.
साइचिरो होंडा का जन्म 1906 को जापान के एक छोटे से गांव शिजुओका में जन्में सोइचिरो के पिता गिहेइ होंडा एक गरीब लुहार थे. वे साइकिल रिपेयर का काम भी करते थे. साइचिरो की रुचि पढ़ाई-लिखाई में नहीं थी. वे बचपन से ही मशीनों और तकनीक के प्रति आकर्षित थे. यही वजह थी कि उन्होंने 16 साल की उम्र में पढाई छोड़ दी और पिता की दुकान पर काम करने लगे.
16 साल की उम्र में छोड़ा घर
एक अखबार में ‘आर्टशोकाई’ कार कंपनी में मैकेनिक की नौकरी का विज्ञापन देख साइचिरो होंडा टोक्यो चले गए. लेकिन, उनकी उम्र और कद-काठी कपंनी के मालिक ने उन्हें मैकेनिक की नौकरी देने से मना कर दिया. गैराज में झाड़ू-पोंछा लगाने का काम सौंपा. होंडा ने वहां काम शुरू कर दिया. झाड़ू-पोंछा करने के साथ ही होंडा वहां काम कर रहे मैकेनिकों की मदद करते और काम सीखते. कुछ समय बाद जापान में जोरदार भूकंप आया. कंपनी के कई मैकेनिक अपने घर चले गए. इससे साइचिरो को कारें ठीक करने का मौका मिल गया. उनकी लगन को देखते हुए कंपनी के मालिक ने उन्हें कंपनी की ही दूसरे गैराज का जिम्मा दे दिया.
वहां रेसिंग कारों की मरम्मत होती थी. साइचिरो होंडा ने वहां कंपनी के मालिक के साथ मिलकर रेसिंग कार डिजाइन की. पहली रेसिंग कार ज्यादा खास नहीं थी. लेकिन, दूसरी ने कमाल कर दिखाया और 1924 में हुई जापानी मोटर कार रेस में पहला स्थान पाया. इसके बाद वे कई साल तक आर्ट शोकाई कंपनी में काम करते रहे.
भयानक हादसा और नई शुरुआत
1936 में एक रेसिंग प्रतियोगिता के दौरान हुए हादसे में साइचिरो होंडा गंभीर रूप से घायल हो गए और तीन महीने तक अस्पताल में भर्ती रहे. ठीक होने के बाद उन्होंने आर्टशोकाई कंपनी के मालिक को पिस्टन रिंग बनाने के लिए एक नई कंपनी शुरू करने का सुझाव दिया, लेकिन यह प्रस्ताव ठुकरा दिया गया. इसके बाद होंडा ने नौकरी के साथ ही अपने एक दोस्त के साथ मिलकर पिस्टन रिंग बनाने की कंपनी स्थापित कर ली.
पहला प्रोडक्ट हुआ फेल
1939 में होंडा ने आर्टशोकाई छोड़ दी और कई कंपनियों से पिस्टन रिंग बेचने के लिए संपर्क किया. टोयोटा ने उनका प्रोडक्ट खरीदा, लेकिन गुणवत्ता परीक्षण में यह असफल रहा और रिजेक्ट हो गया. यह एक बड़ा झटका था. लेकिन होंडा ने हार नहीं मानी. उन्होंने सुधार कर एक बेहतर पिस्टन रिंग बनाई, जिसे टोयोटा ने आखिरकार स्वीकार कर लिया.
दूसरे विश्व युद्ध में फैक्ट्री तबाह
होमामातसु शहर में पिस्टन रिंग बनाने की फैक्ट्री स्थापित करने के बाद होंडा ने 2,000 कर्मचारियों के साथ एक ऑटोमेटेड प्लांट शुरू किया. लेकिन दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अमेरिकी हवाई हमले में उनकी फैक्ट्री पूरी तरह नष्ट हो गई. इसके बाद आए भूकंप से उनकी दूसरी फैक्ट्री भी ढह गई. होंडा ने अपनी बची हुई मशीनें टोयोटा को 45,000 येन में बेच दीं और 1946 में ‘होंडा टेक्निकल रिसर्च इंस्टीट्यूट’ की स्थापना की.
इंजन वाली साइकिल से सफलता की नई कहानी
युद्ध के बाद जापान की स्थिति बेहद खराब थी और परिवहन के लिए अधिकतर लोग साइकिल का इस्तेमाल कर रहे थे. साइचिरो होंडा ने जनरेटर के इंजन को साइकिल पर फिट कर दिया, जो लोगों को बेहद पसंद आया. मांग बढ़ने पर उन्होंने टू-स्ट्रोक इंजन तैयार किया और 1949 में अपनी कंपनी का नाम ‘होंडा मोटर्स’ रख दिया.
Super Cub से मिली जबरदस्त सफलता
इसके बाद साइचिरो होंडा ने मोटरसाइकिल का उत्पादन शुरू किया. उनकी पहली बाइक ज्यादा सफल नहीं रही, लेकिन बाद में उन्होंने ‘सुपर Cub’ नाम से एक हल्की और ईंधन-किफायती बाइक लॉन्च की, जिसने बाजार में धमाल मचा दिया. 1960 के दशक तक उन्होंने अमेरिका में भी कारोबार फैलाया और 1964 तक अमेरिका की सड़कों पर चलने वाली हर दूसरी बाइक होंडा की थी.
कार निर्माण में कदम और होंडा सिविक की सफलता
1963 में साइचिरो होंडा ने पहली कार ‘T360 मिनी ट्रक’ बनाई. हालांकि उनकी शुरुआती कारें ज्यादा सफल नहीं हुईं, लेकिन होंडा सिविक ने उनकी किस्मत बदल दी. यह हल्की और किफायती फैमिली कार थी, जिसने जापान ही नहीं, बल्कि अमेरिका में भी धूम मचा दी. इसके बाद होंडा अकोर्ड ने बाजार में तहलका मचा दिया.
दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी कार कंपनी बनी होंडा
1980 के दशक तक होंडा मोटर्स दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी कार निर्माता कंपनी बन चुकी थी. साल 1991 में साइचिरो होंडा का निधन हो गया. उस समय होंडा मोटर्स की नेट वर्थ 92 बिलियन डॉलर थी. उनके नाम 150 से अधिक पेटेंट दर्ज थे.
बच्चों को नहीं दी कंपनी की जिम्मेदारी
साइचिरो होंडा के तीन बच्चे थे, लेकिन उन्होंने कंपनी की जिम्मेदारी किसी पारिवारिक सदस्य को देने के बजाय एक कुशल पेशेवर को सौंपना बेहतर समझा. उनका यह फैसला सही साबित हुआ और आज भी होंडा मोटर्स दुनिया की अग्रणी ऑटोमोबाइल कंपनियों में से एक बनी हुई है.
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