देश/विदेश

क्या है रक्षा मंत्रालय की वो योजना, जिसके तहत स्थानीय निकायों को सौंपी जा रहीं सैन्य छावनियां, क्या पड़ेगा असर

Cantonments to be Handed Over to Civil Authorities: केंद्र की मौजूदा सरकार एक-एक कर उन सभी परंपराओं को बदल रही है, जिन पर ब्रिटिश उपनिवेश की छाप थी. इसी सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए केंद्र सरकार ने नागरिक क्षेत्रों को रक्षा क्षेत्रों से अलग करने की योजना बनाई थी. इसके तहत देश की 13 सैन्य छावनियों की संपत्तियों के अधिकार स्थानीय नगर निगमों, नगर पालिकाओं को ट्रांसफर किए जाएंगे. इसका अर्थ यह है कि सैन्य स्टेशन सेना के पास रहेंगे, जबकि उनके बाहर का क्षेत्र राज्य सरकार को ट्रांसफर कर दिया जाएगा. सरकार इस प्रक्रिया को आगे बढ़ा रही है. 

फिलहाल भारतीय सेना शहरी स्थानीय निकायों को दस छावनियां देने के लिए तैयार है. क्योंकि तीन सेना कमानों ने मोदी सरकार द्वारा लिए गए नीतिगत फैसले के अनुसार कागजी कार्रवाई लगभग पूरी कर ली है. जिन छावनियों का शहरी स्थानीय निकायों में विलय किया जाएगा वे हैं देहरादून, देवलाली, नसीराबाद, बबीना, अजमेर, रामगढ़, मथुरा, शाहजहांपुर, क्लेमेंट टाउन और फतेहगढ़.

ये भी पढ़ें- क्या है वो खदान जो पाकिस्तान को बना सकती है मालामाल, इस खजाने पर सऊदी अरब की नजर

हैंड ओवर पूरा होने के करीब
डेक्कन क्रॉनिकल की एक रिपोर्ट के अनुसार, सेना के सूत्रों ने कहा, “छावनी क्षेत्रों को हटाने की प्रक्रिया रक्षा मंत्रालय द्वारा मार्च में जारी किए गए ड्रॉफ्ट नोटिफिकेशन के साथ शुरू हुई.” उन्होंने कहा कि नोटिफिकेशन में आठ सप्ताह का समय दिया गया था. भारतीय सेना की मध्य कमान, दक्षिण पश्चिमी कमान और दक्षिणी कमान उत्तराखंड, महाराष्ट्र, राजस्थान, झारखंड और उत्तर प्रदेश सरकारों के साथ हैंड ओवर पूरा करने के करीब हैं.

क्यों बनाई गई ये योजना
रक्षा मंत्रालय ने देश भर की 62 छावनियों को ‘पुरातन औपनिवेशिक विरासत’ करार देते हुए उन्हें खत्म करने की योजना बनाई है. छावनी के भीतर सैन्य क्षेत्रों को सैन्य स्टेशन में बदल दिया जाएगा, जबकि नागरिक क्षेत्रों को स्थानीय नगर निगम को सौंप दिया जाएगा. सरकार का मानना है कि छावनी औपनिवेशिक विरासत का हिस्सा है और वर्तमान व्यवस्था में इन क्षेत्रों के निवासी राज्य सरकार की कुछ कल्याणकारी योजनाओं से वंचित रह जाते हैं.

ये भी पढ़ें- इजरायल जब बना तो अल्‍पसंख्‍यक थे यहूदी, फिर 95 लाख की आबादी में 70 लाख कैसे हो गए

कई बार उठता रहा है ये मुद्दा
छावनियों में नागरिक क्षेत्र और सैन्य क्षेत्रों को अलग-अलग करने का मुद्दा स्वतंत्रता के बाद के दौर से ही चर्चा में रहा है. 1948 में कांग्रेस के दिग्गज नेता एसके पाटिल की अध्यक्षता वाली एक कमेटी ने छह छावनियों में नागरिक क्षेत्रों को अलग करने की सिफारिश की थी, लेकिन इसके खिलाफ जनता के विरोध का हवाला देते हुए यह योजना रद्द कर दी गई थी. उसके बाद से यह मुद्दा कई मौकों पर सामने आया. लेकिन इससे पहले किसी सरकार ने इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया. अतीत में संसदीय पैनल ने गैर-सैन्य उद्देश्यों, जैसे कि छावनी के नागरिक क्षेत्रों में नागरिक व्यय के लिए रक्षा निधि के उपयोग पर चिंता जताई थी.

बिना किसी चार्ज के ट्रांसफर होंगे अधिकार
सरकार ने कहा है, “क्षेत्र में नागरिक सुविधाएं और नगरपालिका सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए बनाई गई सभी परिसंपत्तियों के स्वामित्व के अधिकार राज्य सरकार/राज्य नगर पालिकाओं को बिना किसी चार्ज के ट्रांसफर किए जाएंगे. छावनी बोर्डों की परिसंपत्तियां और देनदारियां राज्य नगर पालिकाओं को ट्रांसफर की जाएंगी.” पत्र में यह भी स्पष्ट किया गया है कि सरकार जहां लागू होगा, वहां स्वामित्व का अधिकार बरकरार रखेगी.

ये भी पढ़ें- कंधार हाईजैक के बदले छोड़े गए थे 3 आतंकवादी, जानें कहां हैं अब और क्या कर रहे

रक्षा मंत्रालय के पास सबसे ज्यादा जमीन
रक्षा मंत्रालय देश का सबसे बड़ा भूस्वामी है. इस मंत्रालय के पास देश भर में करीब 18 लाख एकड़ जमीन है. देश में वर्तमान में 62 अधिसूचित छावनियां हैं. इनका कुल क्षेत्रफल 1.61 लाख एकड़ है. फिलहाल सभी नागरिक और नगरपालिका मामलों को सैन्य छावनी बोर्ड संभालते हैं.

Tags: British Raj, Defence ministry, Indian army, Modi government


Source link

एडवोकेट अरविन्द जैन

संपादक, बुंदेलखंड समाचार अधिमान्य पत्रकार मध्यप्रदेश शासन

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!