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अंग्रेजों के जमाने की नकल मांग नामांतरण प्रकरण किए जा रहे निरस्त: तहसील में नामांतरण में हो रहे भ्रष्टाचार की शिकायत के बाद भी रोक नहीं

छतरपुर। मप्र में राजस्व विभाग में नामांतरण की प्रक्रिया पूरे प्रदेश में एक जैसी है। परंतु छतरपुर जिले में नामांतरण करने के लिए वर्ष 1939 और 40 की नकल मांगी जाती है उसमें यदि आवेदक का नाम है तो उसका नामांतरण किया जाएगा और यदि 39-40 में नाम नहीं है तो नामांतरण प्रकरण निरस्त कर दिया जाता है। मजेदार बात ये है कि भारत को आजादी 1947 में मिली थी और उसके बाद मप्र का 1956 में गठन हुआ था और राजस्व भू संहिता 1958 में लागू की गई थी। परंतु छतरपुर जिले अंग्रेजों के जमाने की नकलें मंगाई जा रही हैं जो कि जिले के राजस्व अधिकारियों ने अपनी आय का साधन बना लिया है। कई वकीलों ने इस संबंध में उच्च न्यायालय में एक याचिका भी दायर कर दी है। छतरपुर तहसील में सैकड़ों प्रकरण 1939/40 की नकल न उपलब्ध कराने के कारण निरस्त कर दिए गए हैं। जबकि उन्हीं तहसीलों में वर्ष 1958 एवं 59 की नकल के आधार पर नामांतरण धड़ल्ले से किए जा रहे हैं। तहसीलदारों के ऊपर गंभीर आरोप लगाते हुए वकीलों ने कहा कि जिन नामांतरणों में अच्छा फीलगुड होता है उन प्रकरणों का नामांतरण आसानी से हो जाता है। तत्कालीन कलेक्टर शीलेन्द्र सिंह ने भी कई महीनों तक नामांतरणों पर रोक लगा रखी थी परंतु राजस्व मंत्री गोविंद सिंह राजपूत के फटकार के बाद नामांतरणों की प्रक्रिया छतरपुर तहसील में शुरु की गई थी। मुख्यमंत्री की बीसी में तत्कालीन कलेक्टर को मुख्यमंत्री ने डांट लगाकर नामांतरण करने के निर्देश दिए थे। तब कहीं जाकर छतरपुर तहसील में 11 हजार नामांतरणों में से 9 हजार नामांतरण आनन फानन में तहसीलदारों केद्वारा भारी रकम वसूलकर किए गए हैं। जिन नामांतरणों में हजार और 1200 रुपए लगते थे उनमें अब 5 से 10 हजार की वसूली की जा रही है। भारतीय जनता पार्टी के दिग्गज नेता भी तहसील में नामांतरण में हो रहे भ्रष्टाचार की शिकायत होने के बाद भी इन पर रोक नहीं लगा पाए। फिलहाल छतरपुर तहसील में नामांतरण में भारी भ्रष्टाचार हो रहा है

एडवोकेट अरविन्द जैन

संपादक, बुंदेलखंड समाचार अधिमान्य पत्रकार मध्यप्रदेश शासन

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