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खैबर पख्तूनख्वा: भारत में विलय की मांग और ब्रिटिश राज का खेल

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हाल ही में इस तरह की खबरें आईं कि 1947 में जब भारत और पाकिस्तान का विभाजन हुआ तो बलूचिस्तान ने भारत में विलय की इच्छा जताई थी. इसमें ज्यादा दम नहीं था लेकिन खैबर पख्तूनख्वा हर हाल में भारत में मिलना चाहता था, फ…और पढ़ें

हाइलाइट्स

  • 1947 में खैबर पख्तूनख्वा भारत में विलय चाहता था.
  • ब्रिटिश सरकार ने जनमत संग्रह में चालाकी की.
  • खैबर पख्तूनख्वा में अब भी विद्रोही गुट सक्रिय हैं.

जब अंग्रेज भारत को आजादी दे रहे थे तो उन्होंने ऐसा करते करते भी खेल कर गए. उन्होंने इस देश का बंटवारा कर दिया. तब नए देश के तौर पर उदय हुए पाकिस्तान की कई रियासतें और इलाके साफतौर पर भारत में विलय होने की आवाज उठा रहे थे. अफगानिस्तान की सीमा से सटे पाकिस्तान के तीसरे बड़े प्रांत खैबर पख्तूनख्वा के लोग किसी भी हाल में भारत में विलय चाहते थे लेकिन तब एक ऐसा बड़ा खेल हुआ कि उन्हें मन मारकर पाकिस्तान के साथ जाना पड़ा.

जानेंगे कि क्या था ये खेल और किस तरह से तब खैबर पख्तूनख्वा में भारत की विलय की मांग तकरीबन रोज भारत में मिलने की आवाज उठा करती थी. पहले मोटा मोटा खैबर पख्तूनख्वा के बारे में जान लें.

खैबर पख्तूनख्वा (KP) पाकिस्तान का एक उत्तर-पश्चिमी प्रांत है, जो अपनी पश्तून बहुल आबादी, पहाड़ी भूगोल और अफगानिस्तान के साथ लगी सीमा के लिए जाना जाता है. इसका क्षेत्रफल 101,741 वर्ग किलोमीटर है. आबादी 4 करोड़. पश्तून यहां 75-80 फीसदी रहते हैं , बाकि कुछ और छोटे छोटो जातीय समूह हैं. पश्तो मुख्य भाषा है. हिंदी-उर्दू बोलने वाले भी कुछ लोग रहते हैं. इसके अलावा हंदको, चितराली, और कोहिस्तानी भाषाएं भी बोली जाती हैं. खैबर पख्तूनख्वा में कुल 35 जिले हैं.

तब खैबर पख्तूनख्वा भारत में मिलना चाहता था
आजादी के समय, यानी 1947 में जब भारत और पाकिस्तान का विभाजन हुआ, पाकिस्तान के कई क्षेत्रों ने इसके साथ शामिल होने में अनिच्छा दिखाई या स्पष्ट रूप से विरोध किया. इसमें अगर खैबर पख्तूनख्वा का नाम सबसे ऊपर है तो फिर बलूचिस्तान की चार तत्कालीन रियासतों में कालात, जिसके शासक अहमद यार खान थे. वह चाहते थे कि उनकी रियासत स्वतंत्र देश बने. मार्च 1948 में पाकिस्तान ने सैन्य बल का इस्तेमाल कर कालात को मिलाया. इस जबरन विलय से बलूचों में असंतोष पैदा हुआ, जो आज तक विद्रोह के रूप में जारी है.

खैबर पख्तूनख्वा का प्रवेश द्वार (wiki commons)

पाकिस्तान में किसी हालत में नहीं जाना चाहते थे
यहां तब पश्तून समुदाय में एक बड़ा हिस्सा या तो स्वतंत्र रहना चाहता था या फिर भारत में विलय का पक्षधर था. इसके लिए बकायदा आंदोलन छिड़ा हुआ था. खुदाई खिदमतगार आंदोलन की अगुवाई अब्दुल गफ्फार खान उर्फ “बाचा खान” कर रहे थे. वहां के ज्यादातर पश्तून भारत के साथ रहना चाहते थे या एक स्वतंत्र “पख्तूनिस्तान” की मांग कर रह थे.

तब ब्रिटिश राज ने खेल कर दिया
आंदोलन इतना जबरदस्त था कि जिन्ना की हवा निकली हुई. ब्रिटिश सरकार के लिए ये आंदोलन बड़ा सिरदर्द साबित हो रहा था. यहां जुलाई 1947 में जनमत संग्रह कराया और उसी में ब्रिटिश राज ने खेल कर दिया. सरहदी गांधी कहे जाने वाले खान अब्दुल गफ्फार खान और उनकी पार्टी खुदाई खिदमतगार भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में कांग्रेस के सहयोगी थे. साथ ही जिन्ना के प्रबल विरोधी भी. जब पाकिस्तान बनने की घोषणा हुई, तो उन्होंने इसे “हमसे विश्वासघात” कहा.

खैबर पख्तूनख्वा का नक्शा. ये पाकिस्तान का तीसरा बड़ा प्रांत है (wiki commons)

चालाकी से केवल दो विकल्प दिए गए
ब्रिटिश सरकार ने 1947 में नार्थ वेस्ट फ्रंटियर पोस्ट (NWFP) के पाकिस्तान में जाने के लिए जनमत संग्रह करवाया, लेकिन इसमें विकल्प केवल पाकिस्तान या ब्रिटिश शासन के बने रहने का था. ना तो भारत में शामिल होने का विकल्प दिया गया और ना ही आजाद रहने का. खुदाई खिदमतगार और कांग्रेस ने इस जनमत संग्रह का बहिष्कार किया. केवल 15% मतदाताओं ने वोट डाला और पाकिस्तान के पक्ष में मतदान किया.

कांग्रेस ठोस कदम नहीं उठा सकी
महात्मा गांधी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने खान अब्दुल गफ्फार खान का समर्थन किया लेकिन बंटवारे के समय कांग्रेस इस मुद्दे पर ठोस कदम नहीं उठा सकी. कांग्रेस ने NWFP को भारत में मिलाने के लिए ब्रिटिश सरकार पर दबाव नहीं डाला. इसमें ब्रिटिश राज ने ये खेल ही किया था कि उसने जानबूझकर ना तो भारत में विलय का विकल्प दिया और ना ही आजाद रहने का. अगर ये विकल्प दिए गए होते तो खैबर पख्तूनख्वा पाकिस्तान का हिस्सा होता ही नहीं. पूरी उम्मीद थी कि तब यहां के लोग भारत में विलय कर सकते थे.

खैबर पख्तूनख्वा का पूरा इलाका काफी सुंदर है. ये अफगानिस्तान से सटा हुआ प्रांत है. (image generated by leonardo ai)

पाकिस्तान बनने से पहले ही NWFP में मुस्लिम लीग का प्रभाव बढ़ गया. उसने हिंसक तरीकों से अपना समर्थन मजबूत किया. ब्रिटिश नीति पहले ही पाकिस्तान के पक्ष में झुकी हुई थी, इसलिए उन्होंने भारत में शामिल होने की कोई संभावना नहीं दी. पाकिस्तान बनने के बाद गफ्फार खान और उनके समर्थकों को पाकिस्तान सरकार ने बर्बर तरीके से दबा दिया, जिससे भारत में विलय की कोई संभावना खत्म हो गई.

इंडिया लॉस्ट फ्रंटियर–द स्टोरी ऑफ नार्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस ऑफ पाकिस्तान’ नाम की पुस्तक वरिष्ठ नौकरशाह राघवेंद्र सिंह ने भी इस बारे में लिखा है. वह राष्ट्रीय अभिलेखागार के महानिदेशक रहे थे.

जिन्ना को खारिज कर कांग्रेस को किया था निर्वाचित
लेखक ने कहा है कि पश्चिमोत्तर सीमांत प्रांत हमेशा से ही सामरिक रूप से महत्वपूर्ण रहा है. भारत के विभाजन और आजादी के बरसों में इस क्षेत्र ने ब्रिटिश तथा भारतीय राजनीतिक शख्सियतों का ध्यान अपनी ओर खींचा. इस मुस्लिम बहुसंख्यक प्रांत ने मुस्लिम लीग के नेता मोहम्मद अली जिन्ना (Mohammad Ali Jinnah) के ‘‘द्विराष्ट्र के सिद्धांत’’ को खारिज कर दिया. इस प्रांत ने 1946 में कांग्रेस सरकार को निर्वाचित किया. सिंह ने पुस्तक में कहा है, ‘‘बाद में (प्रांत में) एक जनमत संग्रह का आदेश दिया गया और निर्वाचित कांग्रेस सरकार भारत के विभाजन के एक हफ्ते के अंदर बर्खास्त कर दी गयी.’’

तब क्या कहा सीमांत गांधी ने
पुस्तक में सीमांत गांधी के हवाले से कहा गया है, ‘‘तीन जून 1947 को वर्किंग कमेटी की बैठक के बाद मैंने गांधीजी से कहा था, ‘आपने हमें भेड़ियों के आगे फेंक दिया’.’’ वर्ष 1929 में ‘‘खुदाई खिदमतगार’’ की स्थापना करने वाले एवं स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान कांग्रेस से जुड़े रहे गफ्फार खान ने खुद को कांग्रेस नेताओं द्वारा ठगा हुआ पाया, जिन्होंने उन्हें भरोसा दिलाया था कि वे विभाजन को कभी स्वीकार नहीं करेंगे.

अब कई विद्रोही गुट पख्तूनख्वा में सक्रिय
अब खैबर पख्तूनख्वा में कई विद्रोही गुट और अलगाववादी आंदोलन सक्रिय हैं, जो विभिन्न कारणों से पाकिस्तान से असंतुष्ट हैं. अलग होने की मांग करते हैं. इनमें मुख्य रूप से पश्तून राष्ट्रवादी, तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP), और बलोच समर्थक संगठन शामिल हैं.

1. पश्तून राष्ट्रवादी आंदोलन – पश्तून तहाफुज मूवमेंट (PTM)
यह एक प्रमुख गैर-सशस्त्र आंदोलन है, जो पश्तूनों के अधिकारों और पाकिस्तानी सेना के दमन के खिलाफ आवाज़ उठाता है. PTM का कहना है कि पाकिस्तान सरकार और सेना पश्तूनों के साथ द्वितीय श्रेणी के नागरिकों जैसा व्यवहार करती है. वे ‘ग्रेटर पश्तूनिस्तान’ का समर्थन करते हैं, जो अफगानिस्तान और पाकिस्तान के पश्तून इलाकों को मिलाकर बनने वाला एक संभावित राष्ट्र हो सकता है. खैबर पख्तूनख्वा के लोग अफगानिस्तान से सांस्कृतिक रूप से अधिक जुड़े हुए हैं और पाकिस्तान की नीति से असंतुष्ट रहते हैं. अफगानिस्तान ऐतिहासिक रूप से डूरंड रेखा को नहीं मानता, जिससे यह मुद्दा और जटिल हो जाता है.

2. तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP)
यह पाकिस्तान में सबसे बड़ा इस्लामी आतंकवादी संगठन है, जो खैबर पख्तूनख्वा और फाटा (FATA) में बहुत सक्रिय है. हाल में इसने बहुत बड़ा आंदोलन शुरू किया है. वो पाकिस्तानी सरकार को गिराकर शरिया कानून लागू करना चाहता है. ये पाकिस्तानी सेना और सरकार पर लगातार हमले करता रहता है.
हाल ही में अफगान तालिबान के मजबूत होने के बाद TTP ने अपनी गतिविधियाँ तेज कर दी हैं.

3. बलोच संगठनों का समर्थन
बलोच अलगाववादी संगठन (BLA, BLF, BRA) पश्तून संगठनों के साथ सहयोग कर रहे हैं, क्योंकि दोनों ही पाकिस्तान से असंतुष्ट हैं. कुछ रिपोर्टों के अनुसार, बलूच और पश्तून विद्रोही गुट एक साथ मिलकर पाकिस्तान विरोधी संघर्ष को मजबूत कर रहे हैं.

सिंध के कुछ हिस्से भी भारत के साथ जाना चाहते थे
सिंध में भी कुछ स्थानीय नेता और समुदाय शुरू में पाकिस्तान के साथ शामिल होने के पक्ष में नहीं थे. वे या तो स्वतंत्र सिंध की मांग करते रहे हैं. वह भारत के साथ रहना चाहते थे. हालांकि येविरोध बलूचिस्तान या NWFP जितना संगठित नहीं था.

लब्बो-लुआब ये है कि आजादी के समय कम से कम दो बड़े क्षेत्र (बलूचिस्तान और NWFP) और कुछ छोटे समुदाय स्पष्ट रूप से पाकिस्तान के साथ नहीं रहना चाहते थे. ये असंतोष आज भी विद्रोह और अलगाववाद के रूप में दिखता है.

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तब पाकिस्तान का ये प्रांत हर हाल में भारत में मिलना चाहता था, हो गया ये खेल


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एडवोकेट अरविन्द जैन

संपादक, बुंदेलखंड समाचार अधिमान्य पत्रकार मध्यप्रदेश शासन

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