अजब गजब

कभी खाने को नहीं थे पैसे! मां ने पाई-पाई जोड़कर किया पहला निवेश…फिर शार्क टैंक पहुंचा ये शख्स तो मिल गए लाखों

Last Updated:

आलोक रंजन ने पूर्वी चंपारण के गांव चिंतामणपुर से दिल्ली जाकर ‘गांव रेस्टोरेंट’ की शुरुआत की, जहां लिट्टी-चोखा और अन्य पारंपरिक व्यंजन परोसे जाते हैं. कठिनाइयों के बावजूद, शार्क टैंक में उनके ब्रांड को 80 लाख का…और पढ़ें

X

Aalok Ranjan

हाइलाइट्स

  • आलोक रंजन को शार्क टैंक में 80 लाख का निवेश मिला.
  • ‘गांव रेस्टोरेंट’ में लिट्टी-चोखा और पारंपरिक व्यंजन परोसे जाते हैं.
  • आलोक का लक्ष्य अगले 5 साल में 5000 लोगों को रोजगार देना है.

पूर्वी चंपारण. सपने बड़े हो और उसके लिए किया गया प्रयास सार्थक हो तो हर बाधा को पार करते हुए मंजिल तक पहुंचा जा सकता है. पूर्वी चंपारण के छोटे से गांव चिंतामणपुर के आलोक रंजन ने दिल्ली जाकर ‘गांव रेस्टोरेंट’ की शुरुआत करते हैं और इस बार शार्क टैंक में उनके ब्रांड पर शार्क्स 80 लाख का निवेश भी कर देते हैं. गांव रेस्टोरेंट में मुख्य रूप से लिट्टी-चोखा, चंपारण हांडी मटन के साथ ही राजस्थानी, समेत देश भर के विभिन्न गांवों के पारंपरिक भोजन को परोसा जा रहा है.

लोकल 18 से बातचीत में गांव रेस्टोरेंट के फाउंडर आलोक रंजन ने बताया कि उनका ये सफर बिल्कुल भी आसान नहीं रहा. रेस्टोरेंट के बिजनेस में फेल होने का चांस सबसे ज्यादा होते हैं. 2012 में हमने स्टार्ट किया था. मम्मी ने पाई-पाई जोड़ कर जो राशि रखी थी उन्होंने निवेश कर दी. पहला इन्वेस्टमेंट तो मम्मी की तरफ से ही आया. भाईयों ने भी लोन लेकर बिजनेस में लगाया और पापा के बिना तो यह सब कुछ सम्भव ही नहीं था. दो बार रेस्टोरेंट पूरी तरह बंद हो गया. गलत विचार भी मन में आए, लेकिन विजन स्पष्ट था. जिस वजह से आज सब कुछ ठीक हो पाया है.

कभी खाने को नहीं थे पैसे
आलोक ने बताया कि चुकी शुरुआत में मम्मी ने जो पैसे दिए वह खत्म हो रहे थे. स्थिति ये होती थी कि हम अपने स्टाफ को तो कैब का पैसा दे देते थे लेकिन खुद ऑटो से आते थे और ऑफिस से कुछ दूर पहले ही उतर जाते थे ताकि किसी को ये ना लगे कि हम ऑटो से आते हैं. हमारे पास पैसा नहीं है. कभी पॉकेट में 100 रुपये होते थे जिसमें से 50 रुपए भाड़े में खर्च हो जाते थे और 50 खाना में, उसमें भी अगर कोई और टीम का भूखा है तो पैसे उसे दे देते थे और खुद भूखे रह जाते थे.

शार्क टैंक जाने के बाद क्या बदला?
लोकल 18 से आलोक ने कहां शार्क टैंक जाना तो जिद ही थी. लेकिन यह भी आसान नहीं रहा. इस बार तीसरे अटेम्प्ट में पहुंचे. एक बार तो मुम्बई आने का निमंत्रण भी मिल गया. हमलोग जाने को तैयार भी हो गए थे. लेकिन फिर कैंसिल भी कर दिया गया. अब जब पहुंच गए तो देशभर में लोग हमारे प्रयास और ब्रांड को जान गए. कई लोग जो दूरी बनाते थे अब वो भी ऑफर कर रहे हैं. फ्रैंचाइज़ी को लेकर हजारों कॉल आ रही हैं. लिट्टी-चोखा को इंटरनेशनल बनाने के मुहिम को इससे बल मिला है.

पांच हजार लोग को देंगे रोजगार
उन्होंने बताया कि खाना ही ऐसा माध्यम है जो हमें जड़ो से कनेक्ट करता है. लेकिन बड़े शहरों के थाली से गांव का खाना मिसिंग है. हम इसी कमी को दूर करने में लगे हैं. अभी 50 लोगों को रोजगार दे रहें. अगले 5 साल में पांच हजार लोगों को रोजगार देने पर काम कर रहे हैं.

homebusiness

कभी खाने को नहीं थे पैसे! मां ने किया पहला निवेश..अब शार्क टैंक में मिले लाखों


Source link

एडवोकेट अरविन्द जैन

संपादक, बुंदेलखंड समाचार अधिमान्य पत्रकार मध्यप्रदेश शासन

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!