कारगिल एयरफील्ड पर C-17 ग्लोबमास्टर की सफल ट्रायल लैंडिंग.

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KARGIL AIRFIELD: C-17 ग्लोबमास्टर की खासियत का नजारा 2020 में साफ दिखा. कम समय में इन्ही एयरक्राफ्ट के जरिए बड़ी तेजी से भारी भरकम सैन्य साजो सामान और सैनिकों को लद्दाख तक पहुचाया था. इसी के चलते चीन को बैकफुट …और पढ़ें
C-17 से कारगिल में ट्रूप मूवमेंट और लॉजेस्टिक ऑपरेशन होगा आसान
हाइलाइट्स
- C-17 ग्लोबमास्टर ने कारगिल में पहली बार लैंडिंग की.
- कारगिल एयरफील्ड पर C-17 से ट्रूप मूवमेंट आसान होगा.
- सर्दियों में 30-35 टन लोड कारगिल में उतारा जा सकेगा.
KARGIL AIRFIELD: 1999 में कारगिल युद्ध के बाद सेना ने अपनी तैयारियों को तेजी से अमली जामा पहनान शुरू किया. बर्फबारी के दौरान श्रीनगर से कारगिल को जोड़ने वाली नेश्नल हाइवे नंबर 1 बंद हो जाता है. उस समय सेना के जरूरतों को पूरा करने के लिए भारतीय वायुसेना के एयरक्राफ्ट के जरिए कारगिल एयर स्ट्रिप पर सामान पहुंचाया जाता रहा है. पहली बार C-17 ग्लोब मास्टर जैसा बड़ा विमान कारगिल के एयर स्ट्रीप पर लैंड किया. सूत्रों के मुताबिक यह C-17 की पहली ट्रायल लैंडिंग थी. जह लैंडिंग सफल रही. इस एयर स्ट्रिप पर एक तरफ से ही टेक ऑफ और लेंडिंग की जा सकती है. यहां से एयर ऑपरेशन चलाना काफी चुनौतीपूर्ण है. इस एयर स्ट्रिप से होने वाला टेकऑफ सीधा पीओके की तरफ होता है. जरा भी चूक हुई को एयरक्राफ्ट सीधा LOC पार कर पीओके के एयर स्पेस में जा सकता है.
क्षमता में 4 गुणा बढ़ोतरी
अभी तक तो इस एयर फील्ड से An-32 ऑपरेट किया जाता रहा है. An-32 लोड कैपेसिटी 3 से 4 टन के करीब है. C-130 J सुपर हर्क्यूलिस की क्षमता 6 से 7 टन की है. C-17 ग्लोबमास्टर एक क्षमता इनसे 3-4 गुणा ज्यादा है. सर्दियों में इससे 30 से 35 टन लोड और गर्मियों में 20 से 25 टन लोड आसानी से कारगिल में उतारा जा सकेगा. अभी तक श्रीनगर एयरबेस और लेह के एयरबेस से C-17 ऑपरेट किए जा रहे हैं. अब जरूरत पड़ने पर कारगिल से भी इसके ऑपरेशन को अंजाम दिया जा सकेगा. कारगिल एयर फील्ड 9700 फिट की उंचाई पर स्थित है. कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तानियों ने इस एयर स्ट्रिप पर आर्टेलरी शैलिंग भी की थी. यह द्रास के वेस्टऔर बटालिक के ईस्ट में स्थित है. पिछले साल जनवरी में ही भारतीय वायुसेना के C-130 J ने इस एयर स्ट्रिप पर पहली बार नाइट विजन उपकरणों के जरिए लैंडिंग की थी. गरुढ़ कमाडों की स्पेशल ऑपरेशन ड्रिल को अंजाम दिया था. इस एयर फील्ड पर नाइट लैंडिंग की सुविधा नहीं है. इस एयर स्ट्रिप के दोनों और 14000 से 15000 फिट उंची पहाडियां है. जो इस एयर फील्ड को चुनौतीपूर्ण बना देता है.
चीन-पाक को मिलेगी चुनौती
लद्दाख में एयर बेस से फाइटर ऑप्रेशन को चलाया जा सकता है. जिसमें सिर्फ लेह और थौएस ही एसे एयरबेस हैं. इसके अलावा स्पेशल ऑपरेशन ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट और हेलिकॉप्टर ऑपरेशन के लिए 2 एडवांस लैंडिंग ग्राउंड दौलत बेग ओल्डी, फुक्चे और एक एयरफील्ड कारगिल में है. न्योमा जो कि पहले एडवांस लैंडिग ग्राउंड था उसे अपग्रेड कर उसे फाइटर ऑपरेशन के लिए तैयार किया जा चुका है. भारतीय वायुसेना के ट्रायल लगातार जारी है. यह कहना बिलकुल गलत नहीं होगा की भारतीय सेना अब किसी भी वक्त चीन पाकिस्तान की चुनौती दे सकते है.
March 05, 2025, 20:33 IST
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