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जेलेंस्की ने जिसके दम पर लिया पुतिन से पंगा, उसी ने छोड़ा साथ, अब यूक्रेन के सामने क्या है रास्ता?

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डोनाल्ड ट्रंप और वोलोदिमीर जेलेंस्की के बीच हुई तीखी बहस ने दो अहम सवालों को जन्म दिया है. पहला – बिना अमेरिकी मदद यूक्रेन कैसे रूस का सामना करेगा, दूसरा – उस नाटो का भविष्य क्या होगा, जिसमें शामिल होने के लिए …और पढ़ें

ट्रंप और जेलेंस्की के बीच हुई तीखी बहस को पूरी दुनिया के टीवी पर देखा. (AP फोटो)

हाइलाइट्स

  • ट्रंप और जेलेंस्की की बहस से यूक्रेन-अमेरिका संबंधों में दरार.
  • बिना अमेरिकी मदद के यूक्रेन के लिए रूस से युद्ध जीतना मुश्किल.
  • नाटो के भविष्य पर भी सवाल खड़े हुए.

वाशिंगटन. अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की के बीच शुक्रवार को व्हाइट हाउस में हुई बैठक खूब गर्मा गरमी देखी गई. यहां उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने बेहद आक्रामक रुख अपनाते हुए जेलेंस्की को खूब फटकार लगाई. ट्रंप और जेलेंस्की के बीच हुई तीखी बहस को पूरी दुनिया के टीवी पर देखा. इस वेंस जिस तरह से जेलेंस्की पर हमलावर थे, उससे उनकी बढ़ती राजनीतिक ताकत भी उजागर हुई.

ओवल ऑफिस में हुई इस बैठक में उस वक्त माहौल गरम हो गया, जब जेलेंस्की ने 2019 के संघर्ष विराम समझौते में रूस की अनदेखी का मुद्दा उठाया. जेलेंस्की ने वेंस से सीधा सवाल किया, ‘जेडी, आप किस तरह की कूटनीति की बात कर रहे हैं?’ इस पर वेंस ने तीखा जवाब देते हुए कहा, ‘मैं उस कूटनीति की बात कर रहा हूं जो आपके देश के विनाश को रोकेगी.’ ट्रंप ने भी इस बहस में दखल देते हुए यूक्रेनी राष्ट्रपति पर आरोप लगाया कि वह ‘तीसरे विश्व युद्ध के साथ जुआ खेल रहे हैं.’

यूक्रेन के सामने बड़े सवाल
व्हाइट हाउस में डोनाल्ड ट्रंप और वोलोदिमीर जेलेंस्की की तीखी बहस ने दो अहम सवालों को जन्म दिया है. पहला – बिना अमेरिकी मदद यूक्रेन रूस का सामना कैसे करेगा, दूसरा – उस नाटो का भविष्य क्या होगा जिसमें शामिल होने के लिए जेलेंस्की ने रूस के साथ वो जंग मोल ले ली जो आज यूक्रेन के लिए अस्तित्व का सवाल बन गई.

हालांकि शुक्रवार को व्हाइट हाउस में जो कुछ हुआ उसे देखकर अधिक हैरानी नहीं हुई, क्योंकि ट्रंप लगातार यूक्रेन और जेलेंस्की को निशाने पर ले रहे हैं और जंग के लिए कीव को जिम्मेदार बता रहे थे. वह जेलेंस्की को तानाशाह तक कह चुक हैं.

यूक्रेन के लिए जंग जीतना मुश्किल
ट्रंप ने रूस के साथ यूक्रेन संकट पर शांति वार्ता शुरू कर दी. रियाद में हुई इस बातचीत में यूक्रेन सहित किसी यूरोपीय देश को शामिल नहीं किया गया. पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडन के शासनकाल में जो यूएस-यूक्रेन गठबंधन मजबूती से खड़ा था वो अब भरभरा कर गिर गया है. सभी जानकार इस बात पर सहमत है कि बिना अमेरिकी मदद के यूक्रेन के लिए रूस से युद्ध जीतना करीब-करीब असंभव है.

जेलेंस्की ने शायद अपने राष्ट्रपति काल की सबसे बड़ी चुनौती को शुक्रवार को झेला. अब उनके सामने क्या विकल्प हैं? जानकार मानते हैं आगे की राह बहुत मुश्किल है – उन्हें या तो जादुई तरीके से अमेरिका-यूक्रेन रिश्तों में आई दरार को भरना होगा, या किसी तरह अमेरिका के बिना अपने देश को बचना होगा.

एक रास्ता – पद छोड़ देना भी हो सकता है, किसी और को देश का नेतृत्व करने का मौका देना. बाकी ऑप्शन के मुकाबले यह आसान विक्लप है. लेकिन इसमें खतरे भी बहुत हैं. सत्ता से हटना मॉस्को को फायदा पहुंचा सकता है, क्योंकि ऐसा करने से अग्रिम मोर्चे पर संकट पैदा हो सकता है, राजनीतिक स्पष्टता खत्म हो सकती है, कीव में सरकार की वैधता भी प्रभावित हो सकती है, युद्ध के दौरान एक पारदर्शी चुनाव कराना भी बहुत बड़ी चुनौती है जिससे पार पाना मुश्किल है.

नाटो के अस्तित्व पर सवाल
जिस तरह यूक्रेन का भविष्य अंधेरे में दिख रहा है उसी तरह उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) का क्या होगा यह भी सवालों के घेरे में आ गया है. यूक्रेन के बाहर यूरोपीय सुरक्षा के लिए अमेरिका की प्रतिबद्धता के बारे में कई संदेह और सवाल खड़े हो गए हैं. सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि क्या राष्ट्रपति ट्रंप अपने पूर्ववर्ती हैरी ट्रूमैन की तरफ से 1949 में किए गए उस वादे को निभाएंगे कि नाटो सहयोगी पर हमले को अमेरिका पर हमला माना जाएगा.

संयुक्त राज्य अमेरिका नाटो का अग्रणी और संस्थापक सदस्य रहा है. नाटो के गठन ने संयुक्त राज्य अमेरिका की पारंपरिक विदेश नीति को उलट दिया, जो अलग-थलग रहने पर आधारित थी. इसी नीति की वजह से अमेरिका जितना संभव हो सका प्रथम विश्व युद्ध और द्वितीय विश्व युद्ध से बाहर रहा. दोनों ही अवसरों पर, उसकी नौसैनिक परिसंपत्तियों पर हमले ने अंततः उसे युद्ध की स्थिति में धकेल दिया.

हालांकि डोनाल्ड ट्रंप बिल्कुल अलग राह पर चल रहे हैं. उन्होंने पिछले दिनों सष्पट कहा था कि यूक्रेन को नाटो मेंबरशिप भूल जानी चाहिए. उन्होंने कहा था, ‘नाटो, आप इसके बारे में भूल सकते हैं. मुझे लगता है कि शायद यही कारण है कि यह सब शुरू हुआ.’

साफ है तीन साल के रूस-यूक्रेन युद्ध ने न सिर्फ यूक्रेन को ब्लकि पूरे यूरोप के सामने एक बड़ा संकट खड़ा कर दिया है. (IANS इनपुट के साथ)

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जिसके दम पर पुतिन से लिया पंगा, उसने छोड़ा साथ, अब जेलेंस्की के सामने क्या राह


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एडवोकेट अरविन्द जैन

संपादक, बुंदेलखंड समाचार अधिमान्य पत्रकार मध्यप्रदेश शासन

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