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पीएम मोदी और विदेशी मेहमानों की मुलाकात का खास ठिकाना हैदराबाद हाउस.

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Hyderabad House: हैदराबाद हाउस को निजाम मीर ओस्मान अली खान ने बनवाया था. 50 लाख रुपये की लागत से यह इमारत 1928 में बनकर तैयार हुई थी. यह अब विदेश मंत्रालय के अधीन है और प्रधानमंत्री मोदी विदेशी मेहमानों से यहीं…और पढ़ें

हैदराबाद हाउस में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन का स्वागत किया.

हाइलाइट्स

  • हैदराबाद हाउस का निर्माण 1928 में हुआ था
  • पीएम मोदी विदेशी मेहमानों से हैदराबाद हाउस में मिलते हैं
  • हैदराबाद हाउस का स्वामित्व विदेश मंत्रालय के पास है

Hyderabad House: यूरोपियन यूनियन (EU) की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन दो दिवसीय भारत दौरे पर हैं. यूरोपियन यूनियन के 27 देशों का प्रतिनिधित्व कर रही उर्सुला वॉन डेर लेयेन ने शुक्रवार को नई दिल्ली स्थित हैदराबाद हाउस में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की. पीएम मोदी और उर्सुला वॉन डेर लेयेन जिस 97 साल पुराने ‘हैदराबाद हाउस’ में मिले, उसकी कहानी भी बेहद दिलचस्प है. कभी आपने गौर किया कि पीएम मोदी या उनसे पहले भी जो प्रधानमंत्री रहे वे विदेशी मेहमानों से मुलाकात करने के लिए हैदराबाद हाउस का ही रुख क्यों करते रहे हैं. 

आजादी से पहले भारत में करीब 560 देसी रियासतें थीं. इन्हें ‘देसी राज्य’ भी कहा जाता था. ये रियासतें ब्रिटिश भारत का हिस्सा नहीं थीं. इन सभी रियासतों का अपना-अपना अधिकार क्षेत्र था. लेकिन इतनी सारी रियासतें होने के कारण इनमें कोई ना कोई दिक्कत पैदा होती रहती थी. अंग्रेजी हुकूमत ने साल 1920 में देसी रिसायतों की समस्याएं सुनने और उनसे बेहतर तालमेल के लिए ‘चैंबर ऑफ प्रिंसेस’ की स्थापना की. राजधानी दिल्ली में अक्सर इस चैंबर की बैठकें होने लगीं. ब्रिटिश हुकूमत जब भी बुलाती, रियासत के प्रमुखों को भाग कर दिल्ली आना पड़ता. यहां उनके रहने की कोई ढंग की व्यवस्था भी नहीं थी. तो उन्होंने यहां अपने रहने के लिए एक अच्छी जगह बनाने का विचार आया. जब हैदराबाद हाउस बनकर तैयार हो गया तो निजाम को वो पसंद नहीं आया.  

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पीएम मोदी ने हैदराबाद हाउस में यूरोपियन यूनियन अध्यक्ष से की मुलाकात.

कैसे हुआ सरकार का मालिकाना हक
आजादी के बाद देसी रियासतों का भारत में विलय हो गया. इसके बाद साल 1954 में विदेश मंत्रालय ने हैदराबाद हाउस को लीज पर ले लिया. विदेश मंत्रालय 70 के दशक तक आंध्र प्रदेश सरकार को लीज के एवज में पैसे देता रहा. बाद में जब के. विजय भास्कर रेड्डी, आंध्र के मुख्यमंत्री बने तो केंद्र और राज्य के बीच एक समझौता हुआ. इस समझौते के तहत केंद्र सरकार ने दिल्ली में आंध्र प्रदेश भवन बनाने के लिए राज्य सरकार को 7.56 एकड़ जमीन दी. बदले में हैदराबाद हाउस केंद्र की मिल्कियत हो गया. अब हैदराबाद हाउस का स्वामित्व विदेश मंत्रालय के पास है. इसका इस्तेमाल वो किसी राष्ट्राध्यक्ष या अन्य किसी बड़ी विदेशी शख्सियत के आने पर पीएम से मुलाकात के लिए करता है. 

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निजाम के स्थायी ठिकाने की तलाश
जब ‘चैंबर ऑफ़ प्रिंसेस’ बना उस वक्त मीर ओस्मान अली खान हैदराबाद रियासत के निजाम हुआ करते थे. जब वह दिल्ली आते तो महीनों पहले उनका कैंप बनना शुरू हो जाता, जिस पर भारी-भरकम रकम भी खर्च होती थी. निजाम ने दिल्ली में अपना स्थायी ठिकाना बनाने का फैसला लिया और रिहाइश के लिए जमीन की तलाश शुरू हुई. यह तलाश वायसराय हाउस (अब राष्ट्रपति भवन) के पास 8.2 एकड़ की एक जमीन पर आकर खत्म हुई. निजाम ने यह जमीन खरीद ली, लेकिन उन्हें लगा कि जमीन थोड़ी कम है. इस जमीन से सटी एक बिल्डिंग थी, जो 3.73 एकड़ में फैली थी. निजाम ने उस जमाने में 5000 रुपये एकड़ के हिसाब से यह जमीन भी खरीद ली.

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निजाम ने लुटियन को दिया जिम्मा
जमीन खरीदने के बाद उस पर बिल्डिंग बनाने की तैयारी शुरू हुई. निजाम  मीर ओस्मान अली ने यह जिम्मेदारी मशहूर आर्किटेक्ट एडविन लुटियंस को सौंपी. एडविन लुटियंस को राष्ट्रपति भवन से लेकर दिल्ली की तमाम ऑइकॉनिक इमारतें बनाने के लिए जाना जाता है. उनकी वजह से ही नई दिल्ली के एक खास इलाके को लुटियन दिल्ली भी कहा जाता है, जहां पर उनकी बनाई गईं ज्यादातर इमारतें मौजूद हैं. लुटियंस ने हैदराबाद हाउस के लिए ”बटरफ्लाई” शेप का एक डिजाइन तैयार किया, जो लगभग वायसराय हाउस जैसा ही था. सिर्फ इसका गुंबद थोड़ा छोटा था.

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हैदराबाद हाउस में भारत और EU के वरिष्ठ अधिकारियों ने एक द्विपक्षीय बैठक हुई.

बनाने में 50 लाख रुपये आया खर्च
आजादी के समय देश के सबसे अमीर शख्स रहे निजाम ने शुरुआत में ‘हैदराबाद हाउस’ के लिए 26 लाख रुपये दिये थे. लेकिन बाद में एक फरमान के जरिए यह राशि बढ़ाकर 50 लाख रुपये कर दी गई. उन दिनों बर्मा (अब म्यांमार) की टीक की लकड़ी खूब चर्चित थी. निजाम ने वहां से लकड़ी मंगवाई. न्यूयॉर्क से इलेक्ट्रिकल फिटिंग और दूसरे सामान मंगवाए गए. उन दिनों इंटीरियर डिजाइनिंग में लंदन की दो कंपनियों हैम्पटन एंड संस लिमिटेड और वारिंग एंड गिलो लिमिटेड का काफी नाम था. निजाम ने हैदराबाद हाउस की इंटीरियर डिजाइनिंग का काम इन्हीं दोनों कंपनियों को सौंपा था. 

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पेंटिंग, कालीन और चांदी के बर्तन
साज सज्जा में कोई कोर कसर ना रह जाए इसके लिए दुनिया के मशहूर पेंटरों की 17 पेंटिंग खरीदी गईं. उस समय एक पेंटिंग के लिए दस से बीस हजार रुपये की रकम अदा की गई थी. लाहौर के मशहूर पेंटर अब्दुल रहमान चुगताई की 30 हैंडमेड पेंटिंग भी मंगवाई गईं. जिसके लिए बड़ी कीमत अदा की गई. हैदराबाद हाउस के लिए इराक, तुर्की और अफगानिस्तान से कालीन मंगवाए गए. शाही रुतबे के मुताबिक निजाम के लिए ऐसी डाइनिंग हॉल की व्यवस्था की गई जिसमें एक साथ 500 मेहमान भोजन कर सकें. इसके लिए चांदी की प्लेटें, क्राकरी, खास कटलरी और अन्य सामान मंगाया गया.

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निजाम को पसंद नहीं आयी जगह
हैदराबाद हाउस साल 1928 में बनकर तैयार हुआ. यूरोपियन और मुगल शैली में बनी इस इमारत में कुल 36 कमरे बनाए गए. बनने के करीब दस साल बाद जब निजाम ने पहली बार हैदराबाद हाउस में कदम रखा तो उन्हें ये इमारत पसंद नहीं आयी. उन्होंने इसकी तुलना घोड़े के अस्तबल से की. निजाम को यह पश्चिम की किसी सस्ती इमारत की नकल लगा. हालांकि इसके लिए उन्होंने 50 लाख रुपये की भारी भरकम रकम खर्च की थी.

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एडवोकेट अरविन्द जैन

संपादक, बुंदेलखंड समाचार अधिमान्य पत्रकार मध्यप्रदेश शासन

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