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मंदी आई, हीरों की चमक फीकी पड़ी, लेकिन तवे ने संभाल लिया! चटनी ने ऐसा रंग जमाया कि हर महीने 50 हजार कमाई!

Agency:Local18

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Business Success Story: सूरत के रत्नकला विशेषज्ञ लालभाई ने हीरा उद्योग में आई मंदी के कारण नौकरी छोड़कर अपना छोटा बिजनेस शुरू किया. उन्होंने भूंगड़ा बटाटा की लारी से नई शुरुआत की, जो आज लोगों में बहुत लोकप्रिय …और पढ़ें

सूरत के लालभाई नेभुंगड़ा बटेटा बेचकर पाई सफलता

हाइलाइट्स

  • लालभाई ने हीरा उद्योग छोड़ भूंगड़ा बटाटा का बिजनेस शुरू किया.
  • लालभाई की चटनी और सॉस का कॉम्बिनेशन ग्राहकों को पसंद आया.
  • लालभाई की मासिक कमाई 40,000 से 50,000 रुपये हो गई है.

सूरत: कोरोना काल से लेकर रूस-यूक्रेन युद्ध की सीधी मार हीरा उद्योग पर पड़ी है. आज की तारीख में मंदी के चलते हीरा कंपनियां चल तो रही हैं, लेकिन छुट्टियां बढ़ा दी गई हैं या काम के घंटे कम कर दिए गए हैं. इससे पर्याप्त काम न मिलना, कम वेतन और छुट्टियों की बढ़ोतरी जैसी समस्याओं के कारण कई रत्नकला विशेषज्ञों की स्थिति खराब हो गई है. कई घरों की आर्थिक स्थिति बिगड़ गई है, लेकिन इस बीच, लालभाई जैसे रत्नकला विशेषज्ञ भी हैं जिन्होंने हालात से हार मानने की बजाय भुंगड़ा बटेटा बेचकर अपना छोटा बिजनेस शुरू किया है. दो-तीन महीनों में ही उन्हें लोगों का बहुत सपोर्ट मिला है.

बता दें कि भुंगड़ा बटेटा गुजरात के सौराष्ट्र में एक लोकप्रिय स्ट्रीट फूड है, जो लहसुन के स्वाद वाले छोटे आकार के आलू से बनाया जाता है और पीले भुंगला या फ्राईमस के साथ परोसा जाता है.

लालभाई की खासियत उनकी चटनी में है
खाने-पीने की बात करें तो, सूरत के लोगों को कोई भी मात नहीं दे सकता. सूरतियों की जीभ बहुत चटपटी होती है. सुरतीलालाओं को खाने में कोई कमी पसंद नहीं आती. बाजार में वैसे तो भुंगड़ा बटेटा की कई लारियां मिलती हैं, लेकिन लालभाई की खासियत उनकी चटनी में है. उनकी चटनी और सॉस का कॉम्बिनेशन ग्राहकों को इतना पसंद आया है कि लोग नीलकंठ प्लाजा, किरण योगीचौक इलाके से गुजरते समय उनकी लारी पर जाना नहीं भूलते.

शुरुआत में उन्होंने अपनी गाड़ी पर ही भूंगड़ा बटाटा बेचना शुरू किया था, लेकिन आज उनके पास अपनी खुद की लारी है. वैसे तो धोराजी में भुंगड़ा बटेटा प्रसिद्ध हैं और सूरत में भी लगभग 100 से अधिक जगहों पर भूंगड़ा बटाटा बेचे जाते हैं. लेकिन लालभाई के भूंगड़ा बटाटा सबसे अलग नजर आते हैं. लोग दूर-दूर से सिर्फ उनके भूंगड़ा बटाटा का स्वाद चखने आते हैं. कई बार तो ऐसा होता है कि सिर्फ 4 से 5 घंटों में ही उनकी लारी खाली हो जाती है.

इस बारे में अधिक जानकारी देते हुए लालभाई ने लोकल 18 को बताया, “मैं पिछले 15 साल से सूरत में रह रहा हूं और 15 साल से हीरा उद्योग में काम कर रहा था. लेकिन मंदी के कारण मैंने दिवाली के बाद फिर से हीरा उद्योग में जाने की बजाय एक छोटा बिजनेस शुरू करने का सोचा और भूंगड़ा बटाटा का बिजनेस शुरू किया. मंदी के कारण मुझे घर चलाने में बहुत परेशानी हो रही थी. मेरी तनख्वाह 35,000 से 40,000 रुपये थी, लेकिन वह घटकर 15,000 से 16,000 रुपये हो गई थी. इसलिए मैंने फिर से हीरा घिसने का काम नहीं किया.”

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आगे वे बताते हैं, “मेरा बिजनेस छोटा है लेकिन अपना है. यह सोचकर मैं काम कर रहा हूं और इसमें काफी हद तक सफल भी रहा हूं. हीरे से ज्यादा मुनाफा मुझे यहां मिल रहा है. मेरी अन्य रत्नकला विशेषज्ञों को सलाह है कि हालात से हार मानकर टूटें नहीं, आत्महत्या न करें और भागें भी नहीं. कोई और बिजनेस अपनाएं और उसकी शुरुआत करें.”

40,000 से 50,000 रुपये मिल रहे
अपनी प्रतिदिन की कमाई के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा, “पहले मैं अपनी गाड़ी पर छोटा काउंटर सेट करता था. लेकिन एक ही महीने में मैंने अपनी खुद की लारी बना ली है. मुझे फिलहाल एक महीने में कम से कम 40,000 से 50,000 रुपये मिल रहे हैं. जिससे हीरे के मुकाबले दस गुना फायदा मुझे इसमें मिल रहा है. मेरी एक प्लेट का भाव 40 रुपये है.”

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हीरों की चमक फीकी पड़ी, लेकिन चटनी ने ऐसा रंग जमाया कि हर महीने 50 हजार कमाई!


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एडवोकेट अरविन्द जैन

संपादक, बुंदेलखंड समाचार अधिमान्य पत्रकार मध्यप्रदेश शासन

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