Debate meeting at Ekatma Dham camp in Maha Kumbh | महाकुंभ में एकात्मधाम शिविर में शास्त्रार्थ सभा: श्रृंगेरी शंकराचार्य बोले- मोक्ष की प्राप्ति के लिए वैदिक परंपरा का अनुसरण करना होगा – Khandwa News

दुख से बाहर आना ही मोक्ष है। मोक्ष की प्राप्ति के लिए वैदिक परंपरा का अनुसरण करना होगा। वैदिक परंपरा विश्व का आधार है और यही पूरे विश्व में व्याप्त दुखों को नष्ट कर सकती है। इस पर संकट का अर्थ है पूरे विश्व में संकट आना। आदि शंकराचार्य के उपदेशित मार
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ये बातें श्रृंगेरी शंकराचार्य ने महाकुंभ में लगे एकात्म धाम मंडपम में चल रही शास्त्रार्थ सभा के अंतिम दिन अपने संबोधन में कहीं। उन्होंने एकात्म धाम प्रोजेक्ट के लिए कहा कि मध्यप्रदेश शासन समझ गया कि समाज का कल्याण आदि शंकराचार्य के ज्ञान से ही हो सकता है।
बता दें कि प्रयागराज महाकुंभ के सेक्टर- 18 में आचार्य शंकर सांस्कृतिक एकता न्यास, मप्र शासन के तत्वाधान में लगे एकात्म धाम मंडपम् में दो दिवसीय शास्त्रार्थ सभा का आयोजन किया गया। सभा में देशभर के 15 विद्वानों ने हिस्सा लिया। शास्त्रार्थ सभा की अध्यक्षता श्रृंगेरी शंकराचार्य श्री श्री विधुशेखर भारती जी ने की।
शंकराचार्य ने अंतिम सत्र में सभा को संबोधित किया व विद्वानों और शंकर दूतों को आशीर्वाद दिया।
प्रयाग में आदि शंकराचार्य और कुमारिल भट्ट का संगम श्रृंगेरी शंकराचार्य ने कहा कि प्रयागराज की धरती पर आदि शंकराचार्य और कुमारिल भट्ट का संगम हुआ था। वे अपने भाष्य पर वार्तिक रचना के लिए कुमारिल भट्ट से मिलने आए थे। उन्होंने कहा कि वेदों के विषय में मन में कोई संदेह नहीं होना चाहिए और पूर्ण विश्वास रखना चाहिए। भारत के अतिरिक्त दुनिया के हर कोने ने सिर्फ जीवन जीने के लिए क्या जरूरी है उसकी बात होती है, लेकिन भारत की वैदिक परंपरा अनादि काल से जीवन को सार्थक बनाना सिखा रही है।
समाज कल्याण शंकराचार्य के ज्ञान से ही हो सकता है उन्होंने एकात्म धाम की संकल्पना को धरातल पर उतारने के लिए मध्यप्रदेश शासन की सराहना की। कहा कि यह आदि गुरू शंकराचार्य जी की इतनी बड़ी सेवा की जा रही है कि उसे मैं शब्दों में नहीं कह सकता। मध्यप्रदेश शासन ये समझ गया है कि समाज का कल्याण शंकराचार्य के ज्ञान से ही हो सकता है। शंकर की सेवा के काम में न्यास के मार्गदर्शन के लिए श्रृंगेरी मठ हमेशा साथ रहेगा।

सभा में देशभर के 15 विद्वानों ने हिस्सा लिया।
प्रोफेसर झा बोले- श्रुति प्रमाण से आत्मज्ञान प्राप्त होता है जेएनयू के प्रोफेसर डॉ. रामनाथ झा ने सभा के समापन पर अंतिम वक्तव्य देते हुए शास्त्रार्थ की परंपरा के महत्व को रेखांकित किया। कहा कि श्रुति प्रमाण से आत्मज्ञान प्राप्त होता है, जिससे शास्त्र निर्धारण होता है और अर्थ का निर्धारण स्वयं ध्यान बन जाता है। सभा में विद्वानों को सम्मानित कर उनके योगदान की सराहना की गई।
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