Seed crackers are being made from indigenous seeds in Paradsingha | बारुद की जगह बीज से तैयार होते हैं पटाखे: छिदवाड़ा जिले में बन रहे ऑर्गेनिक पटाखों से नहीं होता प्रदूषण; मार्केट में बढ़ी डिमांड – Chhindwara News

दीपावली का त्योहार के समय पटाखों से होने वाले प्रदूषण को देखते हुए छिंदवाड़ा से 55 किलोमीटर दूर सौसर के पारडसिंगा में नेचुरल पटाखे तैयार हो रहे हैं। जिनसे प्रदूषण भी नहीं होगा और पर्यावरण को भी फायदा होगा। जानते हैं क्या है बीच पटाखे और कैसे होते है
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अब तक आपने पटाखों और फुलझड़ियों को जलते ही देखा होगा लेकिन इस दीपावली में आप बीज पटाखों को पेड़ की तरह लगा सकते हैं। दरअसल प्रदूषण मुक्त दिवाली को बढ़ावा देने के लिए दो साल पहले शुरू हुई स्वयं सहायता समूह ग्राम आर्ट नेचुरल पटाखों को तैयार कर रहा है।
इन पटाखों को बनाने में न तो किसी प्रकार के हानिकारक केमिकल का इस्तेमाल होता है और न ही प्लास्टिक का। लेकिन आश्चर्य की बात ये है कि इन पटाखों को जब आप देखेंगे तो ये हुबहू पटाखे जैसे ही लगेंगे। लेकिन ये पटाखें पर्यावरण के अनुकूल तैयार किए जा रहे हैं।
ग्राम आर्ट स्व सहायता समूह की फाउंडिंग मेंबर श्वेता भट्टड़ ने बताया कि हमारा उद्देश्य प्रदूषण मुक्त दिवाली को बढ़ावा देना है। जिसके तहत हमने बीज पटाखे बनाने का फैसला किया। हमारे इस काम में छिंदवाड़ा जिले के ग्रामीणों का अहम योगदान है। उन्हीं की मदद से ये पटाखे तैयार किए जा रहे हैं। इन्हें आसपास के 20 गांव की 350 महिलाएं मिलकर तैयार करने में जुटी हुई है। खास बात तो यह है कि बिल्कुल पटाखों की तरह दिखने वाले इन बीज पटाखों को महिलाएं बगैर किसी मशीन के बिल्कुल हाथों से तैयार कर रही है।
बीज पटाखे बिल्कुल नॉर्मल पटाखों की तरह ही दिखते हैं।
ऐसे तैयार करते है पटाखे
बीज पटाखे तैयार करने के लिए हैंड मेड पेपर पर स्क्रीन प्रिंटिंग होती है। फिर इन्हें पापुलर पटाखों में रिपलीकेट किया जाता है। इसमें बारूद की जगह बीजों का इस्तेमाल होता है। फटने के बाद ये पटाखे जमीन में ही उग जाते हैं। श्वेता भट्टड़ ने बताया कि बीज पटाखों को तैयार करते वक्त उनके अंदर तरह- तरह के बीज डाले जाते हैं। जैसे चकरी के अंदर प्याज के बीज, रस्सी बम के अंदर रोजैल के बीज, बम की लड़ी- मूली का बीज, लाल चौलाई, हरी चौलाई और पालक, सरसों के बीज। साथ ही ककड़ी, हरी भाजी और अगस्ती के बीज से लेकर की तरह के फूल के बीज भी बम या फूलझड़ी में डाले जाते हैं।
श्वेता के अनुसार इससे काफी बदलाव आ रहा है। बच्चे जब पटाखे की डिमांड करते हैं तो इन बीज पटाखों का एक्शन दिखता है। बच्चे जब उगने वाले पटाखे देखते हैं तो उनका इसके प्रति आकर्षण बढ़ता है। इन बीज पटाखों की मांग बड़े शहरों में ऑर्गेनिक स्टोर्स में भी है। पिछले 4 सालों से यहां प्राकृतिक पटाखे तैयार किए जा रहे है।

बीच पटाखे बनाते समूह की महिलाएं।
इस साल ग्राम आर्ट 1 लाख नग पटाखों की बिक्री कर चुका है। बीज पटाखे 35 रुपए से 80 रुपए तक नग तक मिलते हैं। इन पटाखों की बड़े शहरों के में अच्छी खासी डिमांड है। कुछ लोग तो दीपावली में बीज पटाखों के गिफ्ट हैंपर भी बनाते हैं। ग्राम आर्ट बीज पटाखों की डिजिटल प्लेटफार्म पर बिक्री करता है। इसे खरीदने वाले ऑनलाइन इन्हें मंगवा सकते हैं।
बीज पटाखो से महिलाएं हो रही है आत्मनिर्भर
ग्रामआर्ट के देशी बीजों को संग्रहित करने के अभियान में सैंकड़ों महिलाए जुड़ी हुई है। इस अभियान से जुड़ी महिलाओं के मुताबिक उनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी लेकिन अभियान से जुड़ने के बाद प्रत्येक महिलाएं 10 से 12 जार प्रतिमाह की कमाई कर रही है।
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