Chanachur changed the fate of the women of Saidpur village supplied to many districts of Bihar

जहानाबाद. जहां चाह वहीं राह, इस कहावत को जहानाबाद की महिलाएं चरितार्थ कर रही हैं और उद्यमी बनकर अच्छी कमाई कर रही हैं. सैदपुर की महिलाएं उद्यम की दुनिया में हाथ आजमा रही हैं. पहले इनकी जिंदगी संघर्षों से भरी थी. दूसरों के खेतों में मजदूरी करना पड़ता था. पति परदेस में रहते थे. रोजाना काम नहीं मिल पाता था. ऐसे में मुश्किल से जीवन गुजर-बसर होता था. सालों मजदूरी के जाल में उलझकर जिंदगी गुजरती जा रही थी. ऐसा लग रहा था कि उम्र तो निकलती जा रही, पता नहीं भविष्य का क्या होगा?
ऐसे में मखदुमपुर प्रखंड स्थित सैदपुर में प्रयोग के तौर पर चनाचूर बनाने का काम शुरू किया गया. लोगों को यह रास आई. फिर धीरे-धीरे व्यापार का विस्तार हो गया. आज करीब 40 घरों में चनाचूर बनता है. महिलाएं और पुरुष दोनों मिलकर काम कर रहे हैं. आज चनाचूर का व्यापार होने से किसी को बाहर जाने की जरूरत नहीं पड़ रही है. रोजाना की कमाई 200 से 300 रुपए है. घर पर रहने की वजह से मजदूरी का भी साइड से काम हो जाता है. इससे अच्छी कमाई भी हो जाती है.
सैदपुर के 40 घरों में बन रहा है चनाचूर
सैदपुर की महिलाएं जीविका से जुड़ी हुई हैं. घर पर चनाचूर बनाने का काम महिलाएं करती हैं. पुरुष बाहर का काम देखते हैं. चनाचूर की सप्लाई पटना और गया के बीच चलने वाली ट्रेन में होती है. साथ ही डिमांड पर इसकी सप्लाई अरवल, पटना, गया और दिल्ली तक करते हैं. गांव की महिला मालती देवी ने लोकल 18 को बताया कि यहां सबसे पहले इसकी शुरुआत मिथिलेश पंडित ने की थी. इसके बाद एक-दूसरे से सीखकर धीरे-धीरे सीखा विस्तार हो गया. आज स्थिति ऐसी है कि यहां करीब 40 घरों में यह काम हो रहा है.
कैसे बनाया जाता है चनाचूर
चनाचुर बनाने की प्रक्रिया बेहद आसान है. सबसे पहले बाजार से चना खरीदकर घर लाते हैं. इसके बाद उसे पानी में थोड़ी देर के लिए फूलने को छोड़ देते हैं. बाद में चना सिकुड़ जाता है तो इसे छान लिया जाता है. फिर टोकरी में रख देते हैं. जब पूरी तरह से सिकुड़ जाता है तो एक दिन बाद इसे कूटा जाता है और चनाचूर का आकर दिया जाता है. इसे सिलबट्टा पर कूटते हैं. कुटने के बाद जब यह आकर में आ जाता है तब इसे तेल में छान देते हैं. फिर इस पर कई मसालों का पावडर बनाकर इस्तेमाल करते हैं.
जीविका से जुड़कर महिलाएं बना रही हैं चनाचूर
ग्रामीण सनोज ने लोकल 18 को बताया कि यहां पहले की स्थिति काफी खराब थी. लोग गरीबी से जूझते थे. दिनभर लोग खेती करते थे तो 150 से 200 रुपए मिलते थे. इससे कुछ होता नहीं था. आज उद्यमी बनकर अच्छी कमाई हो रही है. परदेस जाने की जरूरत नहीं पड़ रही है. घर पर 300 से 400 रुपए की कमाई कर रहे हैं. साथ ही स्वरोजगार को बढ़ावा दे रहे हैं. यह गांव चनाचूर के लिए फेमस है. यहां से बाहर तक माल सप्लाई की जाती है. जीविका से करीब 20 महिलाएं जुड़ी हुई हैं. इस उद्योग से 30 से 40 महिलाएं जुड़ी हुई हैं और रोजी रोटी चल रही है.
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FIRST PUBLISHED : October 25, 2024, 20:53 IST
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