17 days in jail on false charges, 200 hearings- tribal said- to prove himself innocent he had to mortgage his land, wife and children had to work as labourers | 17 दिन जेल, 200 पेशियां और फिर बेगुनाह साबित: निर्दोश साबित होने जमीन गिरवी रखी, पत्नी-बच्चों ने मजदूरी की; आदिवासी के संघर्ष की कहानी – Guna News

मैं एक काम से गांव से चाचौड़ा आया था, तभी थाने से दीवान जी का फोन आया। वे बोले- तुम्हारे खिलाफ वारंट निकला है, थाने आना पड़ेगा। मैं थाने चला गया। यहां दीवान जी मिले। करीब घंटे भर बाद एक साहब आए, उन्होंने मुझसे बातचीत की। रात थाने में ही गुजारी और सुबह
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इधर, घर नहीं लौटा था तो पत्नी-बच्चे मुझे खोजने के बाद थाने पहुंचे, तब उन्हें मेरे जेल में होने की जानकारी मिली। पत्नी-बच्चों ने गांव वालों की मदद से मेरी जमानत करवाई। मैं 17 दिन बिना किसी गुनाह के जेल में रहा। खुद को निर्दोष साबित करने के लिए 5 साल तक कोर्ट में करीब 200 पेशियां की।
यह पीड़ा है गुना जिले के 45 वर्षीय आदिवासी जगदीश भील की। जिसका घर गुना जिला मुख्यालय से करीब 70 किलोमीटर दूर चाचौड़ा के आमासेर गांव में है। 8 अक्टूबर को गुना जिला अदालत ने उसे बरी किया है। इस दौरान जगदीश को उसके गांव से कोर्ट तक आवाजाही और लीगल फीस के लिए जमीन तक गिरवी रखना पड़ा।
दैनिक भास्कर ने जगदीश से बातचीत कर 5 साल हुई परेशानियों को जाना…
पहले पूरा मामला समझ लीजिए गुना के धरनावदा थाना इलाके में 22 सितंबर 1997 को बांसखेडी गांव के रामस्वरूप और बाबूलाल बाइक से कहीं जा रहे थे। जैसे ही वे गढ़ा की पुलिया के पास पहुंचे, शाम करीब 7 बजे दो लोगों ने लूट के इरादे से उन पर हमला कर दिया। एक ने बाबूलाल के सिर पर फरसा मारा। दूसरे ने कहा- जल्दी से रुपए मांगे। डरे-सहमकर राम स्वरूप ने 10-10 रुपए के नोटों की गड्डी निकालकर उन्हें दे दी। उसी समय उनके पीछे रामभरोसा और गुरूदयाल शर्मा भी एक बाइक से आए, तब अन्य दो लूटेरों ने उन्हें भी रोक लिया। रामभरोसा से 1,305 रुपए और गुरू दयाल से 130 रुपए समेत पीले रंग की रिको कंपनी की घड़ी छीन ली थी। धरनावदा थाने में दर्ज FIR के अनुसार, चारों लुटेरे लाठी, लुहांगी, तलवार, फरसा आदि लिए थे और स्थानीय भाषा बोल रहे थे। फरसा मारने वाला व्यक्ति काले रंग का पेंट और हरे रंग की शर्ट पहने था।
पड़ताल के बाद पुलिस ने राजस्थान के झालावाड़ के मनोहर थाना अंतर्गत महाराजपुरा गांव के रमेश सिंह पिता वंशीलाल (35) को गिरफ्तार कर लिया। उससे पूछताछ में तीन अन्य आरोपियों के नाम पता चले। जिसके आधार पर गुना जिले के चांचौड़ा के आमा सेर गांव के रहने वाले जगदीश पुत्र निर्भय सिंह भील (45), राजस्थान के महाराज पुरा गांव के फूलसिंह पुत्र घीसीलाल मीना (46), ज्ञानसिंह पुत्र भंवरलाल मीना (38) को भी आरोपी बनाया दिया गया।

22 साल बाद जगदीश की गिरफ्तारी हुई पहले आरोपी के बरी हो जाने के बाद केस फाइल रिकॉर्ड में चली गई। बाकी तीनों आरोपी फरार थे। इसी दौरान घटना के 22 साल बाद 2019 में इस मामले में जगदीश भील को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। 15 मई 2019 को उसे कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया गया। 15 से 31 मई तक 17 दिन वह जेल में ही रहा। 1 जुलाई को घर लौटा।
5 साल बाद-200 पेशियों के बाद बरी हुआ जगदीश के ऊपर जिला कोर्ट में ट्रायल शुरू हुआ, कोर्ट में उसकी पेशियां शुरू हुईं। इसी दौरान 18 मार्च 2020 को पीड़ित रामस्वरूप की मौत हो गई। घटना के अन्य साक्षी और पीड़ित गुरूदयाल शर्मा ने अपने कोर्ट में जगदीश को पहचानने से ही इनकार कर दिया। हर बार हुई पेशी में गुरू दयाल ने यही दोहराया कि गढ़ा घाटी पर जिन लोगों ने उससे मारपीट की थी, जगदीश उनसे से नहीं है। यही बात अन्य पीड़ित और साक्षी रामभरोसा ने भी कोर्ट में कही। उसने भी जगदीश को पहचानने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने पीड़ितों के बयान और जगदीश भील के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिलने पर उसे बरी कर दिया।

वकील कुलदीप गुर्जर ने बताया, जगदीश का नाम आरोपी ने पुलिस को पूछताछ में बताया था। जिसके कारण केस चला। 27 वर्ष बाद जगदीश को कोर्ट ने सबूतों के अभाव में बरी किया है।
बेगुनाही साबित करने के लिए तीन बीघा जमीन गिरवी रखी आदिवासी जगदीश कभी स्कूल तक नहीं गए। उन्होंने बताया कि मैं खेती किसानी करके अपना परिवार चलाता हूं, करीब 3 बीघा जमीन है। मेरे घर में पत्नी और 17 और 20 साल के दो बच्चे हैं। बड़े बेटे की शादी हो चुकी है।
जगदीश ने बताया कि जब मुझे जेल भेज दिया गया तो सभी बहुत परेशान हुए। पड़ोसियों और गांव वालों ने बहुत साथ दिया। मुझे पेशियों के लिए करीब 200 बार बस से आना जाना पड़ा। वकील साहब को देने तक के लिए फीस नहीं थी। इसलिए 25 हजार रुपए में अपनी जमीन को गिरवी रखना पड़ा। इसके बाद अपनी जमीन को पाने के लिए मुझे मेरी पत्नी और बड़े बेटे को ढाई साल तक मजदूरी करना पड़ा। उन्होंने बताया कि इस केस से पहले मैंने कभी कोर्ट कचहरी के बारे में सुना तक नहीं था।
वकील बोले- पेशियां जगदीश के लिए सजा बन गई कोर्ट में उसका पक्ष रखने वाले एडवोकेट कुलदीप गुर्जर ने बताया कि जगदीश को पेशियों पर लगातार आना पड़ता था। ट्रायल के दौरान उसने लगभग 150-200 पेशियां की होंगी। उसके लिए तो ये पेशियां ही सजा हो गई। कोर्ट में पीड़ितों के भी बयान हुए, जिसमें उन्होंने जगदीश को पहचानने से ही इनकार कर दिया। उसका नाम तो आरोपी ने पुलिस को पूछताछ में बताया था, जिसके कारण यह केस चला। अब 27 वर्ष बाद जगदीश को कोर्ट ने सबूतों के अभाव में बरी किया है।
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