मध्यप्रदेश

‘Happy ending’ of monsoon in MP | मानसून…देरी से लेकिन दुरुस्त आया, 200 डैम फुल: 44 जिलों में कोटे से ज्यादा बारिश, उज्जैन बाउंड्री पर; रीवा में सबसे कम – Bhopal News

मध्यप्रदेश में इस बार 37.3 इंच की बजाय 44.1 इंच बारिश हुई, जो 18% ज्यादा है।

मध्यप्रदेश में मानसून ने अपना सफर पूरा कर लिया है। पिछली बार प्रदेश के आधे से ज्यादा जिलों में सामान्य से कम बारिश हुई लेकिन इस बार लोगों को मानसून से ये शिकायत नहीं है। 44 जिलों में कोटे से ज्यादा बारिश हुई है। नतीजा ये रहा है कि सोयाबीन का उत्पादन

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बुंदेलखंड के मैदान से मालवा के पठार तक 282 में से 200 से ज्यादा डैम ​​​​​​करीब 100 फीसदी भर चुके हैं। सिंचाई और बिजली उत्पादन की चिंता खत्म हो गई है। भू-जलस्तर बढ़ने से पीने के पानी की किल्लत भी दूर होगी। सात दिन देरी से आया मानसून दुरुस्त गया है और सबको राहत बांट गया है।

सबसे ज्यादा बारिश मंडला जिले में

इंदौर समेत 5 जिलों में सामान्य के बराबर पानी गिरा। उज्जैन बाउंड्री पर रहा जबकि रीवा में सबसे कम बारिश हुई। पिछली बार 27 जिलों में कम बारिश हुई थी। इस बार सिर्फ 3 जिले ही इस दायरे में रहे।

ओवरऑल तस्वीर पर नजर डालें तो एमपी में 37.3 इंच की बजाय 44.1 इंच बारिश हो गई, जो 18% ज्यादा है। श्योपुर-भिंड में सामान्य से दोगुनी बारिश हो गई। जून, जुलाई, अगस्त और सितंबर में अच्छा पानी गिरने के बाद 2 अक्टूबर से मानसून की विदाई शुरू हो गई।

15 अक्टूबर को आखिरी 6 जिले- बुरहानपुर, बैतूल, छिंदवाड़ा, पांढुर्णा, दक्षिणी सिवनी और बालाघाट से भी मानसून लौटने की घोषणा कर दी गई। सबसे ज्यादा बारिश मंडला जिले में 60.6 इंच और सबसे कम बारिश रीवा में 29.2 इंच हुई।

जानिए, बारिश की ओवरऑल स्थिति

21 जून को एंटर हुआ था मानसून मध्यप्रदेश में इस साल मानसून 21 जून को आया। इससे पहले प्री-मानसून भी एक्टिव रहा। जून में कोटे के बराबर बारिश हुई तो जुलाई में कोटे से ज्यादा पानी गिर गया। ऐसा ही अगस्त-सितंबर में भी रहा। इस वजह से सामान्य से अधिक बारिश दर्ज की गई।

मानसून की विदाई 15 अक्टूबर तक हुई। पिछले 10 साल में दूसरी बार मानसून सबसे लेट लौटा है। इससे पहले साल 2020 को 14 जून को एंट्री और 21 अक्टूबर को विदाई हुई थी।

प्रदेश के 200 डैम-तालाब फुल हो गए हैं। भोपाल के केरवा डैम के भी सभी गेट खोलने पड़े थे।

प्रदेश के 200 डैम-तालाब फुल हो गए हैं। भोपाल के केरवा डैम के भी सभी गेट खोलने पड़े थे।

ऐसे समझें, कम-ज्यादा बारिश का गणित…

  • जहां 90% बारिश हो, उन जिलों को ‘बारिश की भारी कमी’ की कैटेगिरी में रखा जाता है। इस बार सिर्फ 2 जिले- सतना और रीवा इस कैटेगिरी में शामिल हैं।
  • 90-95% बारिश वाले जिले ‘सामान्य से कम’ की कैटेगिरी में आते हैं, इसमें उज्जैन शामिल है। यहां 94% बारिश हुई।
  • प्रदेश के 5 जिले- इंदौर, बालाघाट, हरदा, बैतूल और उमरिया में 96% ये 98% तक बारिश हुई, जो सामान्य बारिश की कैटेगिरी में आता है।
  • 104-110% तक बारिश सामान्य से ज्यादा की कैटेगिरी में आती है। ऐसे जिलो में डिंडौरी, दमोह, धार, नरसिंहपुर, छतरपुर, मंदसौर, शहडोल और सीहोर शामिल हैं।
  • 110% से ऊपर बारिश वाले जिलों में श्योपुर, भिंड, निवाड़ी, ग्वालियर, शिवपुरी, अलीराजपुर, राजगढ़, मुरैना, सिवनी, भोपाल, सिंगरौली, मंडला, छिंदवाड़ा, गुना, खरगोन, नीमच, अशोकनगर, झाबुआ, बड़वानी, रतलाम, सागर, टीकमगढ़, सीधी, देवास, दतिया, आगर-मालवा, खंडवा, अनूपपुर, रायसेन, बुरहानपुर, कटनी और विदिशा शामिल हैं।

अच्छी बारिश के 3 फायदे…

पेयजल संकट नहीं रहेगा: इस मानसून में प्रदेश के 282 में से 200 से ज्यादा डैम भर गए। इससे बड़े शहर भोपाल, इंदौर, ग्वालियर, जबलपुर समेत अन्य शहरों में पीने का भरपूर पानी मिल सकेगा। भोपाल के 3 बांध- भदभदा, कोलार और केरवा डैम के फुल होने से 23 से 25 लाख की आबादी को अगले एक साल तक पीने के पानी की किल्लत नहीं होगी।

इसी तरह ग्वालियर के तिघरा डैम, जबलपुर के बरगी समेत इंदिरा सागर, ओंकारेश्वर, मड़ीखेड़ा, भदभदा, तवा, मोहनपुरा, हलाली, अटल सागर, बानसुजारा, जोहिला समेत कई बांधों में भरपूर पानी है।

अच्छी बारिश होने की वजह से भोपाल के भदभदा डैम के गेट सीजन में 10 बार खुल गए।

अच्छी बारिश होने की वजह से भोपाल के भदभदा डैम के गेट सीजन में 10 बार खुल गए।

गेहूं-चने का उत्पादन बढ़ेगा: एमपी में खरीफ की प्रमुख फसल सोयाबीन है। इस साल 55 से 60 लाख हेक्टेयर में सोयाबीन की बुआई हुई है। बारिश अच्छी हुई इसलिए सोयाबीन का उत्पादन 11 से 12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होने का अनुमान है। इस हिसाब से प्रदेश में 60 से 65 लाख क्विंटल सोयाबीन उत्पादित हो सकता है।

कृषि वैज्ञान केंद्र, शाजापुर के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. एके धाकड़ ने बताया कि सोयाबीन के अलावा धान, आलू-प्याज समेत अन्य फसलों को भी अच्छी बारिश का फायदा मिलेगा। वहीं, रबी की मुख्य फसल गेहूं-चने का उत्पादन भी बढ़ जाएगा।

बिजली का उत्पादन: प्रदेश के कुल बिजली उत्पादन का 13 फीसदी हाइड्रो पावर प्लांट्स से मिलता है। हाइड्रो पावर का रिन्युएबल एनर्जी में हिस्सा 36 प्रतिशत के करीब है। प्रदेश में कुल 14 हाइड्रो पावर प्लांट हैं, जिनसे कुल 3653.08 मेगावॉट बिजली उत्पादित हो रही है।

मानसून विदा… अब आगे क्या स्थिति रहेगी

गरज-चमक बनी रहेगी, रात में ठंडक भी बढ़ेगी

सीनियर मौसम वैज्ञानिक डॉ. दिव्या ई. सुरेंद्रन ने बताया कि पूरे प्रदेश से मानसून लौट गया है। बुधवार से मौसम साफ हो जाएगा। हालांकि, लो प्रेशर एरिया और ट्रफ की वजह से कुछ जिलों में हल्की बारिश और गरज-चमक की स्थिति बनी रहेगी।अगले कुछ दिन में ठंड भी दस्तक दे देगी। इससे पहले मंगलवार को कई जिलों में मौसम बदला रहा। कुछ जगह तो ओले भी गिरे। पिछले 5 दिन से प्रदेश में ऐसा ही मौसम बना हुआ है।

​​​​भू-जल स्तर: प्रदेश का 76% ग्राउंड वाटर लेवल बारिश से बढ़ता है। इसके अलावा नहर, जल संरक्षण इकाइयां और अन्य जल स्त्रोत भी ग्राउंड वाटर लेवल बढ़ाते हैं। ग्राउंड वाटर रिपोर्ट के अनुसार, मध्यप्रदेश में साल 2023 में 35.47 बिलियन क्यूबिक मीटर (बीसीएम) ग्राउंड वाटर लेवल बढ़ा था। इस बार भी यह बढ़ेगा।

2023-2024 में सबसे कम-सबसे ज्यादा बारिश

एमपी में सबसे ज्यादा बारिश वाले टॉप 10 जिलों में 2024 में मंडला, सिवनी और निवाड़ी सबसे आगे रहे। मंडला में 60 इंच से ज्यादा पानी गिर गया। वहीं, 2023 में जिन टॉप 10 जिलों में सबसे ज्यादा बारिश हुई थी, उनमें नरसिंहपुर, इंदौर और सिवनी सबसे आगे थे। तब नरसिंहपुर में सबसे ज्यादा 51 इंच पानी गिरा था।

इसी तरह 2024 में सबसे कम बारिश वाले टॉप 10 जिलों में रीवा सबसे आगे है। यहां सिर्फ 29.20 इंच ही पानी गिरा है। इससे पहले 2023 में अशोकनगर में 23.11 इंच पानी गिरा था।

2023 में इन जिलों में हुई थी सबसे कम-ज्यादा बारिश


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एडवोकेट अरविन्द जैन

संपादक, बुंदेलखंड समाचार अधिमान्य पत्रकार मध्यप्रदेश शासन

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