In Balaghat, MLA’s wife is campaigning against her husband | बालाघाट में विधायक पत्नी कर रहीं पति के खिलाफ प्रचार: झोपड़ी में रह रहे बसपा प्रत्याशी बोले-पत्नी भ्रष्टों के साथ, जवाब-पति ही राजनीतिक गुरु

बालाघाट2 मिनट पहलेलेखक: ऋषिकेश कुमार
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‘जब ओलावृष्टि हुई और किसानों की फसल बर्बाद हो गई तो अनुभा मुंजारे कहां थीं? तब विधायक क्षेत्र के किसानों को अपने हाल पर छोड़कर काशी-मथुरा घूम रही थीं। अब ये वो अनुभा मुंजारे नहीं रहीं। ये भ्रष्टाचारियों के साथ मिल गई हैं।’
ये बयान बालाघाट से बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी कंकर मुंजारे का है। मुंजारे हर सभा में इस बयान को दोहराकर अपनी विधायक पत्नी अनुभा मुंजारे के खिलाफ ही बोल रहे हैं। इसी के साथ वे कांग्रेस को वोट न देने की अपील भी कर रहे हैं।
दूसरी तरफ, बालाघाट से कांग्रेस विधायक अनुभा मुंजारे सभाओं और बैठकों में कांग्रेस उम्मीदवार सम्राट सिंह सरस्वार के लिए वोट मांग रही हैं जबकि उनके पति कंकर मुंजारे खुद बसपा से प्रत्याशी हैं।
पति-पत्नी के बीच का ये वैचारिक मतभेद प्रदेश की सियासत में चर्चा का विषय बना हुआ है। पति-पत्नी एक दूसरे के खिलाफ प्रचार तो कर ही रहे हैं, अलग-अलग भी रह रहे हैं। वोटिंग यानी 19 अप्रैल तक कंकर मुंजारे ने अपना घर छोड़ दिया है।
वे बालाघाट से 20 किमी दूर खेत में झोपड़ी बनाकर रह रहे हैं। वहीं, अनुभा मुंजारे बालाघाट के मकान में अपने बेटे के साथ हैं। पढ़िए, किस तरह बालाघाट लोकसभा के चुनाव में पति और पत्नी के बीच नजर आ रहा है ये राजनीतिक अलगाव…

बालाघाट से 20 किमी दूर कंकर मुंजारे का डेरा
कंकर मुंजारे इस समय शहर से बीस किमी दूर खेत में झोपड़ी बनाकर रह रहे हैं। दैनिक भास्कर की टीम जब उनसे मिली तब वे खेत में कार्यकर्ताओं के साथ बैठकर मीटिंग कर रहे थे। पूछने पर बोले- हमारी चुनावी रणनीति इस जगह बनती है।
खेत में प्लास्टिक की पन्नी से बनी एक झोपड़ी है। बांस-बल्लियों पर खड़ी झोपड़ी की छत जामुन के पत्तों से बनाई गई है। तीन तरफ से तो इसे प्लास्टिक की चादर से ढंका गया है। एक तरफ से ये खुली है। झोपड़ी के भीतर एक पलंग रखा है। पलंग पर सफेद चादर बिछाई गई है।
ओढ़ने के लिए भी कुछ चादरें रखी हुई है। बगल में ही कुछ किताबें भी है। झोपड़ी के बाहरी तरफ की प्लास्टिक की पन्नी पर तीन तस्वीरें लगी है। चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह और समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया की।

बालाघाट से 20 किमी दूर पंढार रोड पर कंकर मुंजारे ने खेत में झोपड़ी बनाई है।
बोले- एक ही घर में दो पार्टी के झंडे नहीं लगेंगे
झोपड़ी से कुछ ही दूरी पर लकड़ियां रखी हैं। यहां चूल्हा भी बना है। कंकर कहते हैं- यहीं पर उनका खाना बनता है। वे कहते हैं- मैं तो वनवास काट रहा हूं। दरअसल, जिस दिन कंकर मुंजारे ने बसपा से नामांकन दाखिल किया था उसी दिन से उनका पत्नी से वैचारिक अलगाव सामने आया था।
उनसे पूछा कि घर छोड़ने की क्या जरूरत थी, तो बोले- मैंने लोकसभा का टिकट कांग्रेस से मांगा था। मुझे नेताओं ने भरोसा तो दिया, मगर टिकट सम्राट सिंह सरस्वार को दे दिया। तब मैंने बसपा से चुनाव लड़ने का फैसला किया।
मैंने पत्नी अनुभा मुंजारे को कहा कि आपको कांग्रेस की राजनीति करना है तो दूसरा घर देख लीजिए। एक ही घर में दो पार्टी के झंडे नहीं लगेंगे। अनुभा ने कहा कि मैं इस घर में ब्याह कर आई हूं इसलिए घर छोड़ने का सवाल ही पैदा नहीं होता। वो कहते हैं कि जब अनुभा ने बात नहीं मानी तो सिद्धांतों के लिए मैंने ही घर छोड़ दिया। वे इसे वैचारिक लड़ाई कहते हैं।

कहा- 19 अप्रैल की वोटिंग के बाद लौटूंगा घर
कंकर कहते हैं कि अनुभा मुंजारे जिस रास्ते पर चल रही हैं, उससे मेरा रास्ता बिल्कुल अलग है। मैं खुलकर ये बात लोगों को बता रहा हूं। मैं यदि लोगों को ये नहीं कहूंगा कि हम दोनों के रास्ते अलग हैं तो लोग समझेंगे कि जो भी काम वो कर रही हैं, उसमें मेरी सहमति है। उनसे पूछा कि घर कब तक लौटेंगे तो बोले कि 19 अप्रैल की वोटिंग के बाद लौटूंगा। वो मेरा घर है, मेरे नाम पर है। अनुभा दहेज में ये घर नहीं लाई थीं।

कंकर मुंजारे खेत में ही चुनाव की रणनीति बनाते हैं। यहीं से प्रचार की शुरुआत होती है।
अनुभा बोलीं- रिश्तों में दरार नहीं, कांग्रेस के लिए काम कर रही हूं
कंकर मुंजारे तो झोपड़ी में रहकर चुनाव लड़ रहे हैं, इधर अनुभा मुंजारे बालाघाट में अपने मकान में हैं। वे रोज सुबह कांग्रेस उम्मीदवार सम्राट सिंह सरस्वार के प्रचार में जुट जाती हैं। सम्राट सिंह सरस्वार के पिता अशोक सिंह सरस्वार के सामने वे दो बार चुनाव लड़ चुकी हैं।
भास्कर ने अनुभा से पूछा कि पति बसपा से चुनाव लड़ रहे हैं, वोट कांग्रेस के लिए मांग रही हैं, किसी तरह की दुविधा की स्थिति तो नहीं। तो वे बोलीं- मैं व्यक्तिगत जीवन और राजनीतिक जीवन को अलग रखती हूं। पति के लिए मेरे दिल में बहुत सम्मान है। वो क्षेत्र के एक कद्दावर नेता हैं।
मगर कांग्रेस की टिकट मिलने के बाद मुझे विधानसभा में पहली जीत मिली। तब से मैं एक कार्यकर्ता के नाते कांग्रेस पार्टी की बेहतरी के लिए काम कर रही हूं।

कंकर मुंजारे आक्रामक, अनुभा पति के खिलाफ नरम
कंकर मुंजारे अपनी सभाओं में सबसे ज्यादा अनुभा मुंजारे का ही जिक्र करते हैं। किसी गांव में सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने ये तक कह दिया कि अगर अनुभा मुंजारे उनकी पत्नी नहीं होतीं, तो क्या कभी विधायक बन पातीं? कांग्रेस की यहां जमानत जब्त होती रही है। हमारे नाम पर खुद तो जीतीं, एक और उम्मीदवार के क्षेत्र में प्रचार कर मेरे नाम पर वोट मांगा।
अनुभा अपने पति के इस टिप्पणी पर कहती हैं कि मैं अपना सिर गर्व से ऊंचा करके कहती हूं मैं कंकर मुंजारे जी की पत्नी हूं। वो मेरे राजनीतिक गुरु रहे हैं। जब वो सांसद थे तो 1991 में मेरी उनसे शादी हुई थी। मैं अगर राजनीति में नहीं होती तो पेशे से एक शिक्षक होती।
मगर वे मुझे राजनीति में लेकर आए और मैंने सरकारी नौकरी जॉइन नहीं की। अब तक जो भी चुनाव मैंने जीते हैं उसमें इनके सहयोग को मैं नकार नहीं सकती।

अनुभा कांग्रेस प्रत्याशी सम्राट सिंह सरस्वार के लिए वोट मांग रही हैं।
बोलीं- मैं जमीन पर उतर कर संघर्ष करने वाली महिला
जब मैंने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा तो इस बार मुझे जीत मिली। वे कहती है कि कांग्रेस नेतृत्व ने भी कुछ देखकर ही मुझे गौरी शंकर बिसेन के खिलाफ टिकट दिया होगा? कुछ तो मेरी योग्यता रही होगी? कुछ तो काबिलियत होगी? जनता अच्छे से जानती है कि मैं वो महिला नहीं हूं, जो कुर्सी पर बैठकर सिर्फ कलम चलाए। वो जानती है कि मैं जमीन पर उतर कर संघर्ष करने वाली महिला हूं।

पति को अपना गुरु मानती हैं अनुभा
अनुभा मुंजारे पति को अपना गुरु कहती हैं, लेकिन इस जवाब पर कंकर मुंजारे कहते हैं कि उन्होंने अनुभा को राजनीति में आने के लिए दबाव नहीं बनाया था। मेरे कामकाज के तरीके देखकर उनकी भी इच्छा राजनीति में आने की हुई तो मैंने सहमति दे दी।

आरोप -जब ओलावृष्टि हुई तो विधायक मथुरा-काशी घूम रही थीं
कंकर मुंजारे से जब हमने सवाल किया कि वे अनुभा मुंजारे के चार महीने के अब तक के कार्यकाल को कैसे देखते हैं? इस पर एक लाइन का जवाब देते है- होपलेस। वे कहते हैं कि चुनाव जीतने के बाद वह बदल चुकी हैं। वो मुझे राजनीतिक गुरु कहती हैं, लेकिन ऐसी शिष्य मुझे नहीं चाहिए। जनता के प्रति उनका कोई सरोकार नहीं है।
लोग सुबह से ही अपनी समस्याओं को लेकर मिलने आते हैं। मगर वो बाहर आती ही नहीं और लोग निराश होकर चले जाते हैं। कई बार तो लोग बाहर से गाली देकर गए हैं। ऐसे ही जब ओलावृष्टि हुई तो वो मथुरा और काशी घूम रही थीं। क्षेत्र का किसान परेशान है और विधायक तीर्थ पर थी।

जवाब- बतौर विधायक मैंने अपनी जिम्मेदारी पूरी की
कंकर मुंजारे के इन आरोपों पर अनुभा कहती हैं कि उन्होंने यह मन्नत रखी थी कि अगर वो विधानसभा का चुनाव जीत जाती हैं, तो तीर्थ स्थलों पर जाएंगी। मैं तो दर्शन के लिए गई थी और इस बीच ओलावृष्टि हो गई। अब इस पर मेरा तो कोई जोर नहीं है। लेकिन, बतौर विधायक मैंने अपनी जिम्मेदारी पूरी की। उसी वक्त कलेक्टर से बातचीत की और तत्काल सर्वे कराने का आग्रह किया।

विधानसभा चुनाव से शुरू हुआ राजनीतिक अलगाव
पति और पत्नी के बीच ये अलगाव विधानसभा चुनाव से शुरू हुआ है। अनुभा मुंजारे को कांग्रेस से टिकट मिला तो कंकर मुंजारे ने इसका विरोध किया था। अपने घर पर कांग्रेस पार्टी का झंडा भी लगाने नहीं दिया था। दरअसल कंकर मुंजारे परसवाड़ा से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ने वाले थे।
उस वक्त कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने उनसे कहा था कि वे कांग्रेस में शामिल हो जाएं और विधानसभा का चुनाव ना लड़ें। अगर वे ऐसा करते हैं तो लोकसभा में उन्हें टिकट दिया जा सकता है। मगर वे विधानसभा चुनाव लड़ने पर अड़े रहे।
पत्नी के विधानसभा चुनाव जीतने के बाद कंकर मुंजारे भी उनके साथ विजय जुलूस में नजर आए थे। लेकिन वे पैदल चल रहे थे। कंकर मुंजारे कहते हैं कि क्षेत्र की एक बड़ी जनता हम दोनों को हमेशा साथ देखती आई है। उनके आग्रह पर वे रोड शो में जुड़े। मैं उनकी जीत के बाद भी नॉर्मल ही था। मगर अफसोस कि जनता ने जिस उम्मीद से इन्हें चुना था, वो उसमें पूरी तरह से नाकाम रही हैं।

ये तस्वीर उस वक्त की है, जब विधायक चुने जाने के बाद अनुभा मुंजारे का विजय जुलूस निकला था। कंकर मुंजारे इसमें शामिल हुए थे।
बालाघाट लोकसभा सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला
कंकर मुंजारे के बसपा प्रत्याशी के तौर पर चुनावी मैदान में उतरने से यहां त्रिकोणीय मुकाबले के आसार है। जानकारों के मुताबिक बालाघाट में चुनाव में जातिगत समीकरण हावी रहते हैं। भाजपा ने भारती पारधी को यहां से टिकट दिया है। वे पंवार समुदाय से हैं।
कांग्रेस ने सम्राट सरस्वार को टिकट दिया है। सरस्वार ठाकुर बिरादरी से आते हैं। पूर्व सांसद कंकर मुंजारे बसपा से हैं और वे लोधी समाज से हैं। यानी मुकाबला पंवार, ठाकुर और लोधी समाज के उम्मीदवारों के बीच है। इस जातिगत गुणा-भाग की चर्चा ही यहां सबसे ज्यादा है।
वरिष्ठ पत्रकार सोहन वैद्य का कहना है कि कंकर मुंजारे को लोधी वोट तो मिलेगा, लेकिन यह समाज इस बार बंटता हुआ दिख रहा है। यह हो सकता है कि उनकी पत्नी अनुभा लोधी वोट कांग्रेस के लिए साध लें, लेकिन ऐसा होता नजर नहीं आ रहा है।
मरार समाज भी फिलहाल असमंजस में है, क्योंकि कांग्रेस ने हिना कांवरे को टिकट नहीं दिया। जबकि भाजपा ने इस समाज को साधने के लिए ही मरार समाज से आने वाले रामकिशोर कांवरे को विधानसभा चुनाव हारने के बावजूद जिला अध्यक्ष बनाया है। आदिवासी वोट उधर जाएगा, जो उन्हें साधने में सफल होगा।

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