Success Story: लॉक डाउन में गई नौकरी तो शुरू किया डेयरी फॉर्म, आज दूसरों को भी रोजगार देते हैं अनंत

खरगोन: कहते हैं सफलता आसानी से नहीं मिलती लेकिन लक्ष्य सही हो, कड़ी मेहनत की जाए और नीयत साफ रखें तो ये आपसे बहुत दिन दूर भी नहीं रह सकती. खरगोन के युवा अनंत जैन की सक्सेज स्टोरी से ऐसा ही पता चलता है. सरकार की योजनाओं की मदद से चार साल पहले शुरू किए डेयरी फार्म से आज वे घर बैठे हर महीने करीब सवा लाख रुपए की आमदनी प्राप्त कर रहे है. अनंत की यह सफलता कई लोगों के लिए प्रेरणा बन चुकी है.
पेशे से इंजीनियर
जिला मुख्यालय से लगभग 40 km दूर गांव छोटी कसरावद के रहने वाले 29 साल के अनंत जैन ने लोकल 18 से बातचीत में कहा कि वे पेशे से इंजीनियर हैं. इंदौर की एक निजी कंपनी के लिए 75 हजार रुपए महीने के वेतन पर काम कर रहे थे लेकिन कोविड के दौरान नौकरी छूट गई और वे वापस घर लौट आए.
ऐसे आया दूध व्यवसाय का आइडिया
यहां आकर देखा की पूरा मार्केट बंद था, कुछ नही मिलता था लेकिन दूध और मेडिकल की सेवा चालू थी. लोग ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए दूध में पानी मिला कर दे रहे थे. बस यही बात अनंत को खल गई और गांव के लोगों को शुद्ध दूध मुहैया कराने के उद्देश्य से दो-तीन भैंस खरीदकर उनसे मिले शुद्ध दूध को लोगों को घर-घर जाकर देना शुरू किया. अनंत ने इसी फील्ड में अपना भविष्य संवारने का मन बनाया.
सरकार की योजनाओं से मिली मदद
अनंत ने बताया कि नाबार्ड से 5 लाख का सहयोग मिला. इसमें डेढ़ लाख रुपए का अनुदान प्राप्त हुआ. इसी राशि से डेयरी फार्म का व्यवसाय शुरू किया. पशुओं की संख्या बढ़ाई. लोन चुकाने के बाद प्रधान मंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम (PMEGP) योजना के तहत 19 लाख का फिर लोन लिया, इसमें 7 लाख की सब्सिडी मिली है.
रोजाना 700 लीटर दूध की खपत
वर्तमान में डेढ़ बीघा जमीन पर बने डेयरी फार्म हाउस में 30 भैंस और 45 विभिन्न नस्लों की गाय है. इनसे रोजाना करीब 700 लीटर दूध मिलता है. इस दूध को घर-घर बेचा जाता है साथ ही कुछ कंपनियों को भी सप्लाई किया जाता है. इससे उन्हें हर महीने खर्च काटने के बाद एक लाख रुपए के करीब आमदनी होती है. सात लोगों को रोजगार भी दे रहे है. कर्मचारियों को रहने के लिए आवास सुविधा भी दी है. जिसे नौकरी से हटाया आज वो लोगों को काम दे रहा है.
40 बीघा खेत में नेपियर घास की खेती
इसके अलावा अनंत अपने 35 से 40 बीघा खेत में पारंपरिक उपज (कपास, चना, मक्का) की जगह नेपियर घास सीओ-11 की खेती भी करते है. पहले उन्हें सूखी घास 9 से 10 रुपए की लागत में खरीदनी पड़ती थी, अब हरी घास 2 से 3 रुपए किलो में मिल रही है. अब वे इसी घास को अपने पशुओं को खिलाते है, क्योंकि इसमें न्यूट्रिशन की वैल्यू 22 प्रतिशत है, जिससे दूध की क्वालिटी ज्यादा बेहतर मिलती है और पशु भी स्वस्थ रहते हैं. बची हुई घास अन्य लोगों को बेच देते है. इससे भी उन्हें करीब 50 हजार रुपए महीने की आय होती है.
FIRST PUBLISHED : October 11, 2024, 11:01 IST
Source link