अजब गजब

The doctor asked why he was kept alive, his life was useless, but the mother became a vice chancellor with her strong determination and also made 150 disabled people employable

पाली. संघर्ष जीवन की अनिवार्यता है, और इसके बिना कोई महान उपलब्धि संभव नहीं. कुसुमलता भंडारी की जिंदगी इस कथन का जीता-जागता उदाहरण है. पोलियो से ग्रसित होने के बावजूद उन्होंने अपने आत्मविश्वास और संकल्प से वह हासिल किया, जिसकी कल्पना करना भी कठिन है. उनकी प्रेरणादायक यात्रा ने न केवल उन्हें सफल बनाया, बल्कि उन्होंने दूसरों के लिए भी एक नई राह दिखाई है. विकलांगता को अपनी कमजोरी मानने के बजाय, कुसुमलता ने इसे अपनी ताकत बनाई और एक मिसाल पेश की.

कुसुमलता भंडारी बचपन से पोलियो की शिकार थी, लेकिन उन्होंने इसे कभी अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया. गर्दन से नीचे का शरीर काम नहीं करता था, लेकिन उन्होंने अपने बुलंद हौसलों से सबको हैरत में डाल दिया. बिना स्कूल गए ही हाईस्कूल की परीक्षा पास की और फिर लेक्चरर बनीं. जीवन की कठिनाइयों ने उनके आत्मविश्वास को और मजबूत किया, और उन्होंने समाज में शारीरिक रूप से कमजोर लोगों के प्रति क्रूर रवैये को बदलने की ठानी. आज, कुसुमलता महात्मा गांधी दिव्यांग विश्वविद्यालय की कुलपति के रूप में अपनी सेवाएं दे रही हैं, और उनकी सफलता ने कई दिव्यांग व्यक्तियों को जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया है.

दिव्यांगों के लिए बनीं मिसाल
कुसुमलता ने देखा कि दिव्यांग लोगों के लिए शिक्षा और रोजगार की कमी है. उन्होंने इसे बदलने के लिए पहल की और प्रज्ञा निकेतन नामक छात्रावास की शुरुआत की. यहां न केवल दिव्यांग छात्रों को रहने और खाने की मुफ्त सुविधा मिलती है, बल्कि उन्हें शिक्षा और रोजगार के लिए भी ट्रेनिंग दी जाती है. कुसुमलता की कोशिशों से अब तक सैकड़ों दिव्यांग युवा शिक्षा प्राप्त कर चुके हैं और कईयों ने रोजगार पाया है. उन्होंने साबित कर दिया कि दिव्यांगता सफलता की राह में बाधा नहीं, बल्कि एक प्रेरक शक्ति हो सकती है.

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सम्मान और उपलब्धियां
कुसुमलता भंडारी को उनकी उपलब्धियों के लिए कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है. राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा, एपीजे अब्दुल कलाम और प्रतिभा पाटिल ने उन्हें सम्मानित किया है. इसके अलावा, फिल्म अभिनेता आमिर खान ने भी उन्हें सुपर आइडल का अवॉर्ड दिया. 70 से अधिक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार उनकी झोली में हैं, और आज वह किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं.

मां की प्रेरणा और संकल्प
कुसुमलता की सफलता के पीछे उनकी मां का बड़ा योगदान है. उनकी मां ने कभी उनका हौसला टूटने नहीं दिया. जब लोग कहते थे कि कुसुमलता का कोई भविष्य नहीं है, तब उनकी मां ने उन्हें प्रेरित किया और विश्वास दिलाया कि वह जीवन में कुछ बड़ा हासिल कर सकती हैं. उनकी मां का यही आत्मविश्वास कुसुमलता की सफलता की नींव बना.

दिव्यांगों के लिए किए प्रयास
कुसुमलता ने अपने संघर्षों को दूसरों के लिए भी एक प्रेरणा बनाया. जब उन्होंने देखा कि कई दिव्यांग छात्र आर्थिक तंगी के कारण पढ़ाई नहीं कर पा रहे हैं, तो उन्होंने अपने दोस्तों और सहयोगियों की मदद से प्रज्ञा निकेतन की शुरुआत की. आज इस हॉस्टल में 100 नेत्रहीन और शारीरिक रूप से विकलांग छात्र रहते हैं और पढ़ाई करते हैं. कुसुमलता ने अपनी जिंदगी को दूसरों के जीवन में बदलाव लाने का साधन बना लिया है.

चिकित्सा के बावजूद हार नहीं मानी
कुसुमलता के माता-पिता उन्हें इलाज के लिए मुंबई के चिल्ड्रन महालक्ष्मी अस्पताल ले गए थे, जहां डॉक्टर ने कह दिया था कि उनका जीवन व्यर्थ है. लेकिन उनकी मां ने हार नहीं मानी और कुसुमलता के दिमाग के विकास पर ध्यान केंद्रित किया. इसी हिम्मत और संकल्प ने कुसुमलता को आज इस मुकाम तक पहुंचाया है.

Tags: Local18, Pali news, Rajasthan news, Success Story


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एडवोकेट अरविन्द जैन

संपादक, बुंदेलखंड समाचार अधिमान्य पत्रकार मध्यप्रदेश शासन

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