मध्यप्रदेश

5 reasons why Rs 250 crore land scam was declared void | 5 वजह..जिससे 250 करोड़ का कथित जमीन घोटाला जीरो हुआ: वृद्धा समेत कई महिलाएं जेल भेजी गईं, इंदौर हाईकोर्ट ने उस केस को रद्द किया – Indore News

इंदौर हाई कोर्ट ने धार जिले के 250 करोड़ रुपए के कथित जमीन घोटाले के केस को जीरो घोषित कर दिया है। मामले में एक दो नहीं, बल्कि 34 लोगों को आरोपी को बनाया गया था। इसमें 24 पुरुषों के साथ 10 महिलाएं भी शामिल थीं। हाई कोर्ट के आदेश में सामने आया कि पुलिस

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बता दें कि पुलिस ने एक आदतन अपराधी की शिकायत पर धार के प्रतिष्ठित लोगों के खिलाफ केस दर्ज कर लिया था और 16 हजार पन्नों का चालान भी पेश कर दिया था। कई आरोपियों ने यह दौर जेल में काटा, इनमें बुजुर्ग महिला भी शामिल रहीं।

4 पाइंट्स में मामला समझ लीजिए

– आदतन अपराधी ‎जयसिंह ठाकुर की शिकायत पर‎ पुलिस ने जमीन घोटाले में 28 नवंबर 2021 को 27 लोगों पर केस दर्ज किया और गिरफ्तारियां शुरू कर दीं। एक संस्था सहित शहर के कई प्रतिष्ठित लोग शामिल थे।

– पुलिस ने 60 साल से ज्यादा की वृद्धा को भी गिरफ्तार कर जेल भेजा। जिस जमीन की खरीद-फरोख्त आरोपियों के बीच हुई थी, उसे सरकारी घोषित कर दिया गया। आयुषि सुधीर जैन और सरिता जैन ने हाई कोर्ट में इसके खिलाफ याचिका लगाई।

– याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट को बताया कि यह जमीन हमने (आयुषि, सरिता) खरीदी थी। सेल डीड हुई, परमिशन लेकर ही निर्माण किया है। फिर भी जमीन को सरकारी बता दिया है। स्टे के बावजूद कार्रवाई की गई।

– कोर्ट को यह भी बताया कि डीएसपी यशस्वी शिंदे ने ऐसे व्यक्ति की शिकायत पर केस दर्ज किया है जिस पर खुद 10 अपराध दर्ज हैं। उसकी शिकायत पर 250 करोड़ का घोटाला मानकर गिरफ्तारियां कर लीं। यहां तक कि जमीन खरीदने वालों को भी आरोपी बनाया जिन्होंने लाखों रुपए देकर जमीन खरीदी, रजिस्ट्री भी कराई।

5 वजह, जिससे 250 करोड़ का कथित जमीन घोटाला शून्य घोषित हो गया

दावा 1- धार महाराज ने अस्पताल के लिए जमीन दी, कोई सबूत नहीं।

खारिज क्यों : शासन ने कहा कि 1895 में धार महाराज ने ये संपत्ति अस्पताल बनाने के लिए दी। इस संबंध में शासन ने कोई दस्तावेज कोर्ट में पेश नहीं किए।

दावा 2 – जमीन सरकार की, धोखाधड़ी की गई है।

खारिज क्यों : कोर्ट में जमीन को सरकारी बताया गया है लेकिन राजस्व अभिलेखों में ये जमीन कभी भी शासन के नाम पर दर्ज नहीं रही। सवाल पूछा गया कि यदि जमीन‎ सरकारी है ताे नजूल से अनुमति ‎कैसे मिली? डायवर्शन ‎कैसे हाे गया? रजिस्ट्रियां‎ कैसे हाे गई? बिल्डिंग‎ बनाने के लिए नगर पालिका ने ‎अनुमति कैसे दे दी? यदि जमीन‎ राजा ने दी थी ताे राजवंश की ओर से भी कोर्ट में काेई आपत्ति आना चाहिए थी,‎ लेकिन ऐसा भी नहीं हुआ।‎

दावा 3 – सेल डीड अवैधानिक, सरकार ने घोषणा का दावा और डीड निरस्तीकरण का दावा किया है

खारिज क्यों : सरकार ने जमीन के संबंध में घोषणा का दावा लगा रखा है। जब तक ये घोषित नहीं हो जाता है कि जो खरीदार है, उनकी सेल डीड अवैधानिक है। तब तक शासन इस आधार पर कार्यवाही नहीं कर सकता है कि सरकारी जमीन बेच दी गई है। शासन ने सेल डीड के निरस्तीकरण का दावा लगा रखा है। जब तक शासन के दावे का निराकरण नहीं हो जाता तब तक इस आधार पर भी कार्यवाही नहीं कर सकता कि सेल डीड अवैधानिक है।

दावा 4 – जमीन पर सरकार का दावा धोखाधड़ी का मामला संज्ञान में आने पर लिया गया

इस जमीन के संबंध में पहले भी कई मुकदमे चले हैं। उनमें शासन पक्षकार था लेकिन शासन ने कभी भी किसी भी दावे में ये क्लेम नहीं किया कि ये सरकारी संपत्ति है। सिविल कोर्ट पहले इस आधार पर कई मुकदमे डिसाइड कर चुका है। उन फैसलों के ऊपर जाकर शासन ने जो केस दर्ज किया है, वो असंवैधानिक है।

दावा 5 : जमीन बेचने में कलेक्टर की परमिशन जरूरी नहीं

धारा 165(6) की कार्रवाई इस केस में की गई है। जमीन नगर पालिका क्षेत्र में है। कलेक्टर की कार्यवाही भी क्षेत्राधिकार विहीन है। कलेक्टर ने इस आधार पर कार्यवाही कर दी थी कि जमीन अधिसूचित क्षेत्र में है। धार अधिसूचित क्षेत्र में आता है। कलेक्टर की परमिशन के बिना जमीन को बेचा गया, यह गलत तरीका है। जबकि हाई कोर्ट ने फैसले में माना कि अगर नगर पालिका क्षेत्र में संपत्ति है तो 165(6) की कार्यवाही नहीं की जा सकती है।


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एडवोकेट अरविन्द जैन

संपादक, बुंदेलखंड समाचार अधिमान्य पत्रकार मध्यप्रदेश शासन

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