मध्यप्रदेश

How did the killers of SI in MP police get acquitted: The bullet was fired in front of Datia Ajak police station, which mistake of TI proved costly | एमपी पुलिस अपने ही SI को नहीं दिला सकी इंसाफ: 13 साल पहले हुए मर्डर के आरोपी बरी; कोर्ट ने कहा- TI, DSP ने की लापरवाही – Madhya Pradesh News

13 साल पहले एसआई डीपी गुप्ता की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। एक हेड कॉन्स्टेबल और दो कॉन्स्टेबल पर वारदात में सहयोग का आरोप लगा था।

राजगढ़ के ब्यावरा में 10 सितंबर को एसआई दीपांकर गौतम की कार से कुचलकर हत्या कर दी गई। आरोप एक लेडी कॉन्स्टेबल और उसके दोस्त पर है। ऐसा ही मामला आज से 13 साल पहले दतिया में भी सामने आ चुका है, जिसमें एसआई डीपी गुप्ता की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। ए

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30 अगस्त को दतिया कोर्ट ने इस मर्डर केस में शामिल सभी आरोपियों को बरी कर दिया है। इनमें से एक आरोपी की ट्रायल के दौरान ही मौत हो गई थी। कोर्ट ने पुलिस विभाग को तत्कालीन थाना प्रभारी और डीएसपी अजाक के खिलाफ विभागीय कार्रवाई के लिए भी कहा है।

13 साल पहले आखिर ऐसा क्या हुआ था कि एसआई की गोली मारकर हत्या कर दी गई ? 19 गवाहों के बावजूद आरोपी कैसे बरी हो गए? कोर्ट ने क्यों तल्ख लहजे में तत्कालीन टीआई और अजाक डीएसपी के खिलाफ विभागीय कार्रवाई के आदेश दिए हैं? पढ़िए, डीपी गुप्ता मर्डर और आरोपियों के बरी होने की पूरी कहानी…

कैसे हुई थी एसआई डीपी गुप्ता की हत्या

22 अप्रैल 2011 को रात साढ़े ग्यारह बजे एसआई दामोदर प्रसाद (डीपी) गुप्ता अजाक थाने के सामने अपने एक साथी के साथ बाइक से चुंगी तिराहे पर पहुंचे थे। उसी वक्त वहां आरोपी राजवीर सिंह, अजाक थाने के हेड कॉन्स्टेबल हरी सिंह जादौन, कॉन्स्टेबल दिलीप खरे और नरेंद्र पाल कार से आए।

आरोपियों ने बाइक के सामने कार अड़ा दी। वे एसआई गुप्ता से बहस करने लगे। जब विवाद बहुत ज्यादा बढ़ गया तो राजवीर सिंह ने पिस्टल निकाली और गुप्ता के पेट में गोली मार दी।

एसआई गुप्ता को गोली पेट के बायीं ओर लगी और दाईं ओर से निकल गई थी। उनकी वहीं मौत हो गई। सभी आरोपी मौके से फरार हो गए।

कैसे हुई आरोपियों की गिरफ्तारी

हत्या के दूसरे दिन हरी सिंह जादौन और दिलीप को गिरफ्तार कर लिया गया। वारदात के चौथे दिन 25 अप्रैल 2011 को मुख्य आरोपी राजवीर को पंडोखर थाने के टीआई अतुल सिंह ने रात 8.40 बजे कोतवाली थाने में पेश किया था।

राजवीर की निशानदेही पर पुलिस ने उसके गांव के घर से वारदात में इस्तेमाल लाइसेंसी बंदूक, 5 कारतूस और एक कार एमपी 32 सी 0485 को जब्त किया। 47 दिन बाद 11 जून 2011 को पुलिस ने चौथे आरोपी नरेंद्र पाल उर्फ टिंकू को भी गिरफ्तार कर लिया था।

चारों आरोपी कई महीने जेल में रहे, इसके बाद उन्हें जमानत मिली।

एसआई की हत्या की वजह क्या रही

एसआई डीपी गुप्ता के भतीजे कल्याण दास गुप्ता बताते हैं कि राजवीर सिंह आपराधिक प्रवृत्ति का व्यक्ति है। उसके खिलाफ दतिया के अजाक थाने में एट्रॉसिटी एक्ट के तहत एक मामला दर्ज था। राजवीर का ससुर हरी सिंह इसी अजाक थाने में प्रधान आरक्षक था। अपने ससुर के माध्यम से वह अजाक डीएसपी राजेश शर्मा पर दबाव बनाकर केस खत्म कराना चाह रहा था।

कल्याण दास ने कहा- हत्या वाली रात मैं और चंद्रशेखर गुप्ता चाचा के साथ अजाक थाने गए थे। चाचा डीएसपी राजेश शर्मा से मिलने थाने के ऊपर बने आवास पर गए। इसके कुछ देर बाद हरी सिंह अपने दामाद राजवीर, दिलीप खरे और नरेंद्र पाल के साथ कार से वहां पहुंचा।

राजवीर अपनी लाइसेंसी बंदूक साथ लाया था। जब ये सभी लोग डीएसपी से मिलने पहुंचे तो केस वापस लेने पर विवाद हुआ। इस विवाद के बीच राजवीर ने डीएसपी को बंदूक की धौंस दिखाई। चाचा डीपी गुप्ता ने अनहोनी की आशंका के चलते राजवीर से बंदूक छीन ली थी। उसे समझाया और बंदूक लौटा भी दी थी।

इसके बाद हरी सिंह अपने दामाद और बाकी लोगों को लेकर वहां से निकल गया, लेकिन आरोपियों को ये नागवार गुजरा था कि चाचा ने बंदूक छीन ली थी। इसी बात को लेकर आधे घंटे बाद उनकी हत्या कर दी गई।

5 कारण बने आरोपियों के बरी होने का आधार…

1. एक घटना की दो एफआईआर, दोनों में विरोधाभास

इस मामले की दो एफआईआर दर्ज की गई थीं। पहली एफआईआर कल्याण दास गुप्ता तो दूसरी एफआईआर चंद्रशेखर गुप्ता की तरफ से दर्ज करवाई गई थी। तत्कालीन टीआई सतीश दुबे ने दोनों एफआईआर दर्ज करने का समय एक ही लिखा था। दोनों एफआईआर में घटना को लेकर विरोधाभासी बयान थे। इसका फायदा आरोपियों को मिला।

2. एक एफआईआर में कार का जिक्र, दूसरी में बाइक का

कल्याण दास गुप्ता की एफआईआर में जिक्र था कि आरोपी कार से आए थे। चंद्रशेखर गुप्ता की एफआईआर में आरोपियों के बाइक से आने का जिक्र था। पुलिस ने जांच के दौरान कार बरामद की थी, बाइक कभी जब्त ही नहीं हुई। इसका भी फायदा आरोपियों को मिला।

3. जिस गोली का खोखा जब्त किया, वो मौके पर चली ही नहीं

पुलिस ने राजवीर के घर से बंदूक और पांच कारतूस जब्त किए थे। सागर एफएसएल ने अपनी रिपोर्ट में पुष्टि की थी कि जो खोखा पुलिस ने जब्त किया, वो राजवीर की बंदूक से चली गोली का था। पुलिस ने जब्ती के दौरान जिसे गवाह बनाया था, उसने कोर्ट को बताया कि टीआई ने जब्ती के बाद उसी बंदूक से हवाई फायर किया था। वही खोखा जांच के लिए भेजा था।

4. गवाहों ने बयान बदले, भतीजे की गवाही झूठी साबित हुई

मामले में पुलिस ने कोर्ट के सामने 19 गवाह पेश किए थे। बचाव पक्ष की तरफ से तीन लोगों की गवाही हुई। सरकारी वकील के पेश किए ज्यादातर गवाह पलट गए। किसी ने भी आरोपियों की शिनाख्त नहीं की। बचाव पक्ष के वकील ने ये भी साबित किया कि डीपी गुप्ता के भतीजे कल्याण दास मौके पर मौजूद नहीं थे बल्कि वे वारदात के वक्त डबरा में थे।

5. डीएसपी अजाक घटनास्थल पर पहुंचने वाले पहले व्यक्ति थे, वे भी मुकरे

एसआई गुप्ता को गोली लगने के बाद घटनास्थल पर अजाक डीएसपी राजेश शर्मा सबसे पहले पहुंचे थे। उन्होंने कोर्ट में बताया कि एसआई गुप्ता उनसे मिलने आए थे। कुछ देर बाद हरी सिंह, राजवीर और दो लोग आ गए। वे आते ही अनर्गल बात करने लगे। उन्होंने सभी को धीरे बात करने के लिए कहा तो विवाद करने लगे। इसके बाद सभी लोग चले गए।

चुंगी तिराहे पर जहां एसआई गुप्ता को गोली मारी गई, वहां तैनात आरक्षक भगवत शरण ने मुझे सूचना दी थी। उसने यह नहीं बताया कि किसने गोली मारी? डीएसपी ने बंदूक का जिक्र बयान में नहीं किया।

कोर्ट ने कहा- टीआई दुबे‎ और डीएसपी शर्मा ने पद के अनुरूप काम नहीं किया‎

कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए तत्कालीन कोतवाली टीआई सतीश दुबे और ‎डीएसपी अजाक राजेश शर्मा के खिलाफ तल्ख टिप्पणी की है। न्यायालय ने अपने‎ फैसले में लिखा- थाना प्रभारी दुबे और डीएसपी शर्मा ने एसआई गुप्ता की हत्या‎ जैसे गंभीर अपराध में अपने पद के अनुरूप काम नहीं किया।

जो सबूत पेश किए गए, उनसे ऐसा लगा कि कोर्ट को गुमराह करने की कोशिश की गई है। न्यायालय‎ ने आदेश में लिखा है कि थाना प्रभारी दुबे और डीएसपी शर्मा के खिलाफ उनके सीनियर अफसर एक्शन लें।


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एडवोकेट अरविन्द जैन

संपादक, बुंदेलखंड समाचार अधिमान्य पत्रकार मध्यप्रदेश शासन

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