चीन ने कब्जा ली थी भारत की 37000 वर्ग KM जमीन, नेहरू ने संसद में बताई कहानी | – News in Hindi

लोकसभा में पहली बार नेता प्रतिपक्ष बने कांग्रेस सांसद राहुल गांधी की अमेरिका यात्रा इन दिनों चर्चा में है. वजह वही पुरानी. उनका चीन द्वारा भारत की जमीन पर कब्जा कर लिए जाने और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा कुछ नहीं किए जाने वाला बयान. वैसे नया न उनका बयान है और न ही विवाद. फिर भी चर्चा में है तो इसके कुछ अहम पहलू के बारे में जान लेना जरूरी हो जाता है.
सबसे पहले बताते हैं राहुल गांधी ने अमेरिका मे कहा क्या?
राहुल गांधी अमूमन साल में एक-दो बार अमेरिका हो ही आते हैं. इस यात्रा के दौरान अलग-अलग भारतीय मूल के लोगों और मीडिया के साथ उनके संवाद का कार्यक्रम रखा जाता है. ऐसा इस बार भी किया गया. इसी क्रम में राहुल वॉशिंगटन डीसी में नेशनल प्रेस क्लब में सवालों के जवाब दे रहे थे.
सवाल-जवाब के दौरान राहुल ने तंज़ भरे अंदाज में कहा- चीन के द्वारा हमारी 4000 वर्ग किलोमीटर जमीन हड़प लिए जाने के बाद भी अगर आप कहती हैं कि चीन के साथ सही तरीके से निपटा जा रहा है तो ठीक है. उन्होंने दावा किया कि चीन ने लद्दाख में दिल्ली के बराबर जमीन पर कब्जा कर रखा है. साथ ही नरेंद्र मोदी सरकार को घेरते हुए कहा कि इस स्थिति से जिस तरह निपटा जा रहा है वह खटरनाक है. राहुल ने कहा कि मीडिया इस मसले पर सरकार से सवाल भी नहीं करता है. उन्होंने अपनी बात मे दम डालने के लिए यह सवाल भी किया कि- अगर कोई पड़ोसी अमेरिका की जमीन पर कब्जा कर ले तो अमेरिका क्या करेगा? क्या कोई भी अमेरिकी राष्ट्रपति ऐसी सूरत में सवालों से बच कर निकल जाएगा?
क्या राहुल ने पहली बार ऐसा कहा?
नहीं. राहुल देश और विदेश में भी कई बार यह बात कह चुके हैं. वह जब भी यह बात कहते हैं, भाजपा की ओर से सभी नेता यह कहते हुए बचाव में उतार जाते हैं कि राहुल की आदत है देश को बदनाम करने की. विदेश में भी करते हैं और देश में भी. इस बार भी ऐसा ही हुआ. उनके बयान पर जिस तरह से सत्ता पक्ष की ओर से प्रतिक्रिया आने लगती है, वह उनके बयान को काफी सुर्खियों में ला देता है.
क्या है स्थिति
पहले हम हालिया हालात पर बात करते हैं, फिर नेहरू के काल में हुए चीनी कब्जे पर आएंगे. राहुल का आरोप मुख्य रूप से नरेंद्र मोदी के कार्यकाल के संदर्भ में ही रहा है. लेकिन, भारतीय जमीन पर चीनी कब्जे के बारे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यही कहा है कि ‘कोई नहीं घुसा’.
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी बार-बार कहते रहे हैं कि सुई कि नोक बराबर हमारी जमीन कोई नहीं ले सकता. पर विपक्ष सरकार के इस दावे पर यकीन नहीं कर रहा.
फरवरी 2022 में तब के विदेश राज्य मंत्री वी मुरलीधरन ने लोकसभा में बताया था कि चीन ने बीते साठ सालों से लद्दाख में भारत की 38000 वर्ग किलोमीटर जमीन पर अवैध तरीके से कब्जा किए बैठा है.
एक साल पहले विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा था कि भारत कि जमीन पर चीन का कब्जा 1962 में हुआ, लेकिन कुछ लोग इसे ऐसे प्रचारित करते हैं जैसे कल ही हुआ हो. उनका इशारा राहुल गांधी की तरफ ही था.
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
लोकसभा चुनाव के वक़्त जब राहुल गांधी व विपक्ष के अन्य नेताओं ने लद्दाख में चीनी कब्जे के दावे को मुद्दा बनाया था तो पूर्व राजदूत और लेह स्थित लद्दाख इंटरनेशनल सेंटर के अध्यक्ष फूंचोक स्टोब्डन ने एक लेख लिखा था. उनका कहना था कि लद्दाख हमेशा गरम रहने वाला मुद्दा है, क्योंकि 1962 से ही यहाँ 1597 किलोमीटर लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) को छोड़ कर कोई और निश्चित सीमांकन नहीं है जो भारत और चीन की सीमा को स्पष्ट रूप से विभाजित कर सके. यहाँ तक कि एलएसी भी निर्विवाद तरीके से निर्धारित नहीं की गई है. दोनों देश इसे लेकर अपनी-अपनी धारणा रखते हैं. गश्त भी काराकोरम से चूमुर के बीच चिन्हित 65 गश्ती पॉइंट्स तक ही सीमित रहती है.
उन्होंने लिखा था कि मई 2020 में चीन कि पीपल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) फिंगर 3-4 एरिया में घुस आई थी, पर फरवरी 2021 में हुए समझौते के बाद पहले वाली स्थिति बहाल हो गई थी. सितम्बर 2020 में कैलाश रेंज पर चीनी सेना ने गतिविधि की थी, पर भारतीय सेना ने इसे नाकाम कर दिया था.
फूंगचोक के मुताबिक गलवान घाटी, चांगलुंग नल्ला, काँगरूंग नल्ला जैसे इलाकों में चीन ने भारतीय सैनिकों का प्रवेश प्रतिबंधित कर रखा है. जून 2020 में दोनों पक्षों ने यहाँ से अपने-अपने सैनिक घटाने पर सहमति जताई थी.
ट्रैक जंक्शन नल्ला से दक्षिण में बर्ट्से/देप्सांग के बीच पीएलए ने 2009 से ही लगातार आक्रामक रुख दिखाना शुरू कर दिया था. 2011 में उसने इस इलाके में 30 किलोमीटर लंबी सड़क भी बना ली. 2013 में जब उसने भारतीय इलाके में 13 किलोमीटर लंबी सड़क बना ली तो बर्ट्से भी दोनों देशों के बीच तनाव का एक केंद्र बन गया. चीन ने गश्ती पॉइंट (पीपी) 10 से 13 तक भारत को गश्त करने से रोक दिया था.
चीन ने भारत को गश्त से रोका
मीडिया रिपोर्ट्स में 2023 में बताया गया था कि लेह में पदस्थापित एक अफसर पीडी नित्या ने एक रिसर्च पेपर तैयार किया था. इसमें बताया गया था कि भारत को 26 पॉइंट्स पर चीन गश्ती नहीं करने दे रहा है. यह रिपोर्ट 20-22 जनवरी, 2023 को डीजीपी कि सालाना कॉन्फ्रेंस में रखी गई थी, हालांकि इस पर चर्चा नहीं हुई थी.
640 वर्ग किलोमीटर जमीन से हाथ धोया
अगस्त 2013 में श्याम सरन कमेटी कि रिपोर्ट आई थी. इसमें बताया गया था कि भारत अपनी 640 वर्ग किलोमीटर जमीन गंवा चुका है क्योंकि पीएलए इस इलाके में भारतीय सेना को घुसने नहीं दे रही. कई विशेषज्ञ मानते हैं कि देप्सांग इलाके में 600-800 वर्ग किलोमीटर जमीन चीन के कब्जे में है.
शांतिपूर्वक हो गया था चीन का पहला कब्जा
चीन के कब्जे में भारत की जो 37244 वर्ग किलोमीटर जमीन है वह अकसाई चिन का इलाका कहलाता है. यह इलाका लद्दाख का है. चीन ने इस पर कब्जे कि पहली चाल 1962 के भारत-चीन युद्ध से बहुत पहले ही चल दी थी. इस बारे में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने लोकसभा में बताया था.
28 अगस्त, 1959 को लोकसभा में पंडित नेहरू ने कहा था, ‘पूर्वी व उत्तर-पूर्वी लद्दाख में बड़ा इलाका बंजर-वीरान है. यहाँ पहाड़ हैं, 13000 फीट से भी ज्यादा गहरी घाटियां हैं. कुछ गड़ेड़िए गर्मियों में यहाँ अपने जानवर चराने भर के लिए जाते हैं. इस इलाके में भारत सरकार के कुछ पुलिस चेक पोस्ट्स हैं, पर मुश्किल भौगोलिक परिस्थितियों के कारण ये पोस्ट्स अंतर्राष्ट्रीय सीमा से कुछ दूरी पर बनाए गए हैं.’
‘अक्तूबर 1957 और फरवरी 1958 के बीच हमारे पास इस तरह कि कुछ खबरें आई थीं कि एक चीनी बेड़ा अंतर्राष्ट्रीय सीमा पार कर खुरनाक फोर्ट तक पहुंचा था, जो भारतीय सीमा में है. चीन सरकार का ध्यान इस ओर दिलाया गया था और उनसे कहा गया था कि हमारे इलाके से दूर रहें..इन पहाड़ी इलाकों में कोई स्पष्ट सीमांकन नहीं किया गया है, लेकिन हमारे नक्शे में यह स्पष्ट है. इसके बाद जुलाई 1959 के अंत में भारत की ओर से एक पुलिस का एक छोटा दल इस इलाके में भेजा गया. जब यह दल खुरनाक फोर्ट की तरफ बढ़ रहा था तो सीमा से कुछ दूरी पर हमारे ही इलाके में चीनी बल ने उसे बंदी बना लिया. यह 28 जुलाई की बात है.’
‘..चीन ने दावा किया कि यह इलाका उनका है, पर वे हमारे लोगों को छोड़ देंगे. हमने उन्हें एक और नोट भेजा. इसमें उनके दावे पर हैरानी जताते हुए उन्हें स्पष्ट रूप से इस सेक्टर में पारंपरिक रूप से मान्य अंतरराष्ट्रीय सीमांकन कि याद दिलाई…इस पर अब तक कोई जवाब नहीं आया है. हमारे लोग 18 अगस्त को रिहा कर दिये गए.’
इस वक्तव्य के तीन बाद ही नेहरू ने उस बात कि पुष्टि कर दी, जिसका भारत को सबसे ज्यादा दर था. चीनियों ने अकसाई चिन के रास्ते सड़क बना ली थी.
नेहरू ने राज्य सभा को बताया था, ‘चीन में की गई एक घोषणा के मुताबिक येहचेंग-गरटोक रोड, जो सिनकियांग-तिब्बत हाईवे भी कहलाता है, सितम्बर 1957 में पूरा हो गया था…हमने हालात का जायजा लेने के लिए पिछले साल दो दल भेजे थे. इनमें से एक को चीन के एक बड़े अफसर ने हिरासत में ले लिया था. दूसरा वापस आया तो हमें अकसाई चिन इलाके में बनी इस नई सड़क के बारे में कुछ संकेत दिया था.’
विजय झा
विजय कुमार झा जनसत्ता.कॉम के पूर्व संपादक हैं। पत्रकारिता में करीब ढाई दशक से हैं। ऑनलाइन मीडिया के अलावा, प्रिंंट मीडिया में भी लंबा वक्त गुजारा है। देश के तमाम बड़े अखबारों में अलग-अलग जिम्मेदारी निभाते हुए तरह-तरह के प्रयोग किए हैं और अपने अनुभव को लगातार निखारते रहे हैं। विजय जनसत्ता डिजिटल में अक्तूबर, 2015 से हैं। इससे पहले वह दैनिकभास्कर.कॉम में पांच साल रहे। पाठक को केंद्र में रखकर कंटेंट प्लान और प्रेजेंट करना उनकी सबसे बड़ी ताकत है। दैनिक भास्कर डिजिटल से पहले विजय ने करीब आठ साल देश के तमाम बड़े अखबारों के न्यूजरूम में काम किया। उन्होंने दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, नवभारत टाइम्स जैसे अखबारों में तरह-तरह की जिम्मेदारियां निभाईं। इसी बीच करीब दो साल रांची (प्रभात खबर) और भागलपुर (दैनिक जागरण) में रह कर आंचलिक पत्रकारिता की चुनौतियों व बारीकियों को भी नजदीक से जाना-समझा और जीया। विजय ने 2001 में भारतीय जनसंचार संस्थान (आईआईएमसी) से निकलने के बाद पत्रकारिता की शुरुआत ऑनलाइन मीडिया से ही की थी। नेटजाल.कॉम के साथ। यह एक मल्टीलिंंग्वल न्यूज पोर्टल था। 2010 में दैनिक भास्कर के साथ एक बार फिर विजय ने डिजिटल पत्रकारिता में वापसी की। तब से ऑनलाइन पत्रकारिता की चुनौतियों को समझने और इनसे निपटने का निरंतर प्रयास जारी है। सोशल मीडिया पर फेक न्यूज की बाढ़ और इससे जुड़ी चुनौतियों से निपटने के लिए विजय ने 2022 में IAMAI-Meta fact-checking news fellowship पूरी की। अब वह Certified Fact-checker हैं। अगर कभी खाली समय मिला तो विजय गाने सुनना, किताबें पढ़ना और गप्पें मारना पसंद करते हैं।
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