भविष्य की आहटमध्यप्रदेश

सत्य का विजय पर्व बेरोजगारों के लिए होगा अविस्मरणीय

दीपावली का पर्व केवल देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी सनातन धर्मावलम्बियों व्दारा पूरे हर्षोल्लास के  साथ मनाया जाता है। इस मौके पर अपने घरों से दूर देश की सीमा पर मुस्तैद जवानों के साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आठवीं बार भी असत्य पर सत्य के विजय पर्व को मनाने की घोषणा की है। राष्ट्र की सुरक्षा के लिए स्वयं को समर्पित करने वाले रणबांकुरों के साथ देश की भागीदारी प्रस्तुत करने का इससे ज्यादा उपयुक्त समय हो ही नहीं सकता। जब आम नागरिक अपने परिवारजनों के साथ हंसी-ठिठोली करते हुए आनन्द के क्षणों को सांझा करते है तब दुश्मनों की पल-पल की हरकतों पर सेना के जवान न केवल नजर रखते हैं बल्कि उन्हें मुंह तोड जबाब भी देते हैं। इस जबाबी कार्यवाही में अनेक सपूतों की आत्मा उनके शरीर का साथ छोड देती है। मां भारती के चरणों में प्राणों की आहुति देने को हमेशा तत्पर रहने वाले राष्ट्र भक्त जब देश के प्रधानमंत्री को अपने साथ पाते हैं तो उनका मनोबल सातवें आसमान पर होता है। वे स्वयं को अपने परिवार के मुखिया के साथ ही महसूस करते हैं। यदि त्यौहार पर जवान अपने घरों से दूर है तो देश का मुखिया भी उनके साथ कदम से कदम मिलाकर खडा है। एक समय था जब कश्मीर में आतंकवादियों से थप्पड खाने को सेना बाध्य थी, पत्थरबाजों को मासूम करार देने वालों की बाढ आ गई थी, देश के टुकडे-टुकडे करने के मंसूबे पालने वालों को कुछ राजनैतिक दलों का खुला संरक्षण प्राप्त था, मानवाधिकारों की दुहाई पर जुल्म करने वालों को बढावा देने का क्रम चल निकला था, धर्म के नाम पर खून खराबा करने वालों को बचाने के लिए एक पार्टी विशेष के कद्दावर नेताओं की फौज खडी हो जाती थी, जालिमों को बचाने के लिए देर रात न्यायालयों को खुलवाया जाता था। सेना के हाथों को निर्देशों की बेडियों में बांधकर उनका मनोबल तोडने का षडयंत्र करने वालों ने सत्ता के गलियारे से आदेशों की झडी लगा दी थी। गिडगिडाने, सबूत सौंपने, दुनिया के सामने अन्याय का रोना रोने वालों का युग लगभग समाप्त हो चुका है। आज दुनिया के शीर्ष देश भारत के बिना अपने को अधूरा महसूस करने लगे हैं। अर्थ व्यवस्था में ब्रिटेन को पछाडकर पांचवे स्थान पर पहुंचने वाले राष्ट्र ने सुरक्षा के मुहाने पर सेना के हाथ खोल दिये हैं। चीन जैसे राष्ट्र को पीछे हटने के लिए बाध्य कर दिया है। अमेरिका के दबाव को माने बिना रूस के साथ व्यापारिक संबंधों को नई दिशा देना, रूस-यूक्रेन मुद्दे पर तटस्थ नीति अपनाना, स्वदेशी सैन्य उपकरणों का निर्माण, संकट की घडी में विश्व के लिए मसीहा बनकर खडा होना, देश की अखण्डता को लगे 370 के ग्रहण को समाप्त करना, बहुसंख्यकों का नारा देकर एक धर्म विशेष को प्रताडित करने वालों को आइना दिखाना, सामाजिक सौहार्द में साम्प्रदायिक विस्फोट करने वालों के विरुध्द कडे कदम उठाना, एक वर्ग विशेष व्दारा किये जाने वाले अपराधों पर उपेक्षात्मक रुख अपनाने वाले राज्यों को रेखांकित करना, मुफ्तखोरी की चुनावी घोषणायें को पूरा करने के लिए केन्द्र की ओर ताकने वाले राज्यों की शेखचिल्ली नीति को उजागर करना, सीमापार के राष्ट्र विरोधी एजेन्डे पर कार्य करने वाले नेताओं और संगठनों पर नकेल कसने जैसे अनगिनत कार्यों को निरंतर  मूर्त रूप दिया जा रहा है। बेरोजगारी के मुद्दे पर विपक्ष व्दारा सरकार को घेरने वाले की नीति भी धनतेरस के दिन धराशाही हो गई। देश के 75 हजार युवाओं को नियुक्ति पत्र देने तथा सन् 2023 तक 10 लाख प्रतिभाशाली युवाओं को 38 मंत्रालयों के अधीन नौकरियां देने की घोषणा ने सरकार की सकारात्मक मंशा को उजागर कर दिया है। इसे देश के प्रतिभाशाली बेरोजगारों के लिए दीपावली की गिफ्ट के रूप में  देखा जा रहा है। सोची-समझी रणनीति के तहत राष्ट्र को निरंतर ऊंचाइयां मिल रहीं है। जब देश में रोजगार के लिए धरातल तैयार कर लिया गया, तभी उसकी घोषणा की गई। जब कोरोना की वैक्सीन, देश के नागरिकों के लिए उपलब्ध हो गई तब विदेशों के लिए सप्लाई की गई। जब देश में खाद्यान्न का उत्पादन मांग से अधिक हो गया, तब उसका निर्यात किया गया। यह सभी कारक इस बार की दीपावली को नये युग के महापर्व के रूप में परिभाषित कर रहे हैं। अन्तर्राष्ट्रीय गतिविधियों का वर्तमान स्वरूप तीसरे विश्व युध्द के संकेत दे रहा है। स्वार्थ, दबाव और षडयंत्र के चलते दुनिया भर के देशों में खेमेबाजी चल रही है। कहीं जातिगत राष्ट्र होने की दुहाई पर भीख मांगी जा रही है तो कहीं दोगली नीतियों का आश्रय लेकर आतंकवादियों को संरक्षण देने का प्रयास हो रहा है। विश्व मंच पर हाय-हाय करने वाले राष्ट्रों में शामिल भारत ने पहली बार आंखों में आंखें डालकर स्वयं के अस्तित्व को शक्तिशाली ढंग से प्रस्तुत किया है। संतुलित विदेश नीतियों से लेकर अनेक समान विचारधारा वाली राज्य सरकारों के साथ केन्द्र का आंतरिक व्यवस्था तंत्र सकारात्मक दिशा में निरंतर अग्रसर हो रहा है। कुछ राज्य सरकारें अपने राजनैतिक हितों के लिए भले ही कूटनीतिक चालें चल रहीं हों परन्तु केन्द्र का कर्तव्यबोध समदृष्टि का ही प्रतीत हो रहा है। अतीत से लेकर वर्तमान तक का बिन्दुवार विश्लेषण यदि किसी पार्टी विशेष या व्यक्ति विशेष के पक्ष में जाता है तो उसे पूर्वनिर्धारित मानसिकता का परिणाम तब तक नहीं कहा जा सकता जब तक कि प्रमाणित रूप से खण्डन प्रस्तुत न किया जा सके। कलम से लेकर कैमरे तक के साथ एक कथित बुध्दिजीवी वर्ग स्वयं को निष्पक्ष दिखाता हुआ निरंतर आलोचनाओं की ही समालोचना का नाम देता रहा है। यह स्वयंभू बुध्दिजीवियों की जमात कभी टीआरपी के मकडजाल को ज्यादा उलझाकर मुनाफा कमाना चाहती है तो कभी यू-ट्यूब पर हिट्स के खेल को हथियार बनाती है। कभी चीख-चिल्लाकर सत्य को दबाने का प्रयास करती है तो कभी लम्बे-चौडे आलेखों का सहारा लेकर आंकडों को दबाने की कोशिशें होतीं हंै। इन्ही कोशिशों के सहारे बेडा पार लगाने की मगृमारीचिका के पीछे भागते अनेक दल वास्तविकता से कोसों दूर होते जा रहे हैं। ऐसे में इस बार सत्य का विजय पर्व बेरोजगारों के लिए अविस्मरणीय। प्रतिभाओं को रोजगार की सौगात मिलना लगभग तय है यदि खुराफाती तत्व न्यायालयीन प्रक्रिया के तहत अवरोध उत्पन्न करने की हठधर्मिता छोड दें। इतिहास गवाह है कि राजनैतिक लाभ, व्यक्तिगत स्वार्थ या फिर सीमापार के इशारे पर अक्सर सकारात्मक प्रयासों को न्यायालयीन प्रक्रिया में उलझाकर रुकावटें पैदा की जातीं रहीं है। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।

एडवोकेट अरविन्द जैन

संपादक, बुंदेलखंड समाचार अधिमान्य पत्रकार मध्यप्रदेश शासन

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!