उठौ धना बोल रऔ मगरे पै कौआ, मोए लगत ऐसौ तोरे आ गए लिबउआ…चली गोरी मेला खौं साइकिल पै बैठके, किसान की लली खेत खलिहान खौं चली…
अरविन्द जैन

जैसे लोकप्रिय लोकगीतों का गायन कर, बुंदेली गायकी को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने वाले देश के विख्यात स्व.पं.श्री देशराज पटैरिया जी की 5 सितम्बर को चतुर्थ पुण्यतिथि है लेकिन उनके गाए हुए लोकगीत हम सबकी स्मृतियों में सदैव अमर रहेंगे.. ५ सितंबर को उनके निज निवास बुंदेली भवन पर सायं ६ बजे से भावपूर्ण श्रृद्धांजलि एवं बुन्देली संध्या का आयोजन किया गया है जिसमें आप सादर आमंत्रित हैं…
सत्तर के दशक से अपनी आवाज का जलवा बिखेरते हुए बुंदेलखंडी लोकगीत गाने वाले शीर्ष गायकों में शुमार रहे बुंदेलखंडी लोकगीत सम्राट श्री पटेरिया ने हमेशा लोकल बोली को अपनाकर ही गायनशैली को आगे बढ़ाया। उनके नाम 10,000 से भी ज्यादा लोकगीत गाने का रिकॉर्ड है. वे इकलौते ऐसे लोकगायक हैं जिनके लोकगीत तीन पीढियां एक साथ गुनगुना रही हैं. उन्होंने गांव की कीर्तन मंडली से आगे निकलकर भजन, हरदौल चरित्र से लेकर बुंदेली बोली में वीररस, शृंगार और देवर-भौजी के चुटीले संवादों को लोकगीतों में पिरोकर अपनी एक अलग पहचान बनाई …
श्री पटेरिया का जन्म 25 जुलाई, 1953 में छतरपुर जिले के नौगांव कस्बे के तिदनी गांव में हुआ था. चार भाइयों और दो बहनों में वे सबसे छोटे थे उन्होंने गायन कला के साथ-साथ साइंस के छात्र के रूप में प्रथम श्रेणी हायर सेकंडरी पास की. प्रयाग संगीत समिति से उन्होंने संगीत में प्रभाकर की डिग्री हासिल की, लेकिन पढ़ाई के साथ-साथ वे गायन में कामयाबी की सीढियां चढ़ते चले गए. शुरूआत में गांव में कीर्तन करना शुरू किया और उन्होंने यहीं से बुंदेली लोकगीतों की राह पकड़ ली. हालांकि, शुरुआती दिन काफी आर्थिक तंगी में बीते. पिता किशोरीलाल किसान और मां विद्या देवी गृहिणी थीं. पढ़ाई के बाद स्वास्थ्य विभाग में नौकरी की. दिन में नौकरी और रात को लोकगीत गाते थे.
आकाशवाणी छतरपुर से मसालेदार गायन को लेकर हुए चर्चित
देशराज पटेरिया को पूरे बुंदेलखंड में ख्याति उस वक्त मिली जब उन्होंने आकाशवाणी छतरपुर के लिए गाना शुरू किया. 1976 से लगातार वे आकाशवाणी के लिए लोकगीत गायन करते रहे, श्री पटेरिया ने स्थानीय मंचों पर 1972 से ही जाना शुरू कर दिया था. इसके बाद वे लगातार पसंद किए जाने लगे. 1980 के दशक में उनके लोकगीतों की कैसेट्स भी बाजार में आ गईं जो कई बार तो फिल्मी गीतों पर भी भारी पडऩे लगीं. इसके बाद पटेरिया के लोकगीतों का जादू हर बुंदेलखंडी की जुबान पर दिखने लगा. मसालेदार गायन के लिए चर्चित बुंदेली लोकगीतों के बीच देशराज पटेरिया ही अकेले कलाकार रहे हैं जिन्होंने लोकगीतों में मर्यादा को एक हद तक कायम रखा. उन्होंने आल्हा, हरदौल, ओरछा इतिहास, रामायण के साथ जीजा-साली संवाद से जुड़े हास्य और शृंगार पर खूब लोकगीत गाए हैं.
बुंदेली लोकगीतों में आदर्श, वीरता और मर्यादा का रहा मिश्रण
देशराज के पसंदीदा गीतों में उठौ धना (पत्नी) बोल रऔ मगरे पै कौआ, मोए लगत ऐसौ तोरे आ गए लिबउआ…, चली गोरी मेला खौं साइकिल पै बैठके, जीजा जी चला रए मूंछें दोई ऐंठ के.., नई नई दुलैन सज गई है, एक दिन बोली नार पिया सैं कै गांव तुम्हारौ जरयारौ.. उतै पवारौ जे ढोर बछेरू हमसें न कटहै चारौ.., काफी प्रसिद्ध हुए हैं. इसके साथ ही उनके किसान की लली खेत खलिहान खौं चली और जौनों मोखों बहिन जानकी आंखन नईं दिखानी, तौनों मोखौं ई मैड़े कौ पीनें नइयां पानी खासे पसंद किए गए. बोलियों में दोहरे मायने वाले संवाद खासे लोकप्रिय होते रहे हैं और पटेरिया के द्विअर्थी लोकगीतों को भी लोगों ने हाथों हाथ लिया। उनकी आवाज में उम्र के अंतिम पड़ाव में भी वही मिठास झलकती रही और उनके प्रोग्राम लेने के लिए हमेशा ही लंबी वेटिंग रही। निश्चित ही अपनी अनूठी गायकी से बुंदेली लोकगीतों मेें नए प्राण फूंक देने वाले श्री देशराज पटेरिया जी की चतुर्थ पुण्यतिथी में आयोजित भावपूर्ण श्रृद्धांजलि एवं बुन्देली संध्या पर बुन्देलखण्ड समाचार एवं दैनिक अतुल्य भास्कर परिवार उन्हें विनम्र श्रृद्धांजलि अर्पित करता है।