मध्यप्रदेश

Voters asked strange questions to Netaji | पीछे छूटे स्थानीय मुद्दे; छापों से व्यापारी और साड़ियां नहीं मिलने से महिलाएं नाराज

राजेश बादल . भोपाल5 मिनट पहले

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भास्कर इलेक्शन पॉडकास्ट में सबसे पहले नजर मुख्य खबरों पर।

  • प्रचार हुआ धुआंधार। मोदी, योगी, मल्लिकार्जुन खड़गे और अखिलेश यादव की सभाएं। आज प्रियंका गांधी और अरविंद केजरीवाल की रैलियां।
  • चौबाराधीरा के मतदाताओं ने पूछे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री से अनोखे सवाल।
  • प्रदेश के कारोबारी बेहद गुस्से में। चुनाव आयोग को चेतावनी। चैकिंग और छापे नहीं रुके तो दिवाली पर करेंगे हड़ताल।
  • योगी भोपाल के बगल से निकल गए मगर आए नहीं, नितिन गडकरी को नागपुर से सटे इलाके में आना था, पर आए नहीं।

वोटरों ने नेताजी से पूछे सवाल
क्या आपने चौबाराधीरा का नाम सुना है? नहीं सुना ना। बताता हूं, मैंने क्यों पूछा। असल में देवास जिले में सोनकच्छ के चौबाराधीरा में मंगलवार को प्रचार अभियान के तहत उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का कार्यक्रम था। उनके पहुंचने से पहले पूरे इलाके को मतदाताओं ने पोस्टरों से पाट दिया।

देवास जिले में सोनकच्छ के चौबाराधीरा में योगी की सभा से पहले लोगों ने एक पोस्टर लगाया जो चर्चा में रहा। इसमें उन्होंने क्षेत्र में काम नहीं कराने को लेकर सवाल उठाए।

देवास जिले में सोनकच्छ के चौबाराधीरा में योगी की सभा से पहले लोगों ने एक पोस्टर लगाया जो चर्चा में रहा। इसमें उन्होंने क्षेत्र में काम नहीं कराने को लेकर सवाल उठाए।

इन पोस्टरों पर लिखा था… “योगी जी राम-राम। चौबारा की पावन धरा पर आपका स्वागत है। आपकी सरकार से यहां के वासियों के सवाल हैं। 18 साल में चौबाराधीरा में एक ईंट भी नहीं लगाई गई। यहां के विकास पर एक रुपया खर्च नहीं हुआ। सिर्फ झूठ बोला। सोनकच्छ के बच्चों के लिए सीएम राइज स्कूल मिला था। वह भी छीन लिया। आखिर हम आपको वोट क्यों दें?”

प्रचार में पीछे छूटे स्थानीय मुद्दे
अब यह तो हम भी जानते हैं कि योगी जी मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री नहीं हैं, लेकिन मुद्दा एकदम लोकल है और मैं इस उदाहरण के जरिए यही बताना चाहता हूं कि विधानसभा के चुनाव स्थानीय मुद्दों पर लड़े जाते हैं न कि राष्ट्रीय। दिककत ये है कि पार्टियां राष्ट्रीय मसले इस चुनाव में उठाती हैं। मैं अपना उदाहरण बताता हूं। उन दिनों छत्तीसगढ़ नहीं बना था। 1993 के विधानसभा चुनाव थे। मैं सरगुजा के तपकरा इलाके में कैमरा टीम के साथ गया था। एक गांव के बाहर हाथ से लिखा बैनर लगा था- नाग से बचाओ, फिर वोट पाओ। मैं हैरान था। जब पड़ताल की तो जानकारी मिली कि इस क्षेत्र में सांप बहुत होते हैं और बरसात से नवंबर-दिसंबर तक हर महीने 10 से 15 आदिवासी सांप के काटने से मर जाते हैं, इसलिए इलाके को नागलोक भी कहते हैं। मैंने देखा कि राह चलते वहां सांप रेंगते दिखते थे। अब यह मुद्दा विधानसभा चुनाव का बन गया।

नेवला पालने के लिए दिया कर्ज
चूंकि उस समय वहां राष्ट्रपति शासन लागू था, इसलिए मैं इस मसले पर जिला कलेक्टर के पास गया। कलेक्टर, जो जिला निर्वाचन अधिकारी भी थे, उन्होंने तत्काल फैसला लिया कि प्रशासन आदिवासियों को नेवला पालने के लिए, उन्हें खरीदने के लिए और चारपाई खरीदने के लिए कर्ज देगा। आदिवासी जमीन पर सोते थे और सांप उन्हें काट लेते थे। इस बार के विधानसभा चुनाव में भी भिंड-मुरैना के कुछ गांवों में यह मुद्दा बन गया। पिछले दो तीन महीने में आधा दर्जन मौतें सांप काटने से हुई हैं और उनके समुचित इलाज की व्यवस्था नहीं हुई। ​​​​​

शिवपुरी जिले के करैरा में तो काले हिरणों का आतंक था। किसान रात-रातभर सो नहीं पाते थे। यह भी 1993 के चुनाव का मुद्दा बन गया था। तो लब्बोलुआब ये कि स्थानीय स्तर के चुनाव राष्ट्रीय मसलों पर नहीं लड़े जाते। उत्तर प्रदेश में तो विधायक यदि मतदाता के घर शादी ब्याह के मौके पर अथवा किसी शोक की घड़ी में नहीं जाते तो उनको उस घर के वोट नहीं मिलते।

आचार संहित के दौरान पुलिस, वाणिज्य कर, आयकर, आबकारी विभाग, डीआरआई तथा जीएसटी जैसे अन्य विभागों की कार्रवाई के बाद व्यापारियों ने रोष जताया है।

आचार संहित के दौरान पुलिस, वाणिज्य कर, आयकर, आबकारी विभाग, डीआरआई तथा जीएसटी जैसे अन्य विभागों की कार्रवाई के बाद व्यापारियों ने रोष जताया है।

प्रदेश में छापों से कारोबारी-व्यापारी नाराज
चुनाव और दिवाली सिर पर है और प्रदेश के कारोबारी-व्यापारी परेशान हैं। उनकी परेशानी का सबब पुलिस, वाणिज्य कर, आयकर, आबकारी विभाग, डीआरआई तथा जीएसटी जैसे अन्य विभागों के छापे हैं। ये छापे आचार संहिता लागू होने के बाद से ही धड़ल्ले से शुरू हो गए हैं। मध्यप्रदेश के चैम्बर ऑफ कॉमर्स का प्रतिनिधिमंडल मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी से मिला और गुस्से का इजहार किया। व्यापारियों का कहना है कि इन छापों और जांच पड़ताल ने उनका जीना दूभर कर दिया है। व्यापारियों का यह भी कहना है कि इन दिनों रोज ही लाखों का लेन-देन होता है और नकद भी निकाला जाता है। अगर ये बंद नहीं हुआ तो दिवाली पर प्रदेश भर के सारे व्यापारी हड़ताल पर चले जाएंगे।

साड़ियों के लिए फूटा महिलाओं का गुस्सा
कांग्रेस के एक पूर्व मंत्री रहे आनंद शर्मा ने तो कहा कि दरअसल छापे नजराना वसूली के लिए हो रहे हैं। चुनाव आयोग की मुश्किल यह है कि वह करे तो क्या करे। चुनाव में पानी की तरह पैसा बह रहा है, मतदाताओं को बांटने के लिए करीब दो सौ करोड़ की नकदी या सामान बरामद हो चुका है। वह कैसे जांचे कि नकद रुपयों का इस्तेमाल वोटरों को देने के लिए नहीं होगा। मतदाताओं को रिझाने के लिए पार्टियों के चिह्न वाली साड़ियां बंट रही हैं। घड़ियां बंट रही हैं, बैग बंट रहे हैं, रुपए बंट रहे हैं। क्या-क्या नहीं बंट रहा है। ओरछा में अखिलेश यादव की सभा के बाद महिलाओं का गुस्सा फट पड़ा। किसी को एक भी साड़ी नहीं मिली और किसी को तीन चार साड़ियां मिल गईं।

निवाड़ी जिले के ओरछा में सपा प्रमुख अखिलेश यादव की सभा के बाद महिलाओं ने कहा कि वे रैली में आईं और उन्हें साड़ी नहीं मिली। कई महिलाएं चार-पांच साड़ियां ले गईं।

निवाड़ी जिले के ओरछा में सपा प्रमुख अखिलेश यादव की सभा के बाद महिलाओं ने कहा कि वे रैली में आईं और उन्हें साड़ी नहीं मिली। कई महिलाएं चार-पांच साड़ियां ले गईं।

ऐनवक्त पर रद्द हुए नेताओं के दौरे
मंगलवार को दो नेताओं की यात्रा रद्द होना चर्चा का विषय बनी रही। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को भोपाल के बैरसिया और बैरागढ़ में आना था। उनकी छबि अनुदार नेता की है। ऐनवक्त पर उनका आना रद्द हो गया। हालांकि वे देवास और शाजापुर जिलों में गए। इसी तरह उदारवादी नितिन गडकरी को नागपुर से सटे बैतूल जिले के तीन विधानसभा क्षेत्रों में आना था, लेकिन उनकी तबीयत ठीक नहीं थी, इसलिए तैयारियां धरी रह गईं। वे नहीं आए। क्यों नहीं आए? जितने मुंह, उतनी बातें। कुछ तो कारण होगा ही।

आज के पॉडकास्ट में बस इतना ही। इजात दीजिए। नमस्ते।


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एडवोकेट अरविन्द जैन

संपादक, बुंदेलखंड समाचार अधिमान्य पत्रकार मध्यप्रदेश शासन

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