पति पत्नी को साथ रहने को मजबूर नहीं कर सकते, पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट का अहम फैसला

चंडीगढ़. पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने तलाक संबंधित मामलों में सुनावाई पर बड़ा फैसला सुनाया है. कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि हमें तलाक और क्रिमिनल केस में अंतर समझना चहिए. तलाक के मामलों में दोनों पक्षों (पति-पत्नी) को साथ रहने पर मजबूर नहीं कर सकते हैं. कोर्ट ने कहा कि सुनवाई के दौरान वैवाहिक विवादों को सबूत के रूप में पेश करने का कोई मतलब नहीं है.
जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर और जस्टिस सुदीप्ति शर्मा की पीठ ने कहा कि ऐसे मामलों की तथ्यात्मक और व्यावहारिक पहलू यह है कि कोर्ट दोनों पक्षों को तलाक के ऑफिशियल ऑर्डर आने और उनकी याचिका खारिज होने तक और ‘विवाह से अलग होने के लिए जिस आधार पर तलाक की मांग वे कर रहे थे, उसे साबित नहीं कर पाने के बावजूद’ उन्हें साथ रहने के लिए बाध्य नहीं कर सकतीं.
पीठ ने कहा कि वैवाहिक विवादों में तलाक की मांग कर रहे दोनों पक्षों के द्वारा एक-दूसरे के खिलाफ लगाए गए आरोपों को व्यावहारिक रूप से साबित करना मुश्किल हो जाता है. ऐसे में कोर्ट को ऐसे मामलों की निर्णय केवल ‘आरोपों के प्रमाण या प्रस्तुत सबूतों के आधार पर’ नहीं करना चाहिए, जैसा कि आपराधिक मामलों में किया जाता है. भले ही ये आरोप सही साबित हो जाएं, मगर ये मामले आपराधिक तो नहीं हैं ना… कोर्ट ने कहा कि जीत की स्थिति तब बनती है, जब दोनों पक्ष आपसी सहमति से केस को सुलझा लें.
अदालत ने जोर देकर कहा, ‘भले ही हिंदू मैरिज एक्ट (एचएमए) 13 के तहत तलाक की डिक्री (आदेश) देने के लिए तलाक की याचिका खारिज कर दी गई हो या उस मामले में वैवाहिक अधिकारों एचएमए की धारा 9 के तहत याचिका को अनुमति दी गई हो, व्यावहारिक रूप से ऐसे मामलों में कोई निष्पादन नहीं हो सकता. चूंकि मुकदमा करने वाला प्रोपॉर्टी नहीं हैं, जिसका निष्पादन किया जाए ताकि यह दूसरे पक्ष को वापस मिल सके.
Tags: Haryana news, High Court Comment, Punjab
FIRST PUBLISHED : August 30, 2024, 09:36 IST
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