जिस वजह से ममता बनर्जी बनी बंगाल की ‘दीदी’, आज वही बन गया उनका सबसे बड़ा ‘सिरदर्द’

ममता बनर्जी के आंदोलनों के कारण उन्हें बंगाल की शेरनी कहा जाता रहा. लोगों के हक के लिए वे इस तरह लड़ी कि उन्होंने तीन दशक से पुराने लाल दुर्ग को बंगाल में ढहा दिया. उनके नाम से ज्यादा लोग उन्हें दीदी के तौर पर याद करते हैं. लेकिन आज क्या हो गया है. उनके राज्य में पुलिस आंदोलन करने वालों पर लाठियां भांज रही हैं. वॉटर कैनन का इस्तेमाल कर उन्हें तितर बितर कर रही है. छात्र आरजी कर मेडिकल कॉलेज में महिला डॉक्टर रेप और मर्डर के विरोध में नबन्ना रैली निकाल रहे हैं. नबन्ना नाम की बिल्डिंग में राज्य सरकार का सचिवालय है और छात्र ममता बनर्जी के इस्तीफे की मांग को लेकर बिल्डिंग के घेराव का आंदलन पर हैं.
कभी रेप पीड़िता को लेकर रायटर्स बिल्डिंग पहुंच गई थीं
छात्र जीवन से ही कांग्रेस पार्टी की छात्र शाखा से राजनीति शुरु करने वाली ममता बनर्जी 1998 में कांग्रेस से अलग हो गईं. ये वो दौर था जब बंगाल तकरीबन 34 साल से वमामोर्चे का गढ़ था. कांग्रेस पार्टी राइटर्स बिल्डिंग में घुस नहीं पा रही थी. कांग्रेस में रहते हुए ममता बनर्जी ने ही पहली बार एक युवती के रेप पीड़िता को लेकर राइटर्स बिल्डिंग में तब के मुख्यमंत्री ज्योति बसु के सामने न्याय मांगने गई थीं. उस समय पुलिस ने उन्हें रोक दिया था और साथ की भीड़ पर लाठियां भी चलाईं. ममता अड़ी रहीं और उन्हें चोटें भी आई थीं. पुलिस ने ममता बनर्जी को हिरासत में भी ले लिया था. आरोप था कि पीड़ित युवती के साथ वामपंथी दल के एक कार्यकर्ता ने रेप किया था.
ममता के संघर्ष की कई कहानियां हैं
वक्त बदला आज ममता बनर्जी मुख्यमंत्री हैं. आज उनकी पुलिस प्रदर्शन करने पर लाठियां चला रही है. कानून व्यवस्था कायम करने की अपने तरीके से कोशिशें कर रही है. ‘दीदी’ के संघर्ष की किताबों के पन्ने पलटने पर जननेता के तौर पर उनके एक और संघर्ष की कहानी मिलती है. साल 1993 में ममता बनर्जी ने एक बार फिर बंगाल की वाम सरकार के विरोध में आंदोलन छेड़ा. इस बार मतदान में प्लान्ड तरीके से धांधली रोकने को मुद्दा बनाया. पश्चिम बंगाल में बांग्लादेशी घुसपैठियों की संख्या और उनके वोट का एक बड़ा मसला चल रहा था. इस बार आंदोलन ने उग्र रूप ले लिया. पुलिस ने गोलिया चलाईं और उसमें 13 लोग मारे गए. बताया जाता है कि पुलिस के एक्शन को वाममोर्चे की सरकार ने सही कहा था. बाद में इसकी न्यायिक जांच में इसे पुलिस की बर्बरता कहा गया.
देश भर में बदल गई थी छवि
गोली चलाने वाली घटना 21 जुलाई 1993 की थी. इस तारीख के बाद से ममता बनर्जी की छवि देश भर में बहुत मजबूत नेता के तौर पर स्थापित हो गई. 1998 में उन्होंने कांग्रेस पार्टी छोड़ दिया. अपना अलग दल बना लिया. इसके करीब 13 साल बाद ममता बनर्जी ने अपनी जोरदार ताकत से राइटर्स बिल्डिंग से वाममोर्चे की सरकार को बाहर कर दिया. अब तक वहां लेफ्ट पार्टियों के साथ, कांग्रेस और बीजेपी भी सफलता नहीं पा सकी है. बीते चुनावों में लग रहा था ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस की स्थिति कमजोर पड़ रही है, लेकिन सारे अटकलों को धता बता कर दीदी ने तीसरी बार पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ले ली.
बहरहाल, इसमें संदेह नहीं है कि मंगलवार के छात्र आंदोलन को पश्चिम बंगाल के विरोधी पार्टियों का समर्थन होगा. इस तरह के आंदलनों में विरोधी दल सरकार को घेरने की कोशिश करते ही हैं. लेकिन जैसा मंगलवार के आंदोलन के लिए पुलिस ने किया उसे लोकतांत्रिक नहीं कहा जा सकता. पुलिस ने आंदोलन की अनुमति नहीं दी. जगह लाठियां भांज कर लोगों को रोक रहे हैं. वॉटर कैनन का इस्तेमाल कर रहे हैं. ये सब सरकार की हरी झंडी के बगैर किया जा रहा हो ऐसा मुमकिन नहीं है. इससे आंदोलनों से मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठी ममता बनर्जी की छवि पर असर पड़ सकता है.
Tags: Chief Minister Mamata Banerjee, Doctor murder
FIRST PUBLISHED : August 27, 2024, 16:01 IST
Source link