अजब गजब

10वीं फेल को लोगों ने कहा निकम्मा-नकारा, आज हस्ती ऐसी कि लाइन से खड़ी हैं रोल्स रॉयस, बोइंग जैसी कंपनियां

Success story : जब एक साधारण लड़का, जिसे कभी “नाकाम” कहा गया था, अपनी मेहनत और जुनून के दम पर दुनिया के सबसे बड़े उद्योगों के दिग्गजों के बीच अपनी जगह बना लेता है, तो वह कहानी सिर्फ सफलता की नहीं, बल्कि हौसले की होती है. राकेश चोपदार (Rakesh Chopdar) की कहानी भी हौसले और जज्बे से भरपूर कहानी है. यह हमें सिखाती है कि असफलता सिर्फ एक पड़ाव है, मंज़िल नहीं. जिस शख्स को कभी स्कूल की परीक्षा में नाकामयाबी का सामना करना पड़ा, उसने अपने हाथों से एक ऐसा साम्राज्य खड़ा किया, जिसे आज पूरी दुनिया सलाम कर रही है.

राकेश चोपदार की विस्तृत कहानी हम आपको बताएं, उससे पहले आपको यह बता दें कि उनके आइडिया में भारत में क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले सचिन तेंदुलकर को भी पूरा भरोसा था. मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर ने राकेश चोपदार की हैदराबाद स्थित कंपनी में 1 फीसदी हिस्सेदारी खरीदने के लिए 5 करोड़ रुपये डाले. उन्होंने मार्च 2023 में सेल्फमेड आंत्रप्रेन्योर राकेश चोपदार द्वारा स्थापित आज़ाद इंजीनियरिंग में निवेश किया था. राकेश चोपदार पर स्कूल ड्रॉपआउट का टैग लगा था. दिसंबर 2023 में कंपनी के पब्लिक होने पर (IPO आने पर) उनकी हिस्सेदारी की कीमत में 15 गुना से अधिक का उछाल आया. तब सचिन तेंदुलकर ने अपना पैसा निकाल लिया.

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किसी ने नहीं सोचा होगा कि एक 10वीं फेल, खुद से एजुकेशन हासिल करने वाला इंजीनियर, जिसने अपने पिता की फैक्ट्री के शॉपफ्लोर पर इंजीनियरिंग के पुर्जे बनाने की कला सीखी, वह एक ग्लोबल मैन्युफैक्चरर के रूप में एक बड़ा नाम बन जाएगा. राकेश चोपदार की कंपनी आज़ाद इंजीनियरिंग पावर सेक्टर, मिलिट्री और सिविल एयरक्राफ्ट, और यहां तक कि तेल और गैस के क्षेत्र में महत्वपूर्ण ‘जीरो डिफेक्ट’ रोटेटिंग पुर्जे बनाती है. आज़ाद इंजीनियरिंग अमेरिका, यूरोप, जापान, चीन और कोरिया की कंपनियों से प्रतिस्पर्धा करती है और ग्लोबलर ऑरिजिनल इक्यूपमेंट्स मैन्युफैक्चरर्स (OEMs) जैसे रोल्स रॉयस, बोइंग, सफरान, जीई, मित्सुबिशी, सीमेंस, बेकर ह्यूजेस, प्रैट एंड व्हिटनी, डूसन, हनीवेल, ईटन, तोशिबा जैसे प्रमुख कंपनियों की एक महत्वपूर्ण रणनीतिक साझेदार बन चुकी है.

10वीं फेल होने पर बदल गई जिंदगी
जब राकेश चोपदार 10वीं की परीक्षा पास नहीं कर पाए तो उनके परिवार के सदस्यों ने ही उन्हें “असफल” और “किसी काम के नहीं” होने के ताना कसे थे. तब राकेश चोपदार ने अपने पिता की फैक्ट्री, एटलस फास्टनर्स, के शॉपफ्लोर पर काम करना शुरू किया, केवल उनके तानों से बचने के लिए. वहीं उन्होंने अपनी इंजीनियरिंग क्षमताओं को निखारा और मशीनों की जानकारी हासिल की.

टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए इंटरव्यू में चोपदार ने खुद खहा, “मुझे खुद को सेल्फ-एजुकेटेड इंजीनियर के रूप में ढालने में चार साल लगे, और इसमें शॉपफ्लोर पर मिले अनुभव का बहुत बड़ा योगदान है,” फिर उन्होंने बिजनेस के बारीकियों को समझना शुरू किया. आगे वे कहते हैं, “मुझे यह जानने की बड़ी जिज्ञासा थी कि हम जो पुर्जे बना रहे हैं, उनका उपयोग कहां हो रहा है, और इसके लिए मैं दिनभर यह देखता था कि पुर्जे कहां फिट होते हैं.”

12 साल की मेहनत के बाद नई शुरुआत
लगभग 12 वर्षों तक अपने पिता की फैक्ट्री में काम करने और बिजनेस के हर पहलू में महारत हासिल करने के बाद, उन्होंने 2008 में आज़ाद इंजीनियरिंग के साथ अपने दम पर एक नई शुरुआत की. उन्होंने कहा, “मैंने एक सेकंड-हैंड सीएनसी मशीन के साथ 200 स्क्वेयर मीटर के शेड में बालानगर में शुरुआत की, और हमारे पास एक यूरोपीय कंपनी के लिए थर्मल पावर टर्बाइनों के लिए एयरफॉयल्स बनाने का हजारों डॉलर का एक ऑर्डर था. हमने थर्मल पावर से शुरुआत की और जल्द ही न्यूक्लियर, गैस और हाइड्रोजन टर्बाइनों के लिए भी निर्माण शुरू किया.”

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उन्होंने बताया कि शुरू में ग्लोबल OEMs को विश्वास नहीं था कि कोई भारतीय कंपनी इतने जटिल 3D रोटेटिंग पुर्जे बना सकती है. लेकिन आज़ाद इंजीनियरिंग ने वैश्विक गुणवत्ता वाले उत्पादों को प्रतिस्पर्धी कीमतों पर उपलब्ध कराकर अपनी क्षमता साबित की. वे कहते हैं, “आज, जिन कैटेगरीज़ में हम काम करते हैं, उनमें भारत में केवल हम ही एकमात्र खिलाड़ी हैं. किसी भी टॉप ग्लोबल OEM का नाम लें, वे हमारे ग्राहक हैं. हम उनके पसंदीदा रणनीतिक साझेदार बन चुके हैं.”

कंपनी ने एक के बाद एक महत्वपूर्ण पुर्जों का निर्माण किया और वैश्विक ग्राहकों का विश्वास जीता. 2014 में कंपनी ने जेडिमेटला में 20,000 वर्ग मीटर की फैक्ट्री स्थापित की, जहां से आज भी उत्पादन हो रहा है. एक भरोसेमंद और गुणवत्तापूर्ण मैन्युफैक्चरर के रूप में अपनी प्रतिष्ठा बनाते हुए आज़ाद इंजीनियरिंग ने 2022 में तीन राष्ट्रीय पुरस्कार जीते.

क्या करते हैं कंपनी के बने पुर्जे
राकेश चोपदार बताते हैं, “हमारे महत्वपूर्ण पुर्जे तेल और गैस ड्रिलिंग डिवाइस को जमीन से 30,000 फीट नीचे और विमान को जमीन से 30,000 फीट ऊपर चलने में मदद करते हैं. जमीन पर हमारे रोटेटिंग पुर्जे न्यूक्लियर टर्बाइनों को शक्ति देते हैं.” 2008 में 2 करोड़ रुपये के टर्नओवर वाली कंपनी से आज़ाद इंजीनियरिंग ने 2023-24 में 350 करोड़ रुपये का रेवेन्यू बनाया. सूचीबद्ध होने के 6 महीने के अंदर इसका बाजार पूंजीकरण 1 बिलियन डॉलर से अधिक हो गया. कंपनी में 1,200 लोग काम करते हैं. चोपदार कहते हैं, “हम इस साल मार्च के आसपास यूनिकॉर्न बन गए थे, जब हमारे शेयर की कीमत 1,400 रुपये से अधिक हो गई थी. आज कंपनी का शेयर लगभग 1,600 रुपये के स्तर पर है.”

अब आगे क्या?
आज़ाद इंजीनियरिंग अब एक नई स्पीड पकड़ रही है. उसने DRDO के गैस टर्बाइन रिसर्च एस्टेब्लिशमेंट (GTRE) के साथ डिफेंस क्षेत्र के लिए हाइब्रिड टर्बो गैस जनरेटर इंजनों के उत्पादन, असेंबली और इंटीग्रेशन के लिए एक सौदा किया है. 2026 की शुरुआत में पहली बैच की पूरी तरह से इंटीग्रेटेड टर्बो इंजनों की डिलीवरी शुरू होगी. भविष्य को लेकर काफी पॉजिटिव दिख रहे राकेश चोपदार ने कहा, “हम अब हाइपरग्रोथ के दौर में हैं. हमने शुरुआती कुछ साल वैश्विक OEMs द्वारा क्वालिफाइड होने पर ध्यान केंद्रित किया और सर्वाइवल के लिए उत्पादन किया. GTRE-DRDO परियोजना आज़ाद इंजीनियरिंग को पुर्जों से लेकर फुल असेंबलीज़ तक की यात्रा में मदद करेगी.”

आज कंपनी अपने सभी चार बिजनेस डिविजनों, एयरोस्पेस, डिफेंस, एनर्जी और तेल एवं गैस, के लिए 2,00,000 वर्ग मीटर की सुविधाओं में शिफ्ट होने की तैयारी कर रही है. यह नई सुविधाएं तुनिकी बोलाराम और जिन्नाराम के पास 800 करोड़ रुपये से अधिक के निवेश से स्थापित की जा रही हैं.

Tags: Business empire, Business ideas, Manufacturing sector, Success Story, Success tips and tricks, Successful business leaders


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एडवोकेट अरविन्द जैन

संपादक, बुंदेलखंड समाचार अधिमान्य पत्रकार मध्यप्रदेश शासन

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