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पोरबंदर ने 1035 साल की यात्रा की पूरी, स्थापना दिवस पर जानिए क्यों ये जिला है खास

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मनसुख मंडाविया

केंद्रीय श्रम एवं रोजगार, युवा मामले एवं खेल मंत्री डॉ. मनसुख मंडाविया ने श्रावणी पूर्णिमा के मौके पर पोरबंदर के 1035 वें स्थापना दिवस पर शुभकामनाएं दी। उन्होंने महात्मा गांधी और सुदामाजी की जन्मस्थली को नमन किया। पोरबंदर की स्थापना विक्रम संवत 1045 में श्रावण पूर्णिमा और शनिवार की सुबह 9:30 बजे जेठवा वंश के राजाओं ने की थी। सौराष्ट्र में भगवान कृष्ण के समय की दो नगरियां द्वारका और सुदामापुरी को पोरबंदर माना जाता है। 

मनसुख मंडाविया ने एक्स पर पोस्ट किया कि 800 वर्षों से भी अधिक के इतिहास वाले पोरबंदर शहर के स्थापना दिवस पर पोरबंदर वासियों को हार्दिक शुभकामनाएं! महात्मा गांधी की जन्मभूमि, सुदामा की जन्मभूमि और अनेक महान विभूतियों की कर्मभूमि को नमन। हमारा पोरबंदर सदैव विकास की नई ऊंचाइयों को छुए।

पोरबंदर में गांधीजी का पैतृक घर

पोरबंदर ने दुनिया को राष्ट्रपिता के रूप में महात्मा गांधी का तोहफा दिया है। पोरबंदर में महात्मा गांधी के जीवन से जुड़े कई स्थान और स्मारक हैं, जो पर्यटकों के लिए सबसे बड़ा आकर्षण बन गए हैं। पोरबंदर में गांधीजी का पैतृक घर तीन मंजिल का है। इसी घर में गांधीजी की मां पुतलीबाई ने 2 अक्टूबर 1869 को उन्हें जन्म दिया था। वहीं, गुलाबदास ब्रोकर और रतिभाई छाया जैसे कवि और लेखक इस शहर के ऋणी हैं। इसी तरह दुनिया को गुजराती भाषा में वनस्पति विज्ञान की किताब देने वाले जयकृष्ण इंद्रजी, नृत्य में पारंगत सवितादीदी मेहता और भारत की पहली क्रिकेट टीम के कप्तान रहे क्रिकेट प्रेमी नटवर सिंह जी, पोरबंदर के आखिरी महाराजा भी इस शहर के ऋणी हैं।

बंदरगाह के लिए मशहूर रहा पोरबंदर

पोरबंदर भारतीय राज्य गुजरात का एक जिला है। इसका प्रशासनिक मुख्यालय पोरबंदर शहर है। यह जिला गुजरात के पश्चिमी भाग में स्थित है। इसकी सीमाएं उत्तर में जामनगर, पश्चिम में अरब सागर, दक्षिण में जूनागढ़ और पूर्व में राजकोट जिले से लगती है। इसका क्षेत्रफल 2,316 वर्ग किलोमीटर (भौगोलिक क्षेत्र) है। अरब सागर के तट पर स्थित पोरबंदर अपने बंदरगाह के लिए मशहूर रहा है। जूनागढ़ जिले को विभाजित करके पोरबंदर जिले की स्थापना की गई है।

जेठवा राजपूतों के नियंत्रण में था पोरबंदर 

16वीं शताब्दी में पोरबंदर जेठवा राजपूतों के नियंत्रण में था। जिला बनने से पहले यह 1785 से 1948 तक पोरबंदर रियासत की राजधानी थी। महाभारत काल में इसे अस्मावतीपुर के नाम से जाना जाता था। 10वीं शताब्दी में पोरबंदर को पौरवेलकुला कहा जाता था। यह भगवान कृष्ण के मित्र सुदामा की जन्मस्थली भी है, इसलिए इसे पहले सुदामापुरी भी कहा जाता था। (IANS)

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एडवोकेट अरविन्द जैन

संपादक, बुंदेलखंड समाचार अधिमान्य पत्रकार मध्यप्रदेश शासन

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