मध्यप्रदेश

Three villages became islands due to the back water of Narmada | नर्मदा के बैक वाटर से तीन गांव बने टापू: बड़वानी में 17 परिवारों को नाव का आसरा; बोले-यहां से गए तो सब लुट जाएगा – Barwani News

राजघाट कुकरा, जांगरवा और बड़वा गांवों में लोग पानी के बीच टूटे-फूटे मकानों में रह रहे हैं।

बड़वानी में बारिश की वजह से नर्मदा नदी का जलस्तर लगातार बढ़ रहा है। फिलहाल, यह 134.40 मीटर है, जो खतरे के निशान से 11 मीटर ज्यादा है। ऐसे में बैक वाटर में भी तेजी से पानी बढ़ा है। इससे 65 गांवों पर खतरा मंडराने लगा है। तीन गांव राजघाट कुकरा, जांगरवा और

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इन तीनों गांवों के छह हजार से ज्यादा लोगों पर जीवन का संकट गहरा रहा है। इनमें से बड़ी आबादी को 2019 में टीनशेड में पुनर्वास कर दिया गया था, लेकिन 17 परिवार अभी भी यहीं रह रहे हैं।

दैनिक भास्कर की टीम ग्राउंड जीरो पर पहुंची। राजघाट गांव के लोगों ने कहा- हम नाव से आना-जाना करते हैं। सरकार से पुनर्वास की मांग कर चुके हैं, लेकिन सुनवाई नहीं हो रही है। अगर घर छोड़कर चले गए तो सब लुट जाएगा।

राजघाट कुकरा गांव नर्मदा के बैक वाटर में बसा है। बारिश के दिनों में यह टापू बन जाता है।

चारों ओर पानी, टूटे घरों में गुजर रही जिंदगी

जिला मुख्यालय से महज 5 किलोमीटर दूर नर्मदा के बैक वाटर के पास बसा राजघाट कुकरा गांव साल में चार महीने टापू बना रहता है। यहां 17 परिवार रहते हैं। फिलहाल खेतों और सड़कों पर पानी भरा है।

दैनिक भास्कर की टीम नाव में सवार होकर गांव पहुंची। यहां देखा तो चारों ओर पानी ही पानी था। हालत ये है कि अगर तबीयत खराब भी हो जाए, तो नाव से जाना पड़ता है। जिला मुख्यालय के करीब होने के बाद भी यहां लाइट नहीं है। ज्यादातर घर टूटे हैं। सामान बिखरा है। कीचड़ के बीच ही कुछ जानवर भी बंधे हैं।

गांव के पास प्रशासन ने टीन शेड बनाए हैं। इसी के नीचे कई लोगों का अस्थाई पुनर्वास कर दिया है। यहीं खाना बनाया जाता है। लगातार बढ़ते जलस्तर के कारण डर भी लगा रहता है। तट पर मौजूद श्रीदत्त मंदिर भी डूब गया है।

राजघाट कुकरा गांव में घर टूटे हुए हैं। लोग इन्हीं में जैसे-तैसे जीवन गुजारा कर रहे हैं।

राजघाट कुकरा गांव में घर टूटे हुए हैं। लोग इन्हीं में जैसे-तैसे जीवन गुजारा कर रहे हैं।

जगह और मुआवजे की मांग को लेकर डटे 17 परिवार

राजघाट गांव में रहने वाले देवेंद्र सोलंकी ने बताया, ‘पहाड़ी क्षेत्र में 17 परिवार हैं, जो जगह और मुआवजे की मांग को लेकर डटे हैं। हमारा गांव डूब क्षेत्र में है। चार से पांच महीने पानी से घिरे रहते हैं। प्रशासन को कई बार बताया गया, लेकिन ध्यान नहीं दिया गया। निराकरण नहीं होने पर टापू पर ही रहेंगे।

ऊपरी टीले से सटे खेतों में मक्का और अन्य फसलें पकने लगी हैं। बढ़ते जलस्तर से खड़ी फसलों के फिर जलमग्न होने का खतरा बढ़ने लगा है।’

बंजर जमीन पर रहने भेज दिया, हम क्यों जाएं

गांव के ही बाबू सिंह ने बताया, ‘प्रशासन ने संपूर्ण पुनर्वास नहीं कराया है। बारिश में गांव टापू बन जाता है। जैसे ही डैम में पानी बढ़ता है, नाव की आवश्यकता पड़ती है लेकिन हमारी नाव भी बंद कर दी गई है। हम पुनर्वास स्थल पर गए थे, लेकिन वहां मवेशियों के लिए चारे का इंतजाम नहीं था। वे मरने लगे, तो हम फिर से गांव में आ गए।

राहुल यादव ने बताया कि सरदार सरोवर का जलस्तर 123 मीटर तक पहुंच गया है। ऐसे में यहां भी पानी बढ़ रहा है। 17 परिवारों के मुखिया को जो जमीन दी गई है, वह भी उपजाऊ नहीं है।

राजघाट कुकरा गांव के लोगों का कहना है कि गांव छोड़कर गए तो प्रशासन मुआवजा भी नहीं देगा। मरते दम तक यहीं रहेंगे।

राजघाट कुकरा गांव के लोगों का कहना है कि गांव छोड़कर गए तो प्रशासन मुआवजा भी नहीं देगा। मरते दम तक यहीं रहेंगे।

सरदार सरोवर के भरने पर 65 गांवों पर डूब का खतरा

बारिश में सरदार सरोवर बांध परियोजना के पूरा भरने पर राजघाट कुकरा में पानी का हाई लेवल 138.38 मीटर पहुंचता है। जिले में डूब प्रभावित 65 गांव हैं। कोई गांव शत प्रतिशत तो कोई 20, 40 या 50 प्रतिशत तक डूब में शामिल है।

लोकेंद्र सिंह ने बताया कि ओंकारेश्वर परियोजना बांध के टरबाइन से लगातार पानी छोड़ा जा रहा है। इस वजह से जलस्तर में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। नतीजतन जिला मुख्यालय से 5 किमी दूर डेढ़ एकड़ क्षेत्रफल में फैला ये गांव टापू बन गया है। गांव में बसे 17 परिवार यहीं फंस कर रह गए हैं।

ग्रामीण टूटे-फूटे कच्चे घरों में रह रहे हैं। वे इन्हें छोड़ने को तैयार नहीं हैं।

ग्रामीण टूटे-फूटे कच्चे घरों में रह रहे हैं। वे इन्हें छोड़ने को तैयार नहीं हैं।

भेड़-बकरियों की तरह टूटे-फूटे घरों में रह रहे

पिछोड़ी गांव में रहने वाली रीना ने बताया, ‘10 बाय 10 के कमरे में लाकर पटक दिया है। छोटे से कमरे में हम रहें या भेड़-बकरियों को रखें। इसी कमरे में रहना, खाना बनाना और सोना पड़ता है। हमें कोई देखने नहीं आता। सरकार सम्पूर्ण पुनर्वास की बात करती है। यहां आकर देखें कि कैसे जीवन जी रहे हैं। हमें यहां रहने में मजा नहीं आता।

हम भी चाहते हैं कि मकान बने। घर हो। हमारे बच्चे अच्छे से रहें। मगर, सरकार और जनप्रतिनिधियों को फर्क नहीं पड़ता। हमें देखने तक नहीं आते। हम मिलने जाते हैं, तो मिलते भी नहीं।’

2019 में डूब क्षेत्र में आए 300 परिवारों को प्रशासन ने टीनशेड में पुनर्वास करवाया था, तभी से ये लोग यहां रह रहे हैं। स्थायी पुनर्वास नहीं किया गया।

2019 में डूब क्षेत्र में आए 300 परिवारों को प्रशासन ने टीनशेड में पुनर्वास करवाया था, तभी से ये लोग यहां रह रहे हैं। स्थायी पुनर्वास नहीं किया गया।

कई बार ज्ञापन दिया, कोई नहीं सुनता

यहां रिंकिता बाई ने बताया कि हम पिछोड़ी गांव के रहने वाले हैं। साल 2019 में घर, गांव, खेत सब कुछ डूब गया। तभी से प्रशासन ने टीनशेड में लाकर रखा है। शुरुआत में दो महीने तक खाना दिया फिर हमारे हाल पर छोड़ दिया। 6 साल से टीनशेड में ही रह रहे हैं। हमारा सम्पूर्ण पुनर्वास आज तक नहीं हुआ। घर, प्लॉट नहीं मिले। पांच लाख 80 हजार रुपए का लाभ नहीं मिला। कई बार ज्ञापन दे चुके हैं। मगर, कोई नहीं सुनता। कहां जाएं, किसके पास जाएं, कुछ समझ नहीं आता। भेड़ बकरियों की तरह टीनशेड में जीवन जी रहे हैं। पानी की व्यवस्था नहीं है। अधिकांश समय बिजली नहीं रहती। बारिश के दिनों में कीड़े-मकोड़ों का डर रहता है। सांप भी अक्सर निकलते रहते हैं।

अफसर बोले- सब दे दिया, फिर भी मांग रहे

दूसरी तरफ, नर्मदा प्राधिकरण अधिकारी एसएस चोंगड का कहना है कि साल 2019 में जब सरदार सरोवर डैम 138.68 मीटर भर गया तो कुकरा गांव को शिफ्ट कर दिया था। उनके मुखिया को गुजरात में 2 हेक्टेयर जमीन, मुआवजा सब दे दिया है। जो जमीन बची है, उनके कुछ बच्चे वहां रहते हैं। उनकी मांग है कि उनको भी मुआवजा मिले।

65 गांवों के एक लाख लोगों का पुनर्वास नहीं

नर्मदा बचाओ आंदोलन के राहुल यादव ने बताया कि बड़वानी जिले के 65 गांवों में करीब 23 हजार परिवार रहते हैं। इनमें एक लाख से ज्यादा की आबादी है। 138 मीटर जलस्तर पहुंचता है तो 65 गांवों में से 13 टापू बन जाते हैं। इनका संपूर्ण पुनर्वास नहीं हुआ।

टीन शेड में रहने वाले लोगों की समस्या है कि 10 बाय 10 के कमरे में भी रहना, खाना और सोना पड़ता है।

टीन शेड में रहने वाले लोगों की समस्या है कि 10 बाय 10 के कमरे में भी रहना, खाना और सोना पड़ता है।

पूर्व मंत्री बोले- मुआवजे के तौर पर मिली बंजर जमीन

कांग्रेस नेता और पूर्व मंत्री अरुण यादव ने कहा, ‘यह इलाका सरदार सरोवर बांध के डूब क्षेत्र में है। बारिश होने पर राजघाट कुकरा गांव टापू बन जाता है। गांव के 17 परिवार अपनी मांगों को लेकर यहां साल 2019 से ही रह रहे हैं। उनका कहना है कि जब तक मांगें पूरी नहीं होतीं, तब तक नहीं जाएंगे।

उन्हें मुआवजे के तौर पर जो जमीन दी गई, वह गुजरात के कच्छ में है। जमीन खारी होने के साथ बंजर भी है। विरोध किया तो प्रशासन ने उनके रहने के लिए टीन शेड का इंतजाम किया। खाने की व्यवस्था का आश्वासन देकर चले गए। इसके बाद गांव वाले गांव में ही रह गए। इसी दौरान करंट लगने से दो लोगों की मौत भी हो गई। प्रशासन ने उसका भी मुआवजा नहीं दिया।’

मेधा पाटकर बोलीं- कई लाेगों का पुनर्वास बाकी

नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता व समाजसेवी मेधा पाटकर ने बताया कि जिन लोगों का संपूर्ण पुनर्वास नहीं हुआ, उनके मामलों की जांच के आदेश कलेक्टर को दिए हैं। डूब प्रभावित लोगों के नुकसान का सही आकलन कर नियमानुसार पंचनामा किया जाए। जल्द सहायता, नुकसान की भरपाई की जाए।

इसके साथ बैक वाटर लेवल का झूठा आकलन करके अपने ही नियम का पालन नहीं करने के लिए अधिकारियों की जवाबदेही सुनिश्चित की जाए। प्रभावितों को डूब में आई जमीन का मुआवजा और पुनर्वास का लाभ दिया जाए।

सांसद ने कहा- सीएम ने सख्त निर्देश दिए

राज्यसभा सांसद डॉ. सुमेर सिंह सोलंकी ने बताया, ‘बड़वानी व आसपास के इलाकों में सरदार सरोवर बैक वाटर से प्रभावित इलाकों को लेकर प्रदेश सरकार ने प्रशासन को मुस्तैद रहने के निर्देश दिए हैं। जहां पुनर्वास की व्यवस्था ठीक नहीं है, उसे दुरुस्त करने के भी निर्देश हैं।

राजघाट कुकरा गांव​​​​​​​ में थी राष्ट्रपिता गांधी की समाधि

राजघाट कुकरा गांव इसलिए खास है, क्योंकि यहां राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की समाधि भी थी। इस वजह से गांव का नाम भी राजघाट कुकरा पड़ा, लेकिन डूब क्षेत्र में आने के बाद समाधि को साल 2019 में यहां से शिफ्ट कर दिया गया था।


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एडवोकेट अरविन्द जैन

संपादक, बुंदेलखंड समाचार अधिमान्य पत्रकार मध्यप्रदेश शासन

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