पहली बोलती फिल्म पर बनी डॉक्यूमेंट्री ‘दास्तान-ए-आलम-आरा’ में दिया था संगीत | The music was given in the documentary ‘Dastan-e-Alam-Aara’ made on the first talkie film

भोपाल30 मिनट पहले
वरिष्ठ पत्रकार राजेश बादल ने सिंगर जगजीत सिंह के बारे में बताया।
“कोई रातों रात जगजीत नहीं बन जाता। जगजीत को जगजीत बनने में बहुत समर्पण, त्याग और तपस्या की जरूरत होती है।” लेखक राजेश बादल रविवार को भोपाल लिटरेचर एंड आर्ट फेस्टिवल में शामिल होने आए थे। उन्होंने ‘दास्तान-ए-जगजीत’ सत्र में अपनी बात रखी। उन्होंने जगजीत सिंह की जीवनी ‘कहां तुम चले गए: दास्तान-ए-जगजीत’ लिखी है। यहां उन्होंने अपनी किताब पर भी बात की और डॉक्यूमेंट्रीज पर भी।
भारत-भवन में होना था आखिरी शो, लेकिन नहीं आ पाए जगजीत सिंह
राजेश बादल ने बताया कि “जगजीत सिंह ने अपने आखिरी शो के बारे में जिक्र किया था। ये भारत-भवन में होना तय था। उन्होंने बताया कि मुझे भोपाल जाना था, लेकिन मैं किन्हीं वजहों से नहीं जा पाया। उन्होंने अपने बेटे को खोया था। उनका संगीत का सफर भी लड़खड़ा रहा था।”
अपने आखिरी शो के लिए जगजीत सिंह भोपाल के भारत भवन आने वाले थे।
वे आगे कहते हैं कि “जगजीत अपने आप से लड़ाई कर रहे थे। इसके चलते उनके गायन पर भी असर पड़ रहा था। उन्हें लगता था कि वे लोगों की आशाओं पर खरा नहीं उतर रहे हैं या उस मुताबिक नहीं गा पा रहे हैं, तो वे पैसे वापस कर देते थे या शो ही कैंसिल कर देते थे। हो सकता है कि इसी वजह से वे भोपाल न आ पाए हों।”
‘दास्तान-ए-आलम-आरा’ के गीत गाए, संगीत भी दिया
राजेश बादल वरिष्ठ पत्रकार, लेखक और डाॅक्यूमेंट्री मेकर हैं। उन्होंने बताया कि जगजीत सिंह की शुरुआत ही ऐतिहासिक रही थी। उन्होंने भारत की पहली बोलती फिल्म ‘आलम-आरा’ पर बनी डॉक्यूमेंट्री ‘दास्तान-ए-आलम-आरा’ के गीत गाए और संगीत भी दिया था।
आलम-आरा साल 1931 में आई थी। इसके प्रिंट कुछ समय बाद जल गए थे। केवल 1 या 2 रील बच गई थीं। कुछ फोटोग्राफ भी बचे थे। ये फिल्म आर्देशिर ईरानी ने बनाई थी। करीब 25 साल बाद उनके परिवार ने फिल्म पर एक डॉक्यूमेंट्री बनाई। इसमें कैफी आजमी साहब ने एक लंबी गजल लिखी। उस फिल्म का संगीत जगजीत सिंह ने दिया था। उन्होंने ही इसके गीत भी गाए थे।

भारत की पहली बोलती फिल्म पर बनी डॉक्यूमेंट्री में जगजीत सिंह ने गीत गाए थे।
“जितने अच्छे गायक, उससे ज्यादा अच्छे इंसान थे जगजीत”
राजेश बादल कहते हैं कि “जगजीत को केवल कलाकार के रूप में देखना उनके साथ न्याय नहीं है। ये बुनियादी शर्त है कि आप एक अच्छे इंसान भी हों। अगर, आप अच्छे कलाकार के रूप में शिखर पर जाएं, जाते रहें तो उसके लिए ये बहुत आवश्यक है कि आप एक अच्छे इंसान भी हों। वे जितने अच्छे गजल गायक थे, उससे कहीं ज्यादा अच्छे इंसान थे।”
वे बताते हैं कि “हम उस जगजीत को तो जानते हैं, जो गजल गाता है, एक कलाकार है, लेकिन हम उस जगजीत को नहीं जानते, जो आधी रात को किसी भी परेशान आदमी के लिए उठ खड़ा होता है। वे वर्षों तक लोगों की लाखों रुपयों से मदद करते रहे। वे एक फरिश्ते की तरह लोगों के पास पहुंच जाया करते थे। कोई उनसे मदद मांगने नहीं आता, फिर भी वे सैंटा क्लॉज की तरह लोगों के दरवाजे पर पहुंच जाते थे।”

आधी रात में भी किसी परेशान आदमी की मदद करने के लिए तैयार रहते थे जगजीत सिंह।
“किसी बड़े कलाकार ने नहीं की जगजीत की मदद”
राजेश बादल बताते हैं कि, “हम उस जगजीत को नहीं जानते जिसकी उस दौर के बड़े कलाकारों ने मदद नहीं की। फिर भी उन्होंने 50 नए गजल गायक पैदा किए। अपने कड़वे अनुभवों के चलते उन्होंने नए गायकों को मौका दिया।”
वे आगे कहते हैं कि, “मेरी नजर में जगजीत के अंदर एक ऐसा रूहानीपन था, जिसकी कोई मिसाल नहीं है। शायद यही कारण है कि जगजीत जब एक बार शिखर पर पहुंचे तो वो आखिरी सांस तक शिखर पर रहे। यहीं नहीं अपने जाने के 12 साल बाद भी उन जैसा बेजोड़ गजल गायक कोई नहीं है। वो आज 2023 में भी शिखर पर हैं।”

अपने जाने के 12 साल भी गजल के शिखर पर हैं जगजीत सिंह।
मेहदी हसन ने क्यों कहा जगजीत तो मेरे लिए देवता समान थे?
राजेश बादल बताते हैं कि “जगजीत सिंह एक बार पाकिस्तान में शो कर रहे थे। गजलों के बीच उनके पास एक पर्ची आई, जिसमें लिखा था कि मेहदी हसन साहब बीमार हैं। वो अस्पताल में भर्ती हैं और उनको बहुत आर्थिक तंगी है। उसी समय जगजीत ने माइक से बोला कि दुनिया के बेजोड़ फनकार मेंहदी हसन इस समय गंभीर हैं। इस शो से मिलने वाली तमाम कमाई मैं उन्हें दूंगा। इसके बाद लोगों ने मिलकर वहां लाखों रूपए जोड़ दिए।”
इस मदद से मेंहदी हसन का इलाज हुआ और वे ठीक हो गए। उन्होंने बाद में कहा कि जगजीत सिंह तो मेरे लिए देवता समान थे।
अनजान शख्स की बेटी की शादी में दिए 10 लाख रुपए
राजेश बादल बताते हैं, “देहरादून में एक वैद्य हैं उन्होंने मुझे बताया कि, वो एक बार जगजीत सिंह के साथ मुंबई में उनके घर में बैठे थे। उनका ड्राइवर अपने साथ किसी एक व्यक्ति को लेकर आया। ड्राइवर ने बताया कि ये गुजरात से आए हैं। वहां आपका शो करना चाहते हैं। इस पर जगजीत सिंह ने पूछा कि आप कहां शो करेंगे तो परिचित ने एक जगह का नाम लिया।”
उन्होंने आगे बताया कि “जगजीत को इस बात पर बड़ा ताज्जुब हुआ कि वहां तो गजल का ज्यादा माहौल नहीं है। उन्हें समझ आ गया था कि इसके पीछे कोई और कारण है तो उन्होंने पूछा कि आप ये शो क्यों कराना चाहते हैं?”

अनजान शख्स की बेटी की शादी में यूं ही दे दिए 10 लाख रुपए।
वे कहते हैं कि “परिचित ने कहा कि, मेरी बेटी की शादी है। उसका खर्च उठाने के लिए मेरे पास पैसे नहीं हैं। यही कारण है कि मैं आपका शो करना चाहता हूं। उसकी टिकट से जो पैसा आएगा उससे बेटी की शादी कर लूंगा। आपका शो कभी खाली नहीं जाता, तो मुझे उम्मीद है कि इसमें मुझे 10 लाख रुपए के आसपास बच जाएंगे।”
राजेश बादल बताते हैं कि “जगजीत ये जानते थे कि उन्हें कभी 10 लाख रुपए नहीं बचेंगे। उनकी फीस देनी होगी, आयोजन का खर्च उठाना होगा। इसके चलते जगजीत ने कहा कि कोई बात नहीं, मैं आपको बताऊंगा। वो अंदर गए और एक मिठाई का डिब्बा ले आए। उन्होंने कहा कि मेरी कोई बेटी नहीं है और आप अपनी बेटी की शादी कर रहे हैं तो ये मिठाई मेरी तरफ से लेते जाइए।”
उन्होंने आगे कहा कि “जब वो परिचित वापस गया और उसने मिठाई का डिब्बा खोलकर देखा तो उसमें मिठाई तो थी ही, 10 लाख रुपए भी थे।”

जगजीत सिंह का शो कराकर अपनी बेटी की शादी कराना चाहता था शख्स।
गजल में शामिल किए पश्चिमी वाद्ययंत्र
70 के दशक में जगजीत सिंह ने पश्चिमी वाद्ययंत्रों में कई प्रयोग किए। लोगों ने इसके लिए उनकी बहुत आलोचना की। बहुत लोग उनके खिलाफ आए। उनका कहना था कि गजल भारतीय संगीत की विधा है। इस विधा में आप गिटार इस्तेमाल कर रहे हैं। कई और पश्चिमी वाद्ययंत्रों का इस्तेमाल कर रहे हैं।
राजेश बादल बताते हैं कि, “इस पर जगजीत ने जवाब दिया कि आज सबकी चिंता ये है कि गजल मर रही है। ये तो सब कहते हैं कि गजल को जिंदा करने की जरूरत है। इसे लोगों तक पहुंचाने की जरूरत है लेकिन ये कैसे होगा?”

1970 के दशक में गजल में पश्चिमी वाद्ययंत्रों के साथ किया था प्रयोग।
नए लोगों से जुड़ने के लिए किए गजल में नए प्रयोग
वे आगे कहते हैं कि जगजीत सिंह ने कहा, ‘अगर आपके 4-5 साल के बच्चे हैं। जब वो खाना खाने बैठते हैं तो क्या वो आसानी से खाना खा लेते हैं? कोई उन्हें टीवी दिखाता है, कोई कहानी सुनाता है। बच्चों का ध्यान बंटा कर उन्हें खाना खिलाना पड़ता है। कुछ ऐसा ही गजल के साथ है।'”
वे बताते हैं कि जगजीत ने कहा, ‘मैं अगर गजल में पश्चिमी वाद्ययंत्रों का इस्तेमाल करता हूं तो मैं उससे नए लोगों को जोड़ना चाहता हूं। मैं उन इंस्ट्रयूमेंट्स से पश्चिमी धुनें तो नहीं निकालता, वे हिंदुस्तानी संगीत निकालते हैं। शास्त्रीय संगीत निकालते हैं, तो उसमें क्या गलत है?’

राजेश बादल ने लिखी है ‘कहां तुम चले गए- दास्तान-ए-जगजीत’
पांच डॉक्यूमेंट्रीज में जगजीत सिंह के जीवन की पूरी कहानी
यहां राजेश बादल ने 1-1 घंटे की पांच डॉक्यूमेंट्रीज बनाई हैं। इनमें जगजीत सिंह के जीवन की पूरी कहानी है। वे कहते हैं कि, इन फिल्मों के लिए मैं हर उस जगह पर गया जहां से जगजीत सिंह का थोड़ा भी रिश्ता रहा है। वे राजस्थान के गंगानगर में पैदा हुआ थे, जालंधर और कुरूक्षेत्र में उन्होंने पढ़ाई की। वे दिल्ली और मुंबई में रहे। मैं इन सब जगहों पर गया। उन सभी लोगों से मिला जो किसी भी तरह जगजीत सिंह से जुड़े हुए थे।
वे कहते हैं कि, “जगजीत सिंह को गए 12 साल हो गए लेकिन उन्हें याद करने के लिए इस देश ने कुछ नहीं किया। न ही उनके लिए कोई कार्यक्रम हुआ। ये मेरे लिए बहुत तकलीफ देने वाला था, इसलिए मैंने उनके बारे में किताब लिखी।”
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