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‘मेरी 12 साल की सजा…’ कोर्ट पहुंचा गैंगस्टर अबु सलेम, मुंबई ब्लास्ट के आरोपी की बात झट से मान गए जज साहब

मुंबई. मुंबई की एक विशेष अदालत ने शनिवार को 1993 के सिलसिलेवार बम विस्फोट मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे गैंगस्टर अबु सलेम के मुकदमे की सुनवाई के दौरान हिरासत अवधि के बदले जेल अवधि कम करने की उसकी याचिका को मंजूरी दे दी. वर्ष 2005 में पुर्तगाल से प्रत्यर्पित करके लाए गए सलेम को मुंबई में सिलसिलेवार बम विस्फोट के मामले में उसकी भूमिका के लिए 2017 में दोषी ठहराया गया था और आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी. वह वर्तमान में पड़ोसी नवी मुंबई की तलोजा जेल में बंद है.

जेल में बंद गैंगस्टर ने अदालत के समक्ष एक आवेदन दायर कर गिरफ्तारी की तारीख 11 नवंबर, 2005 से सात सितंबर, 2017 को मामले में अंतिम फैसला आने तक जेल में बिताई गई अवधि को कम करने की मांग की थी. सलेम की याचिका को स्वीकार करते हुए आतंकवादी और विघटनकारी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (टाडा) के विशेष न्यायाधीश बीडी शेल्के ने जेल अधीक्षक को मुंबई सिलसिलेवार विस्फोट मामले की सुनवाई के दौरान हिरासत में बिताई गई अवधि के लिए आरोपी को छूट देने का निर्देश दिया.

विस्फोट मामले के अलावा, सलेम को 2015 में शहर के बिल्डर प्रदीप जैन की हत्या के लिए आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी. सलेम ने दलील दी कि जेल अधिकारियों ने उसे बिल्डर हत्या मामले में विचाराधीन कैदी के रूप में बिताई गई अवधि के लिए छूट दे दी है, लेकिन सिलसिलेवार बम विस्फोट मामले में कोई छूट नहीं दी गई, जो विशेष अदालत के आदेश की अवमानना ​​है.

सलेम की याचिका में कहा गया कि विशेष अदालत के आदेश में विशेष रूप से उल्लेख किया गया था कि इस मुकदमे में आरोपी को उसकी गिरफ्तारी की तारीख से उसकी हिरासत अवधि के लिए छूट दी जाए. सलेम ने दलील दी कि दोनों मामलों में, सात सितंबर, 2017 को विशेष टाडा अदालत द्वारा सुनाए गए आदेश के अनुसार आजीवन कारावास एक साथ चलेगा.

इसके अतिरिक्त, उनकी याचिका में भारत और पुर्तगाल सरकार के बीच प्रत्यर्पण समझौते का हवाला दिया गया, जिसके तहत मुख्य गारंटी यह थी कि किसी अतिरिक्त अपराध के लिए सजा नहीं दी जाएगी. सलेम की याचिका में कहा गया, ‘यह भी स्पष्ट था कि यदि आवेदक को उन अपराधों में दोषी ठहराया जाता है, जिसमें उसे प्रत्यर्पित किया गया है तो उसे 25 साल से अधिक की सजा नहीं दी जाएगी. इसके अलावा, वह पुर्तगाली कानून के अनुसार छूट और माफी का पात्र होगा.’

अदालत द्वारा पूछे गए सवाल पर, आरोपी ने जेल अधिकारियों की एक रिपोर्ट प्रस्तुत की, जहां कम की जाने वाली अवधि की गणना 11 नवंबर 2005 से छह सितंबर 2017 तक की गई है, जो 11 वर्ष नौ महीने और 26 दिन की है. अदालत ने कहा, ‘हालांकि पहले जेल, अदालत के आदेश पर उस अवधि की गणना करने के लिए तैयार नहीं थी. अब यह निष्कर्ष निकाला गया है कि कम की जाने वाली अवधि की गणना के संबंध में आवेदक और जेल प्राधिकरण के बीच कोई विवाद नहीं है.’

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एडवोकेट अरविन्द जैन

संपादक, बुंदेलखंड समाचार अधिमान्य पत्रकार मध्यप्रदेश शासन

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