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कौड़ियों के भाव बिकेंगे पेट्रोल-डीजल, मिट्टी बन जाएगा कोयला, अब ऐसे पैदा होगी बिजली!

एक मिनट के लिए कल्पना कीजिए कि धरती पर सूरज जैसी कोई चीज मिल जाए या बना ली जाए… तो क्या होगा? यह लाइन आपको थोड़ी अटपटी लग सकती है लेकिन आप सही पढ़ रहे हैं. हम ‘कृत्रिम सूरज’ की ही बात कर रहे हैं. ‘कृत्रिम सूरज’ एक ऐसी कल्पना है जो साकार होती दिख रही है. वैज्ञानिकों ने इस दिशा में बड़ी सफलता हासिल की है. इस सफलता के बाद अब अनुमान लगाया जा रहा है कि दुनिया जीवाश्म ईंधन यानी पेट्रोल-डीजल, गैस और यहां तक कि कोयले पर अपनी निर्भरता काफी हद तक घटा सकती है.

दरअसल, आज हम बात कर रहे हैं सूरज से निकलने वाली आपार ऊर्जा के रहस्य के बारे में. वैज्ञानिकों ने इस रहस्य को सैद्धांतिक तौर पर काफी पहले सुलझा लिया था. लेकिन अमेरिकी वैज्ञानिकों ने इसे पहली पर व्यावहारिक रूप में उतारा है. उन्होंने प्रयोगशाला में ऐसी ही ऊर्जा पैदा कर ली है. इस बारे में बाकायदा अमेरिका की सरकार ने घोषणा की है. इसको लेकर वहां की सरकार बेहद उत्साहित है. उसे लग रहा है कि अगर यह फॉर्मूला धरातल पर उतार दिया जाए तो पेट्रोल-डीजल के लिए अरब देशों पर उसकी निर्भरता खत्म हो जाएगी. यहां तक कि रूस द्वारा गैस की सप्लाई रोकने के कारण यूरोप में पैदा हो रहे ऊर्जा संकट जैसे भविष्य की चुनौतियों का भी सामना किया जा सकता है.

क्या है यह प्रयोग
अमेरिकी वैज्ञानिकों ने प्रयोगशाला में सूरज की तरह ऊर्जा पैदा की है. अगर आपने स्कूल स्तर पर फिजिक्स की पढ़ाई की हो तो आपको पता होगा कि सूरज से निकलने वाली आपार ऊर्जा का राज परमाणु संलयन (nuclear fusion) की प्रक्रिया है. इस प्रक्रिया में परमाणु को दो सुक्ष्म कण आपस में मिलकर एक बड़े कण का निर्माण करते हैं. इस प्रक्रिया में आपार ऊर्जा का उत्सर्जन होता है. न्यूक्लियर फ्यूजन के लिए दो सुक्ष्म अणुओं को बेहद उच्च तापमान तक गर्म किया गया, जिससे कि वे स्वतः फ्यूज होकर एक बड़े अणु का निर्माण करें. न्यूक्लियर फ्यूजन के ही फॉर्मूले पर सूरज में हाइड्रोजन के अणु काम करते हैं. एक दूसरी प्रक्रिया होती है न्यूक्लियर फिजन (nuclear fission). इसमें परमाणु के अणु विखंडित होते हैं और इस प्रक्रिया में भी व्यापक ऊर्जा का उत्सर्जन होता है. लेकिन फ्यूजन की तुलना में काफी कम. मौजूदा वक्त में दुनिया के तमाम परमाणु बिजनी संयंत्रों में इसी विखंडन की प्रक्रिया से बिजली पैदा की जाती है.

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30 लाख डिग्री सेल्सियस तक गर्म किया गया सोना
अमेरिका के कैलिफोर्निया में स्थित लॉरेंस लीवरमोर नेशनल लेबोरेट्री (Lawrence Livermore National Laboratory) के नेशनल इग्निशन फैसिलिटी में पांच दिसंबर को यह प्रयोग किया गया. इसके लिए एक सेंटीमीटर के सोने के कंटेनर में दो एमएम की एक कैप्सूल रखी गई और इसे 30 लाख डिग्री सेल्सियस तक गर्म किया गया. इस पूरी प्रक्रिया के दौरान जितनी ऊर्जा दी गई उससे 153 फीसदी अधिक ऊर्जा प्राप्त हुई. फ्यूजन की प्रक्रिया का सार यह है कि इमसें जितनी ऊर्जा लगाई जाती है उससे कहीं अधिक ऊर्जा का उत्सर्जन होता है. इसके साथ ही इस प्रक्रिया में न्यूक्लियर फिजन की तरह खतरनाक परमाणु कचरे नहीं निकलते. इसलिए परमाणु संयंत्रों के लिए इस प्रक्रिया को बेहद उपयोगी माना जा रहा है.

तकनीक के विकास पर अब तक 40 खरब रुपये का निवेश
फाइनेंशियल टाइम्स अखबार की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस फ्यूजन तकनीक के विकास पर अब तक करीब 4.9 बिलियन डॉलर का निवेश किया जा चुका है. रुपये में इसकी वैल्यू करीब 40 खरब रुपये है.

अमेरिका की सरकार बेहद उत्साहित
इस उपलब्धि से अमेरिका की सरकार बेहद उत्साहित है. राष्ट्रपति जो बाइडेन प्रशासन ने बकायदा इसकी घोषणा की है. वैसे इस दिशा में और रिसर्च की जरूरत है. लेकिन, माना जा रहा है कि अमेरिका परमाणु फ्यूजन की तकनीक पर आगे बढ़ेगा और भविष्य में वह अपनी बड़ी ऊर्जा जरूरतों की पूर्ति इस फॉर्मूले से करेगा, जिससे कि जीवाश्म ईंधन पर उसकी निर्भरता और कम किया जा सके.


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एडवोकेट अरविन्द जैन

संपादक, बुंदेलखंड समाचार अधिमान्य पत्रकार मध्यप्रदेश शासन

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