अजब गजब

मम्मी-पापा नहीं रहे, भाई हुआ नशेड़ी, कूड़ा बीनकर खाती थीं खाना, आज यूरोपियन रेस्त्रां की हेड शेफ

आकांक्षा दीक्षित/दिल्ली. आपने शहरों में बच्चों के संघर्ष की कई प्रेरक कहानियां सुनी होंगी. लेकिन आज हम आपको दिल्ली की जिस लड़की के बारे में बताने जा रहे हैं, उसका संघर्ष पीड़ा से भरा है. मात्र 4 साल की उम्र में इस लड़की के माता-पिता की मौत हो गई, सदमे में आकर बड़ी बहन ने जान दे दी. घर में एक के बाद एक तीन लोगों की मौत से बड़ा भाई डिप्रेशन में चला गया और नशेड़ी हो गया. लेकिन इस लड़की ने हिम्मत नहीं हारी. दिल्ली की सड़कों पर कूड़ा बीनने लगी, ताकि पेट भरने को खाना मिल सके. अपनी मेहनत और हिम्मत के दम पर पढ़ाई की. होटल मैनेजमेंट कोर्स में दाखिला लिया, लेकिन वह भी छूट गया. मगर लगन और हौसला ऐसा कि आज दिल्ली के एक जाने-माने यूरोपियन रेस्त्रां की हेड शेफ है.

ये कहानी हैं लीलिमा ख़ान की, जो डियर डोना रेस्टोरेंड की हेड शेफ हैं. लीलिमा ने लोकल18 से बातचीत में अपनी जिंदगी की कहानी साझा की. उन्होंने बताया कि उनका जन्म गरीब परिवार में हुआ था. महज 4 साल की थीं, जब उन्होंने अपने मम्मी-पापा को खो दिया. इसके बाद वह अपने बड़े भाई-बहनों के साथ रहने लगीं. लेकिन उनके ऊपर दुखों का पहाड़ तब टूटा, जब बड़ी बहन ने किसी कारण जान दे दी. घर में एक के बाद एक तीन सदस्यों की मौत का बुरा असर बच्चों पर पड़ा. सबसे ज्यादा असर लीलिमा से उम्र में बड़े शादीशुदा भाई के ऊपर पड़ा, जो डिप्रेशन में चला गया और नशेड़ी हो गया.

बड़ा भाई जेल, छोटे को ले गई चाची
लोकल18 से बातचीत के दौरान लीलिमा ने बताया कि उनके बड़े भाई ने नशे की हालत में घर बेच दिया. इसके बाद उसे चोरी के आरोप में जेल भेज दिया गया, तो लीलिमा और उनका 2 साल का छोटा भाई फिर अकेले पड़ गए. कुछ दिनों बाद लीलिमा की चाची छोटे भाई को अपने साथ ले गई, जिसके बाद लीलिमा बिल्कुल अकेली हो गईं. उन्होंने बताया कि घर में किसी के नहीं रहने के बाद झुग्गी में रहने वाली एक महिला ने लीलिमा को आश्रय दिया. वहां कई और बच्चे भी रहते थे.

सुबह 4 बजे से कूड़ा बीनने का काम
लीलिमा ने बताया कि झुग्गी में रहने वाली महिला सभी बच्चों को सुबह 4 बजे जगा देती थीं और फ्रेंड्स कॉलोनी की सड़कों से कूड़ा उठाने भेजती थीं. इसके बदले हमें खाना दिया जाता था. बीच में भूख लगने की वजह से कई बार उन्हें डस्टबिन से खाना निकालकर खाना पड़ता था. लीलिमा ने बताया कि शिक्षा और स्कूल से तो मानो उनका कोई लेना-देना ही नहीं था. हालात ऐसे थे कि उन्हें न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी की रेड लाइट पर भीख भी मांगना पड़ता था.

चेतना से उदयन केयर…और बदल गई जिंदगी
लीलिमा के जीवन में इन परेशानियों के बाद आखिरकार सकारात्मक मोड़. सड़क पर रहने वाले बच्चों के अधिकारों के लिए काम करने वाली गैरसरकारी संस्था चेतना के कार्यकर्ता प्रमोद से लीलिमा की मुलाकात हुई. यहां से वह चित्तरंजन पार्क में एक अनाथालय, उदयन केयर में चली गईं जहां पढ़ने-लिखने की सुविधा थी. सब कुछ ठीक होने लगा कि अचानक लीलिमा की एक मौसी उन्हें अनाथ आश्रम से लेने आ गईं. वह लीलिमा को अपने साथ घर ले गई, लेकिन वहां का वातावरण बच्ची को रास न आया. उल्टे मौसी के यहां काम न करने पर मारा-पीटा भी जाता था. लिहाजा एक बार फिर लीलिमा वहां से निकल गईं और अब वह कश्मीरी गेट स्थित किलकारी रेनबो होम पहुंच गईं. यहां वह करीब 18 साल रहीं और सारी पढ़ाई-लिखाई यहीं रहते पूरी की.

इस तरह बनी लीलिमा हेड शेफ
लीलिमा ने लोकल18 को बताया कि किलकारी रेनबो होम में रहते हुए ही उन्हें Creative Services Support Group (CSSG) के बारे में पता चला था. यह ग्रुप 18 साल से बड़े बच्चों को आत्मनिर्भर बनने में मदद करता है. इस ग्रुप की मदद से उन्हें लोधी रोड के एक होटल में जॉब मिली. उसके बाद उन्होंने कई होटलों में जॉब की. लंबे समय तक कई होटलों व रेस्टोरेंट में काम करने के बाद डियर डोना यूरोपियन रेस्टोरेंट में हेड शेफ़ की जॉब मिल गई. लीलिमा बताती हैं कि उनकी पहली सैलरी मात्र 5000 रुपए थी. आज वह 65 हज़ार रुपए महीने कमा रही हैं.

Tags: Delhi, Local18, Womens Success Story


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एडवोकेट अरविन्द जैन

संपादक, बुंदेलखंड समाचार अधिमान्य पत्रकार मध्यप्रदेश शासन

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