What is the importance of Chhatris in Scindia royal family | जीवित जैसी होती है सिंधिया परिवार के पूर्वजों की सेवा: ग्वालियर में मूर्ति स्थापित कर मंदिर बनाते हैं; अब राजमाता माधवी राजे की छत्री बनेगी – Gwalior News

ग्वालियर में राजमाता माधवी राजे सिंधिया के निधन के बाद उनकी छत्री बनाई जाएगी। इसका निर्माण उसी छत्री परिसर में किया जाएगा, जहां अंतिम संस्कार किया गया था। यहीं सिंधिया राजपरिवार के जयाजीराव से लेकर माधवराज सिंधिया तक की छत्रियां हैं।
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खास बात है कि राजपरिवार के पूर्वजों की सेवा जीवित की तरह की जाती है। रोजाना बकायदा स्नान कराया जाता है। वस्त्र बदले जाते हैं। पूजन होता है। भोग भी लगाया जाता है।
ग्वालियर में सिंधिया परिवार की कुल 7 छत्रियां हैं। छत्री परिसर में 4 और जनकगंज स्थित छत्री मंडी के पास 3 छत्रियां हैं।
दैनिक भास्कर ने छत्रियों के बारे में जानने के लिए सिंधिया राज परिवार के करीबी जयंत जपे से बात की।
पहले जानते हैं छत्री क्या है
राजस्थान के सफेद मकराना मार्बल से बनाई गई मंदिर जैसी संरचना को छत्री कहते हैं। इसे मंदिर की तरह आकार दिया जाता है। इसमें विधि-विधान से पूर्वज की मूर्ति भी स्थापित की जाती है। यह एक तरह से उनका समाधि स्थल होता है। ठीक सामने एक मंदिर भी बनाया जाता है। छत्री में शिवलिंग भी बनाया जाता है।
इसलिए बनाई जाती हैं
कटोराताल सिंधिया राजमहल छत्री परिसर के इंचार्ज व सिंधिया घराने के करीबी जयंत जपे ने बताया, ‘सिंधिया परिवार पूर्वजों की याद में मंदिर जैसी संरचना की स्थापना करवाते हैं। यहां पूर्वजों की शिला पटि्टका लगी होती है। इसमें उनके बारे में जानकारी दर्ज होती है। यहां हर दिन रख-रखाव और सेवा वैसे की जाती है, जैसी जीवित अवस्था में होती है। हर दिन स्नान कराया जाता है। वस्त्र बदले जाते हैं। भोग लगाया जाता है।’
पूर्वज की स्थापना से पहले शिवलिंग की प्राण प्रतिष्ठा
छत्री निर्माण कार्य से पहले राज पुरोहित पूजन करवाते हैं। जिस पूर्वज की प्रतिमा स्थापित करवानी होती है, उससे पहले शिवलिंग की स्थापना होती है। जहां रोजाना पूजा-अर्चना के साथ ही त्योहार पर विशेष आयोजन भी होते हैं। पूजा-पाठ से संबंधित सभी कार्य मूलत: महाराष्ट्र के रहने वाले राज पुरोहित चंद्रकांत शंकर शेंडे संपन्न कराते हैं।
जयंत जपे बताते हैं कि परिसर में छत्री के सामने मंदिर का निर्माण किया गया है। जैसे, महारानी गजराराजा सिंधिया की छत्री के सामने भगवान सत्यनारायण, महाराजा जीवाजी राव सिंधिया की छत्री के सामने भगवान कृष्ण और राजमाता विजयाराजे सिंधिया की छत्री के सामने राम-जानकी का मंदिर बना है, जबकि माधवराव सिंधिया की छत्री के सामने भगवान गणेश का मंदिर का निर्माण जारी है।
छत्री मंडी परिसर में तीन, शिवपुरी में दो छत्रियां
जनकगंज स्थित छत्री मंडी में सिंधिया राजघराने के तीन सदस्यों की छत्रियां हैं। इनमें जयाजीराव सिंधिया, जनकोजीराव सिंधिया और दौलतराव सिंधिया, जबकि राजघराने के दो सदस्यों की छत्रियां उनकी इच्छानुसार शिवपुरी जिले में बनाई गई हैं। इनमें ग्वालियर के स्टोन का प्रयोग किया गया। शिवपुरी में माधवराव सिंधिया प्रथम व महारानी सख्या राजे सिंधिया की छत्रियां बनी हैं।


परिसर में मां-बेटे की छत्री आमने-सामने
छत्री परिसर और शिवपुरी में मां-बेटे की छत्रियां आमने-सामने हैं। ग्वालियर में महारानी गजराराजा सिंधिया और उनके पुत्र जीवाजी राव सिंधिया की छत्री भी आमने-सामने हैं। कुछ दूर राजमाता विजयाराजे सिंधिया और उनके पुत्र माधवराव सिंधिया की छत्री है। इसी तरह, शिवपुरी में जीजा माता उर्फ सखिया राजे और उनके पुत्र माधवराव सिंधिया प्रथम की समाधि बनाई गई है।
कब बनी, किसकी समाधि
पहले छत्री परिसर में पहले बाग बगीचा था। छत्री परिसर के केयर टेकर जयंत जपे बताते हैं कि महारानी गजराराजा सिंधिया की इच्छा थी कि उनकी समाधि छत्री परिसर में ही बनाई जाए। इसके चलते उनके निधन के बाद वर्ष 1941 में उनकी समाधि यहां बनाई गई थी। जिस जगह राजमाता माधवी राजे सिंधिया का अंतिम संस्कार किया गया था, वहीं उनकी छत्री बनाई जाएगी। इसके बनने के बाद सिंधिया परिवार की यह पांचवीं और ग्वालियर में आठवीं छत्री होगी।

13 दिन जमीन पर सोता है राज परिवार
सिंधिया परिवार में निधन के बाद अलग मान्यताएं नहीं हैं। आमतौर पर सामान्य परिवारों में अस्थि संचय के बाद शुद्धिकरण होकर प्रतिष्ठान खुल जाते हैं।
राजघराने में 11वें दिन अस्थि विसर्जन के साथ शुद्धिकरण होता है। 13 दिन तक परिवार सभी सदस्य सात्विक भोजन करते हैं। जमीन पर सोते हैं। नंगे पांव रहते हैं। सिंधिया परिवार के करीबी जयंत जपे ने बताया कि आमतौर पर देखने में आता है कि अंतिम संस्कार के दूसरे या तीसरे दिन उठावनी के साथ घर में शुद्धिकरण हो जाता है, लेकिन राजघराने में हिंदू संस्कृति के वह नियम अपनाए जाते हैं। 10 दिन बाद शुद्धिकरण होता है। मतलब, 11वें दिन जब अस्थियों का विसर्जन होता है। गंगाजल घर से छिड़काव कर घर शुद्ध किया जाता है।
नौवें दिन से 12वें दिन तक पूजा
जयंत जपे ने बताया कि अंतिम संस्कार के बाद तीन दिन तक लगातार लोग मिलने आते हैं। इसके बाद नौवां, दसवां, ग्यारहवां व 12वें दिन कुछ क्रियाएं और रस्में होती हैं। वो संस्कार भी होंगे, लेकिन वह श्राद्ध की तरह होते हैं।

अस्थि कलश कंहेड़खेड़ महाराष्ट्र ले गए
राजमाता की अस्थि का कलश शनिवार को शिंदे परिवार के सदस्य कंहेड़खेड़ महाराष्ट्र के लिए लेकर गए हैं। यह वहां शिंदे परिवार का गांव है, जहां से वह निकले हैं। वहां कलश और राजमाता के चित्र को रखा जाएगा। वहां गांव के लोग और आसपास के क्षेत्र के लोग 13 दिन तक श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे।
बताया गया है कि राजमाता की अस्थियों के कलश उज्जैन, नेपाल व प्रयागराज (इलाहाबाद) ले जाए जाएंगे। हालांकि, फिलहाल स्पष्ट नहीं है। अन्य जगह शिंदे परिवार के सदस्य ही अस्थि कलश लेकर जाएंगे।
13वें दिन लगेगा भोग, होगा पिंडदान
जयंत जपे ने बताया कि निधन के 13वें दिन त्रयोदशी का कार्यक्रम होगा, जिसमें पिंडदान विधि-विधान से कराया जाएगा। गंगाजल से पूजा के बाद राजमाता को भोग लगाया जाएगा। साथ ही, वह संस्कार व परंपरा निभाई जाएंगी, जो हिंदू मराठी परिवार में विधि विधान से की जाती है।
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बताया जाता है कि माधवराव सिंधिया से शादी के बाद महारानी के रूप में माधवी राजे सिंधिया जब पहली बार ग्वालियर पहुंचीं, तो यहां उनका भव्य स्वागत हुआ था। तब दिल्ली से स्पेशल ट्रेन से वर-वधु ग्वालियर आए थे। उस वक्त लोगों ने रेलवे स्टेशन से लेकर जयविलास पैलेस तक पूरे रास्ते में गुलाब के फूलों की पंखुड़ियां बिछाकर नई महारानी का स्वागत किया था। पूरी खबर पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें…
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