मध्यप्रदेश

Kadhu Ki Kheti | MP Chhindwara Pumpkin Farmer Balram Success Story | कद्दू की खेती से एक लाख रुपए महीने का मुनाफा: छिंदवाड़ा से दो स्टेट में करते हैं सप्लाई; अब नया बीज भी खुद तैयार कर लेते हैं – Chhindwara News

दैनिक भास्कर के स्मार्ट किसान सीरीज में इस बार आपको ऐसे किसान से मिलवाते हैं, जो आधुनिक तरीके से कद्दू की खेती कर रहे हैं। इससे लाखों की कमाई के साथ ही चार से पांच लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं।

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छिंदवाड़ा के चिन्हियाकला गांव के रहने वाले बलराम उसरेठे (54) 8वीं तक पढ़े हैं। उनके पास करीब 8 एकड़ जमीन है। तीन एकड़ में कद्दू और 5 एकड़ में परंपरागत खेती कर रहे हैं। इनके कद्दू छिंदवाड़ा, नागपुर और रायपुर के बाजारों में ज्यादा डिमांड रहता है। किसान बताते हैं कि देसी कद्दू की खेती कम समय और कम लागत में ज्यादा मुनाफा देती है।

किसान उसरेठे तीन एकड़ में देसी कद्दू की खेती कर रहे हैं।

आइए जानते हैं किसान बलराम उसरेठे से ही कद्दू की खेती शुरू करने की कहानी

दो साल पहले तक मैं भी सभी किसानों की तरह परंपरागत खेती करता था, जिसमें लागत ज्यादा और इनकम बहुत कम होती थी। उस समय मेरे पास 8 एकड़ जमीन होने बावजूद घर चलाना मुश्किल हो रहा था। फिर मैंने खेती में ही कुछ नया करने का सोचा। कुछ किसानों से सलाह ली तो उन्होंने कद्दू की खेती शुरू करने को कहा। उन्होंने कहा कि इसकी खेती कर सिर्फ 3 महीने के अंतराल में अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। बढ़िया मात्रा में प्रोटीन होने की वजह से कद्दू की सब्जी से लेकर बीज तक की बाजार में अक्सर डिमांड बनी रहती है।

उसके बाद मैं ट्रायल के तौर पर तीन एकड़ में कद्दू की खेती शुरू की। इसके लिए छिंदवाड़ा के ही बड़े गांव से देसी कद्दू के बीज मंगवाया। उस समय मुझे करीब एक एकड़ में 15 हजार रुपए खर्च हुए थे। कुल करीब 45 हजार रुपए लागत आई थी। तीन एकड़ में करीब 450 क्विटंल का पैदावार हुई, जिसमें मुझे करीब 3 लाख रुपए का मुनाफा हुआ था। इस साल भी तीन एकड़ में कद्दू की फसल लगाई है। जिसका प्रोडक्शन भी शुरू हो गया, जो 15 जून तक चलेगा। कद्दू खेत से ही छिंदवाड़ा, नागपुर, रायपुर के मार्केट में चला जाता है। इस खेती में 90 से 100 दिन में 3 लाख रुपए का मुनाफा हो जाता है। कद्दू की खेती के बाद इसी खेती में दूसरी सब्जियां भी लगा देते हैं।

ऐसे करते हैं खेत की तैयारी

कद्दू की खेती के लिए दोमट और बलुई दोमट मिट्टी अच्छी मानी गई है। इसकी बोवनी से पहले खेतों में 2-3 बार कल्टीवेटर से जुताई करने के बाद एक बार रोटरवेटर भी चलवा लें, ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाए। उसके बाद पानी डाल दीजिए। बोवनी से पहले खेत में सड़ी हुई गोबर की खाद, नीम की खली और अरंडी की खली अच्छी तरह से मिला देनी चाहिए। उसके बाद जुताई कर के दोबारा पाटा लगा दें।

खेत में 5 बाय 5 फीट के आयताकार स्थान को मिट्टी से चारों ओर बांध दें। इसके बाद बीच में देसी कद्दू के बीज रोप दें। कद्दू की खेती में सिंचाई ज्यादा होती है। हर दो-तीन दिन में पानी देना पड़ता है। साथ ही समय-समय पर कीटनाशक और रासायनिक खाद भी देना जरूरी होता है।

ऐसे तैयार करते हैं कद्दू के बीज

खेत से पीले-पीले कद्दू को तोड़कर रख लेते हैं। अक्टूबर- नवंबर के आसपास जब कद्दू के अंदर बीज पक जाता है तो निकाल लेते हैं और कद्दू मार्केट में बेच देते हैं। फिर बीज को धूप में सुखा देते हैं। बलराम उसरेठे बताते हैं कि उनके खेत में एक कद्दू करीब 15 से 35 किलो के बीच होता है। सफेद, पीले और भूरे कद्दू भी होते हैं, लेकिन काले कद्दू की डिमांड ज्यादा रहती है।

कद्दू की फसल साल में दो बार लगाई जाती है, जिसमें पहली फसल फरवरी से मार्च और दूसरी खेती जून से अगस्त के बीच होती है। मौसम के अनुसार ही इसकी अलग-अलग किस्मों को लगाया जाता है।

इन बातों का रखें ध्यान

कद्दू की खेती के लिए जलनिकासी वाली जगह का चुनाव करना चाहिए। इसकी बेहतर खेती के लिए जमीन का PH 5 से 7 के बीच होना चाहिए। 25 से 30 डिग्री सेल्सियस के तापमान में इसके पौधे अच्छे से विकास करते हैं। सर्दियों में इसकी फसल को पाला लगने की संभावनाएं रहती है।

छिंदवाड़ा के कद्दू का कोई ब्रांड नेम नहीं

एक प्राइवेट कंपनी के सेल्स ऑफिसर सतीश सिंह राजपूत बताते हैं कि छिंदवाड़ा जिले के कद्दू का कोई ब्रांड नेम नहीं है। बाजार के बीजों से आमतौर सिर्फ 8 से 10 किलो का कद्दू निकलता है, लेकिन छिंदवाड़ा का देसी बीज का कद्दू का 35 किलो तक निकलता है। अब यहां के किसान इसका बीज बनाकर बेचने लगे हैं। ढोलक के आकार का होने के कारण कुछ किसान इसे ढोलक कद्दू भी कहते हैं।

कद्दू की किस्में

काशी हरित: हरे रंग और चपटे गोला आकार वाली यह प्रजाति बुवाई के 50 से 60 दिनों के बीच में पक कर तैयार हो जाती है। इस किस्म का एक ही फसल करीब 3.5 किलोग्राम का होता है और काशी हरित के एक पौधे से चार से पांच फल मिल जाते हैं।

पूसा विश्वास: इसके फलों का रंग हरा होता है, जिन पर सफेद रंग के धब्बे होते हैं। पूसा विश्वास के एक ही फल का वजन करीब 5 किलोग्राम होता है, जो बुवाई के 120 दिनों के अंदर तुड़ाई के लिये तैयार हो जाता है।

नरेंद्र आभूषण: इस किस्म के कद्दू का मध्यम गोल आकार होता है, जिसपर गहरे हरे रंग के दाग होते हैं। इस किस्म के फल पकने के बाद नारंगी रंग के हो जाते हैं।

काशी उज्ज्वल: इसके हर पौधे पर 4 से 5 फल लगते हैं और हर एक फल का वजन 10 से 15 किलोग्राम होता है। यह किस्म 180 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है।

काशी धवन: यह किस्म पहाड़ी इलाकों में मिलती है। जो बुवाई के मात्र 90 दिनों में तैयार हो जाती है।

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5 भाइयों ने परंपरागत खेती छोड़ शुरू की आधुनिक फार्मिंग; अब इनकम 80 से 90 लाख रुपए सालाना

‘साल 2006 से पहले हम भी परंपरागत खेती करते थे, जिसमें लागत ज्यादा और मुनाफा कम होता था। फिर पांच भाइयों ने सोचा कि क्यों न आधुनिक तरीके से खेती की जाए। फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। आज 300 बीघा में सीताफल, अमरूद, खीरा-ककड़ी, गुलाब के फूल की खेती के साथ ही नर्सरी में अलग-अलग फलों के पौधे तैयार कर रहे हैं। इससे 80 से 90 लाख रुपए सालाना इनकम हो रही है।’

यह कहना है किसान विनोद पाटीदार का। विनोद पांच भाइयों में सबसे छोटे हैं और सभी खेती कर रहे हैं। दैनिक भास्कर की स्मार्ट किसान सीरीज में आज रतलाम जिले के पिपलौदा तहसील के कुशलगढ़ गांव में रहने इन्हीं पाच भाइयों की कहानी पढ़िए। पढ़िए पूरी खबर


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एडवोकेट अरविन्द जैन

संपादक, बुंदेलखंड समाचार अधिमान्य पत्रकार मध्यप्रदेश शासन

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