The story of three young engineers contesting elections | चुनाव लड़ रहे तीन युवा इंजीनियरों की कहानी: ग्वालियर प्रत्याशी अर्चना, मुरैना के सूरज ने छोड़ा लाखों का पैकेज; देवाशीष पहले भी लड़े चुनाव

ग्वालियर-चंबल…से संतोष सिंह13 मिनट पहले
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ग्वालियर-चंबल में इस बार भाजपा-कांग्रेस से अधिक तीन युवा इंजीनियर प्रत्याशियों की चर्चा है। तीनों की उम्र 32 वर्ष के आसपास है। तीनों ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है। इनमें से दो लाखों रुपए के पैकेज पर जॉब छोड़कर चुनाव लड़ने आए हैं। जबकि, एक ने कानून की पढ़ाई के बाद वकालत या जज बनने की बजाय राजनीति की राह चुनी है।
भिंड से बसपा प्रत्याशी आशीष जरारिया के पास बीई और लॉ की डिग्री है। वहीं ग्वालियर से निर्दलीय चुनाव लड़ रहीं अर्चना राजपूत ने इंजीनियरिंग के बाद लाखों रुपए के पैकेज का दिल्ली में जॉब करने के बाद राजनीति में उतरी हैं। वहीं मुरैना से निर्दलीय चुनाव में उतरे सूरज कुशवाह भी इंजीनियरिंग कर एक प्राइवेट कंपनी में लाखों की सैलरी पर जॉब में थे।
दैनिक भास्कर ने तीनों युवा प्रत्याशियों से बात की। इंजीनियरिंग की महंगी पढ़ाई करने के बाद लाखों का पैकेज छोड़कर राजनीति में आने की वजह जानी। पढ़िए तीनों प्रत्याशियों की कहानी…

भिंड : जरारिया की वजह से मुकाबला त्रिकोणीय
भिंड लोकसभा में इस बार 7 प्रत्याशी मैदान में हैं। भाजपा की संध्या राय और कांग्रेस के फूल सिंह बरैया के बीच मुख्य मुकाबले को बसपा के देवाशीष ने त्रिकोणीय बना दिया है। जरारिया इस लोकसभा से पिछली बार कांग्रेस प्रत्याशी रह चुके हैं। तब उन्हें संध्या राय के हाथों हार का सामना करना पड़ा था।
टिकट कटने और संगठन में भी तवज्जो न मिलने से आहत जरारिया ने इस्तीफा देकर बसपा का दामन थाम लिया। अब वे बसपा प्रत्याशी के तौर पर मैदान में हैं। भिंड सुरक्षित सीट है। जरारिया के उतरने से सीधा नुकसान कांग्रेस को हो रहा है।

देवाशीष जरारिया बीएसपी कार्यकर्ताओं के साथ गांव-गांव घूम कर प्रचार कर रहे हैं।
यूपी के रास्ते एमपी की राजनीति में हुई एंट्री
भिंड शहर में हर्ष बिहार त्रिमूर्तिनगर मेला ग्राउंउ के पीछे रहने वाले देवाशीष जरारिया के पिता मुरार गर्ल्स कॉलेज में प्रोफेसर है। देवाशीष उनके इकलौते बेटे हैं। छोटी बहन की शादी हो चुकी है।इंजीनियरिंग और लॉ के बाद नौकरी की बजाय राजनीति में आने की वजह पूछने पर जरारिया कहते हैं-”मैं अनुसूचित जाति वर्ग से आता हूं। पिता प्रोफेसर हैं। इस कारण मेरी पढ़ाई भी शुरू से अच्छी हुई।
इंजीनियरिंग के बाद लॉ की पढ़ाई करने दिल्ली यूनिवर्सिटी चला गया। मैं सोशल मीडिया पर सक्रिय था। इस वर्ग के लोगों के हक की आवाज अक्सर उठाता था। 2017 में यूपी विधानसभा का चुनाव था। तब बसपा पहली बार सोशल मीडिया पर सक्रिय दिखी। बसपा का ट्विटर( अब X) पहली बार ट्रेंड करते हुए दिखा।

बसपा सुप्रीमो मायावती के साथ देवाशीष जरारिया।
2018 में बसपा से दूरी बढ़ने पर कांग्रेस जॉइन की
जरारिया कहते हैं कि बसपा के सोशल मीडिया कैंपेन की वजह से मुझे पहचान मिली। इसके बाद पार्टी ने मुझे प्रवक्ता बनाया। लेकिन, कुछ बातों को लेकर बीएसपी से 2018 में मेरी दूरी बढ़ी और मैं पार्टी से अलग हो गया।
वे कहते हैं कि तब तक मेरी पहचान बन चुकी थी। युवाओं में मेरी फेन-फॉलोइंग बढ़ गई थी। उसी दौरान एमपी कांग्रेस ने मुझसे संपर्क साधा और 2019 में भिंड से पहली बार लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी बनाया। तब मेरी उम्र 27 साल थी। ये मेरा पहला चुनाव था। मेरे परिवार में कभी कोई राजनीति में नहीं रहा। ना ही कभी किसी ने कोई चुनाव लड़ा था। इसके बावजूद मैंने भाजपा को टक्कर दी।

कांग्रेस राष्ट्रीय अध्यक्ष खड़गे को जरारिया ने 17 अप्रैल को इस्तीफा भेज दिया था।
जरारिया बोले- कांग्रेस वंचित वर्ग को तवज्जो नहीं देती
जरारिया ने कहा- लोकसभा चुनाव हारने के बाद पूरे पांच साल क्षेत्र में सक्रिय रहा। कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता कह चुके थे कि तुम्हें लोकसभा ही लड़ना है। यही कारण था कि मैं विधानसभा में कहीं से टिकट नहीं मांगा। फिर अचानक मेरा टिकट काट दिया गया।
तब मैंने बसपा सुप्रीमो बहन मायावती जी से बात की। उन्होंने कहा कि कांग्रेस और भाजपा में दलित-वंचितों की कोई जगह नहीं। असली घर बसपा है। पार्टी में आ जाओ, मैं चुनाव लड़ाऊंगी।

ग्वालियर: नामी कंपनी का पैकेज छोड़ चुनाव लड़ रही अर्चना सिंह राजपूत
ग्वालियर लोकसभा सीट से 19 प्रत्याशी मैदान में हैं। मुख्य मुकाबला भाजपा के भारत सिंह कुशवाह और कांग्रेस के प्रवीण पाठक के बीच है। पहली बार भाजपा ने किसी ग्रामीण क्षेत्र से जुड़े चेहरे को प्रत्याशी बनाया है। जबकि कांग्रेस ने इसके उलट शहर से प्रत्याशी दिया है।
इन दोनों के अलावा यहां से अर्चना सिंह राजपूत भी चुनाव लड़ रही हैं। वे सभी प्रत्याशियों में सबसे कम उम्र की हैं। अर्चना के उतरने से सबसे अधिक नुकसान भाजपा को हो रहा है। राजपूत समाज के साथ-साथ दूसरे समाज के लोगों का समर्थन अर्चना को मिल रहा है।

अर्चना बोलीं- बचपन से ही समाज सेवा करना अच्छा लगता है
शिवपुरी के करैरा के नरही गांव की रहने वाली अर्चना सिंह के माता-पिता का निधन हो चुका है। 6 बहनों में अर्चना चौथे नंबर की है। सबसे छोटा भाई भी इंजीनियरिंग के बाद एक मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब कर रहा है। अर्चना भी एक नामी कंपनी में इंजीनियर थी। लाखों का सालाना पैकेज था।
नौकरी छोड़कर राजनीति में आने की वजह पर कहती हैं-”मेरे पिता परमाल सिंह राठौर किसान थे। पूरे करैरा में लोग आज भी उनका सम्मान करते हैं। मेरे पापा ने मुझे एक बेटे की तरह पाला था। मुझसे बड़ी बहनों की शादी हो चुकी है। लेकिन, मुझे बचपन से ही समाज सेवा करना अच्छा लगता है। मैं दिल्ली में नौकरी के साथ-साथ बीमार लोगों की मदद भी करती थीं।

अर्चना प्रचार के दौरान महिलाओं से ज्यादा मुलाकात कर रही हैं।
मोदी की टीम ने संपर्क किया, ग्वालियर से टिकट का भरोसा दिया
अर्चना कहती है कि मैं सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट से भी जुड़ी थी। मेरे सामाजिक सरोकार और सक्रियता को देखकर ही शायद मोदी जी की टीम ने मार्च 2024 में मेरे से संपर्क किया। कई राउंड के इंटरव्यू हुए। फिर मुझे आश्वस्त किया गया कि आपको ग्वालियर लोकसभा सीट से लड़ाया जाएगा।
पार्टी को यहां किसी यंग चेहरे की तलाश थी। महिला होने की वजह से भी मुझे वरीयता मिलने का आश्वासन दिया गया था। उस टीम के कहे अनुसार ही मैं भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा, हितानंद, महेंद्र सिंह सोलंकी, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, बीएल संतोष, राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से भी मिली। पर मुझे टिकट नहीं मिला।
पार्टी ने यहां से भारत सिंह कुशवाह को प्रत्याशी बना दिया। इसके बाद मैंने निर्णय लिया कि मैं निर्दलीय चुनाव में उतरूंगी। इससे पहले 2015 में मैं सरपंच का चुनाव लड़ चुकी हूं। हालांकि वो चुनाव मैं हार गई थी। अब मुझे बघेल समाज समेत हर वर्ग का समर्थन मिल रहा है।

आईटी कंपनी की नौकरी छोड़ मुरैना से चुनाव में उतरे सूरज
मुरैना लोकसभा सीट से 15 प्रत्याशी मैदान में हैं। मुख्य मुकाबला कांग्रेस के नीटू उर्फ सत्यपाल सिकरवार और भाजपा के शिवमंगल सिंह के बीच है। बसपा के रमेश गर्ग मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने में जुटे हैं। पर चर्चा में युवा निर्दलीय प्रत्याशी सूरज कुशवाह हैं। उनके साथ युवाओं की एक टीम सक्रिय है।
जोरगढ़ी अंगहोरा टेटरा के रहने वाले सूरज कुशवाह की शादी हो चुकी है। दिल्ली स्थित आईटी कंपनी की नौकरी छोड़कर राजनीति में उतरे हैं। ये उनका पहला चुनाव है। परिवार में कभी किसी ने कोई चुनाव नहीं लड़ा है।

सूरज ने कहा -युवाओं को अनदेखा किया जा रहा है
लाखों का पैकेज छोड़कर राजनीति में आने के सवाल पर सूरज कहते हैं- “हर चुनाव में युवाओं को अनदेखा किया जाता है। कोई नेता रोजगार का साधन नहीं दे पाता है। इन नेताओं को नॉलेज ही नहीं है कि काम कैसे कराने चाहिए।
वे कहते हैं कि मेरे मुरैना लोकसभा को ही ले लीजिए, यहां कूनो अभयारण्य है। इसे टूरिज्म स्पॉट बनाया जा सकता है। इस क्षेत्र में शिक्षा और सड़क जैसी बुनियादी सुविधाएं तक नहीं हैं। एमपी-एमएलए हर बार चुने जा रहे हैं, लेकिन लोगों के लिए कुछ नहीं कर रहे हैं।

मुरैना लोकसभा सीट से नामांकन दाखिल करते सूरज।
नुक्कड़ सभा और सोशल मीडिया से प्रचार
इस बार भाजपा-कांग्रेस व बसपा तीनों पार्टियों ने ओबीसी या एसटी वर्ग के लोग को टिकट नहीं दिया। यही वजह हैं कि मैं निर्दलीय मैदान में उतरा हूं। नुक्कड़ सभाओं के माध्यम से प्रचार कर रहा हूं। घर-घर जा रहा हूं। सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों तक अपनी बात पहुंचा रहा हूं।

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