पिता के पैसे चुरा बड़ा आदमी बनने पहुंचे मुंबई, 18 रुपये में सालों धोई प्लेट, आज 5 देशों में फैला 500 करोड़ का बिजनेस

सागर रत्ना करीब 300 करोड़ रुपये सालाना कमा रही है. उत्तर भारत में 60 जगहों पर सागर रत्ना के रेस्तरां खुले हुए हैं. कनाडा, सिंगापुर और बैंकॉक में भी सागर रत्ना के रेस्तरां हैं.
नई दिल्ली. कहते हैं मेहनत और किस्मत एक दूसरे के पूरक हैं. किस्मत भी तभी काम करती है, जब आपकी मेहनत सही दिशा में हो. गुरबत (गरीबी) और शोहरत (प्रसिद्धी) की यह कहानी भी मेहनत और किस्मत के इसी फसलफे को सच कर दिखाती है. एक ऐसा आदमी जिसने जिंदगी के कई साल लोगों के जूठे बर्तन धोने में बिता दिए. उन्होंने अपनी मेहनत से वह मुकाम हासिल किया, जहां आज भारत ही नहीं कई देशों के लोगों को अपनी प्लेट में खाना खिला रहे हैं. प्लेटें धोने से शुरू हुआ जिंदगी का सफर अब आलीशान रेस्तरां में बदल गया है. उनके रेस्तरां की यह चेन आज करीब 300 करोड़ रुपये सालाना कमा रही है.
हम बात कर रहे हैं आपके शहर में चल रहे सागर रत्ना (Sagar-Ratna) रेस्तरां के मालिक जयराम बानन की. आज यह रेस्तरां चेन किसी पहचान का मोहताज नहीं है. दिल्ली में ही इसके 30 रेस्तरां चल रहे हैं, जबकि पूरे उत्तर भारत में 60 जगहों पर सागर रत्ना के रेस्तरां खुले हुए हैं. इतना ही नहीं कनाडा, सिंगापुर और बैंकॉक में भी आपको सागर रत्ना के रेस्तरां मिल जाएंगे. इस तरह दुनियाभर में इस चेन के करीब 100 रेस्तरां चल रहे हैं और सालाना करीब 300 करोड़ की कमाई होती है. जयराम ने सागर रत्ना की सफलता को भुनाने के लिए साल 2001 में स्वागत रेस्तरां की फ्रेंचाइजी भी शुरू की. उनके सफल रेस्तरां की वजह से उन्हें ‘दोसा किंग ऑफ नॉर्थ’ का खिताब भी मिला.
पढ़ाई में फेल हुए तो पैसे चुराकर भाग गए
कर्नाटक के उडुपी में पैदा हुए जयराम बानन परिवार के साथ मैंगलोर में रहते थे. पढ़ाई-लिखाई कुछ खास थी नहीं तो कक्षा में फेल हो गए. पिता ने सख्ती की तो 13 साल की उम्र में बॉलीवुड स्टाइल में निकल पड़े घर से. बाप की जेब से कुछ रुपये चुराए और जिंदगी में बड़ा बनने साल 1967 में मुंबई पहुंच गए. लेकिन, किस्मत बिना मेहनत के काम नहीं आती. जयराम को भी चार पैसा कमाने के लिए एक कैफेटेरिया में प्लेट धोनी पड़ी. महीने की 18 रुपये पगार मिलती थी, लेकिन मेहनत का सिलसिला अब शुरू हो चुका था.
मेहनत ने दिलाया मौका
जयराम की मेहनत ने घिसा तो किस्मत चमक उठी. उनका काम देखकर कुछ ही साल में कैफेटेरिया का मैनेजर बना दिया गया और पगार हो गई 200 रुपये. इसके बाद जयराम मुंबई छोड़ साल 1974 में दिल्ली पहुंच गए और बतौर कैंटीन मैनेजर काम करने लगे. समय बीता और जेब में कुछ पैसे आए तो जयराम ने साल 1986 में सागर नाम से पहला रेस्तरां खोला. उनके इस रेस्तरां की पहले दिन की कमाई महज 408 रुपये थी.
शुरू हो गया सफलता का सफर
जयराम की मेहनत को अब किस्मत का साथ मिल चुका था और यहीं से शुरू हुआ सफलता का सफर. उनके रेस्तरां का जायका धीरे-धीरे लोगों की जुबान पर चढ़ने लगा. उत्तर भारत में दक्षिणी व्यंजनों के स्वाद को परोसकर उन्होंने दोनों छोर मिला दिए थे. ग्राहकों की संख्या बढ़ने लगी तो दिल्ली के लोधी मार्केट में पहली शाखा शुरू की. वे अपने रेस्तरां में मार्केट के अन्य रेट के मुकाबले 20 फीसदी ज्यादा चार्ज करते थे, बावजूद इसके ग्राहकों का सिलसिला बढ़ता ही गया. बाद में रेस्तरां चेन का नाम बदलकर सागर के साथ रत्ना भी जोड़ दिया.
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FIRST PUBLISHED : April 29, 2024, 06:30 IST
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