IIT से निकलकर भी 3 बार हुआ फेल, 75 रईसों ने किया हाथ मिलाने से इनकार, फिर पलटी बाजी… हो गए ठाठ

Success Story : तेलंगाना में पैदा हुए पवन गुंटुपल्ली शुरू से ही बहुत होशियार थे. इतने होशियार कि उन्होंने बचपन में कंप्यूटर प्रोग्रामिंग ट्रेडिंग सीख ली थी. जब वे बड़े हुए तो देश की मशहूर आईआईटी खड़गपुर में उनको सीट मिल गई. पढ़ाई पूरी करने के बाद वे काम करने लगे. पेमेंट्स सिस्टम आईएमपीएस (IMPS) तभी आया ही था. पवन गुंटुपल्ली ने पेमेंट्स में काम करना शुरू किया. वे पहले 9 महीनों में ही फेल हो गए. इसके बाद उन्होंने सैमसंग के लिए सॉफ्टवेयर डेवलप करने का काम किया. यह सब करके हुए भी उनके अंदर एक कसक थी. कसक इस बात की कि अपना कुछ काम करना चाहिए. इसी को ध्यान में रखते हुए पवन गुंटुपल्ली ने अपने एक दोस्त अरविंद सान्का के साथ मिलकर एक ‘द कैरियर’ (theKarrier) की शुरुआत की. वे मिनी ट्रक से इंटरसिटी लॉजिस्टिक्स सेवाएं देते थे. लेकिन यह काम भी ज्यादा नहीं चला और वे फिर फेल हो गए.
ट्रक चलाने के लिए एक तो भारी निवेश की जरूरत थी. सीधे ग्राहक तक पहुंचने में मार्जिन ज्यादा था. पवन को यहीं से एक आइडिया मिला कि क्यों न ये काम बाइक के जरिए किया जाए. यही सोचकर पवन गुंटुपल्ली ने अपने दो दोस्तों के साथ (एक आईआईटी से, दूसरा PESU कॉलेज से) मिलकर रैपिडो (Rapido) की शुरुआत की. 2014 में शुरू हुई रैपिडो अब 6700 करोड़ रुपये की वैल्यूएशन वाली कंपनी है.
ओला-उबर के सामने कैसे बना बलवान?
जब रैपिडो की शुरुआत की गई तो बाजार में ओला और उबर का बोलबाला था. लोग टैक्सी का मतलब कार को ही समझते थे. दूसरी तरफ, बाइक टैक्सी के बारे में लोग कम जानते थे और इसके लिए कोई नियम भी तय नहीं किए गए थे. पवन गुंटुपल्ली ने बैंगलोर से रैपिडो की शुरुआत की. उन्होंने इसके लिए बेस फेयर 15 रुपये रखा और उसके बाद हर एक किलोमीटर के लिए 3 रुपये का शुल्क रखा. लेकिन इतनाभर कर देने से सफलता नहीं मिली.
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एक बड़ा स्पीड ब्रेकर उनका इंतजार कर रहा था. 2014 में जैसे ही रैपिडो सड़क पर दौड़ने लगी, उसके एक महीने के भीतर ही उबर और ओला ने भी अपनी बाइक सर्विस भी लॉन्च कर दी. इसी वजह से 75 निवेशकों ने रैपिडो में पैसा डालने से इनकार कर दिया. वे यह मानने को कतई तैयार नहीं थे कि रैपिडो को फर्स्ट मूवर (first-mover) का लाभ मिला है. एक-एक करके तीन साल बीत गए, मगर पवन गुंटुपल्ली को एक भी निवेशक नहीं मिला. पवन गुंटुपल्ली को अपने आइडिया में भरोसा था और वे तब तक प्रयासरत रहे, जब तक कि उन्हें फल नहीं मिला.
हीरो ने दी स्पीड तो चल पड़ी गाड़ी
2016 में रैपिडो को पहला ऐसा व्यक्ति मिला, जिसने भरोसा किया. और वह नाम कोई और नहीं, बल्कि हीरो मोटोकॉर्प के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर पवन मुंजाल थे. उनके बाद एंडवांटएज (AdvantEdge) और कुछ अन्य का भी साथ मिला. अब रैपिडो ने बैंगलोर, दिल्ली और गुड़गांव में 400 बाइक्स उतार दीं. जनवरी 2016 तक कंपनी के पास 5000 यूजर थे, जबकि दिसंबर 2016 आते-आते यह संख्या बढ़कर 1,50,000 तक पहुंच गई.
पवन ने अपने ड्राइवरों को ‘कैप्टन’ नाम दिया और उनके अपने ही वाहनों का इस्तेमाल करने दिया. ड्राइवरों को अपने 80 फीसदी कमीशन को तुरंत निकालने का विकल्प दिया गया. इसके साथ ही राइड मॉनिटर करने वाला सॉफ्टवेयर और इम्पलॉयमेंट कॉन्ट्रैक्ट भी दिया. 10 राज्यों में जब बाइक टैक्सी से जुड़े नियम आए तो रैपिडो की ग्रोथ और बढ़ गई. कंपनी के पास 50,000 कैप्टन और 7 लाख यूजर हो गए.

ऋषिकेश एसआर. अरविंद सान्का, और पवन गुंटुपल्ली. (तस्वीर – फॉर्च्यून इंडिया)
फिर आते गए एक के बाद एक निवेशक
जनवरी 2019 तक, रैपिडो प्रतिदिन 70,000 ट्रिप करने वाली कंपनी बन गई. एवरेज 50 रुपये की थी. इसी ग्रोथ को देखते हुए कंपनी को इंटीग्रेटेड कैपिटल ग्रोथ और नेक्सस वेंचर्स से 150 करोड़ रुपये का निवेश भी मिल गया. बाद में रैपिडो का नेटवर्क 12 राज्यों में पहुंच गया तो तो वेस्ट ब्रिज कैपिटल (West Bridge Capital) ने 391 करोड़ रुपये का निवेश किया. अक्टूबर 2020 में रैपिडो ने ऑटो राइड भी लॉन्च कर दी. खास बात यह थी कि यह मीटर के हिसाब से फेयर लेते हैं. लॉन्च करने के केवल 5 महीनों के अंदर ही, इसने 10 लाख राइड का आंकड़ा छू लिया. इसके बाद जल्दी ही रैपिडो के साथ 15 लाख कैप्टन और डेढ़ करोड़ यूजर जुड़ गए. इस जबरदस्त आंकड़े को देखते हुए जापानी मोटर कंपनी यामाहा ने 384 करोड़ रुपये का निवेश कर दिया.
आज रैपिडो 100 से ज्यादा शहरों में उपलब्ध है. इसकी ऐप को 50 मिलियन अथवा 5 करोड़ लोग डाउनलोड कर चुके हैं. पिछले साल ही कंपनी ने स्विगी और कुछ अन्य कंपनियों से 1370 करोड़ रुपये प्राप्त किए. फिलहाल रैपिडो 6700 करोड़ रुपये वैल्यूएशन वाली कंपनी बन चुकी है.
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FIRST PUBLISHED : April 19, 2024, 10:22 IST
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