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…तो इस ग्रह पर बसेंगे इंसान? मिला पानी का विशाल भंडार, भर जाएंगे 60 ओलंपिक ग्राउंड, वैज्ञानिकों बोले धरती जैसा…

Water Source Found on Mars: दूसरे प्लैनेट पर इंसानों के बसाने के कायवाद में, वैज्ञानिकों को एक बड़ी सफलता मिली है. काफी लंबें समय से इस मंगल पर पानी और इंसानों के लायक वातावरण की चल रही है. इसी क्रम में यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ईसीए) के अंतरिक्ष यान ने लाल ग्रह के भूमध्य रेखा के पास विशाल थारिस ज्वालामुखियों पर जमे हुए पानी (Water Frost) का पता लगाया है, जबकि यह क्षेत्र काफी गर्म माना जाता है. यह पर पानी का जमना मंगल ग्रह के वायुमंडल के बारे में हमारी पूर्व धारणाओं को बदलती है. वैज्ञानिकों का मानना है कि यहां पर पहाड़ों की चोटियां आमतौर पर मैदानों की तुलना में अधिक ठंडी नहीं होती हैं, लेकिन नम हवा संघनित होकर बर्फ में बदल सकती है, जैसा कि पृथ्वी पर होता है.

इस पाले की खोज ईसीए की ईएसए ने पहली बार की है. ईसीए के एक्सोमार्स ट्रेस गैस ऑर्बिटर (टीजीओ) ने विशाल ओलंपस मॉन्स ज्वालामुखी के ऊपर देखा था. यह माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई से लगभग तीन गुना ऊंचा है और सौर मंडल में सबसे ऊंचा पहाड़ है. टीजीओ को जैसे ही ओलंपस पर बर्फ (Water Frost) की जानकारी हुई, उसने एक के बाद एक मंगल की कई अन्य इलाकों की तस्वीरें लेनी शुरू कर दी, जो कि सार्थक रहा. यहां पर उसे बर्फ (Water Frost) का पता चला है.

इस खोज में जुड़े ब्राउन यूनिवर्सिटी के रिसर्चर एडोमास वैलेंटिनास ने बर्न यूनिवर्सिटी में अपने पीएचडी के दौरान प्रारंभिक इसकी खोज की थी. उन्होंने कहा, ‘हमें लगा कि मंगल के भूमध्य रेखा के आसपास फ्रॉस्ट (पानी का जमना) बनना असंभव है, क्योंकि यहा पर काफी तेज धूप और पतला वायुमंडल है, जिससे पहाड़ों पर तापमान काफी उच्च बना रहता है.

ज्वालामुखी के कोल्डेरा में भरा है फ्रॉस्ट.

लगभग एक मिलीमीटर का सौवां हिस्सा या मानव बाल की चौड़ाई जितना पतले होने के बावजूद, ये पानी के जमे हुए रूप यहां के ज्वालामुखियों के शिखर के कैल्डेरा के विशाल भाग को कवर करते हैं. इतना पानी मंगल के ठंडे मौसम के दौरान मैदान से लगभग 150,000 टन पानी जमकर बर्फ बनते हैं. यहां पर जो पानी मिले हैं वे धरती के 60 ओलंपिक के मैदान के आकार वाले स्विमिंग पूल के बराबर है.

बिलकुल घरती जैसा, यहां पर फ्रॉस्ट (जमा बर्फ) सूर्योदय के कुछ घंटों तक रहता है और फिर दिन में वाष्प बनकर उड़ जाताहै. रिसर्चर्स का मानना है कि ये प्रक्रिया तभी संभव है, जब ज्वालामुखी के कैल्डेरा में मानव के अनुकूल सूक्ष्म जलवायु बनाने वाली “असाधारण प्रक्रिया” हो रही हों. रिसर्चर ने माना है कि हवाएं ढलानों पर ऊपर की ओर जाती हैं, अपेक्षाकृत नम हवा लाती हैं जो संघनित होकर पाले के रूप में जम जाती है. मंगल पर बादल बनते तो देखा गया है, लेकिन यह प्रक्रिया कैल्डेरा के ठंडे इलके का संकेत देता है, जो कि बिलकुल हमारे धरती के जैसा है.

Tags: Science news, Space, Space Exploration


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एडवोकेट अरविन्द जैन

संपादक, बुंदेलखंड समाचार अधिमान्य पत्रकार मध्यप्रदेश शासन

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