मध्यप्रदेश

एसपीए भोपाल के स्टूडेंट्स ने 14 गांवों के लिए तैयार किया क्लाइमेट रिजीलियंस प्लान | SPA Bhopal students prepare climate resilience plan for 14 villages

भोपालएक घंटा पहले

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इन दिनों अप्रैल, मई की बारिश के रूप में क्लाइमेट चेंज का उदाहरण देख रहे हैं। हमें जरूरत है कि नेचुरल रिसोर्सेज को बचाएं। इसी का ख्याल रखते हुए स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर के 14 स्टूडेंट्स ने हाल ही मध्य प्रदेश के 2 जिलों अलीराजपुर और छतरपुर में 14 गांवों के क्लाइमेट रिजीलियंस प्लान पर काम किया। इसमेें न सिर्फ स्टूडेंट्स ने नेचुरल रिसोर्सेज को बचाने का आइडिया दिया, बल्कि माइग्रेशन रोकने, ग्राउंड लेवल रिचार्ज के लिए भी एक्शन प्लान दिए। बताया कि अलीराजपुर और छतरपुर कैसे सूखे और माइग्रेशन की समस्या से उबर सकते हैं।

एसपीए भोपाल की प्रोफेसर रमा पांडे ने बताया कि स्टूडियो प्रोजेक्ट के तौर पर हम हर बार स्टूडेंट्स को कुछ ग्राउंड स्टडी के लिए भेजते हैं। इस बार इसके तहत 14 गावों की स्टडी का प्लान बनाया, जो काफी हद तक नेचर में एक जैसे हैं। रिपोर्ट को यूनिसेफ के साथ साझा किया है। इसके जरिए अब यह स्टेट पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड, पंचायती राज, डिजास्टर मैनेजमेंट संस्थान, स्टेट नॉलेज सेंटर ऑन क्लाइमेट चेंज, एमपी स्टेट पॉलिसी एंड प्लानिंग के ऑफिशियल तक पहुंचाई गई है।

डूब एरिया से 60 घरों के डिस्प्लेस की प्लानिंग
रिसर्च पर काम करने वाली स्टूडेंट शैली अग्रवाल बताती हैं कि अलीराजपुर में हमने 14 दिनों तक काम किया। इसके बाद 4 महीनों में यह रिपोर्ट तैयार की। इसमें बताया कि अलीराजपुर की असल में मुख्य समस्या वहां के सेटलमेंट का दूर-दूर होना है। इसके कारण सरकारी योजना वहां फिक्स मॉडल में काम नहीं कर पाती। यहां करीब 60 घर हैं, जो डूब क्षेत्र एरिया में आते हैं। हमने ऐसे पॉकेट को आईडेंटिफाई किया है, जहां छोटे जलाशय बनाए जा सकते हैं। इनमें बारिश का पानी स्टोर किया जा सके। साथ ही, डूब क्षेत्र के गांव और इनकी जगहों पर लोकल स्पिसीज के पौधे लगाने का सुझाव दिया है। इससे वाटर ट्रैपिंग होगी और भूलजल स्टार भी बढ़ेगा।

सिल्ट ट्रैप, डेयरी फार्मिंग से मिलेगी मदद
वहीं, छतरपुर में सबसे बड़ी प्रॉब्लम यहां का सूखा है। जमीन ऐसी है यहां की जमीन ऐसी है कि वह पानी को धरती के भीतर घुसने नहीं देते। साथ ही ब्रदर ऐसा है कि खेतों में ऐसी फसलें ही उगाई जा सकते हैं, जिनमें पानी की जरूरत ज्यादा हो पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण बारिश का पानी जब तालाबों में इकट्ठा भी होता है, तो अपने साथ बहुत सारी मिट्टी बहा ले जाता है। इससे तालाबों की गहराई कम हो जाती है। धीरे-धीरे इनकी पानी की कैपेसिटी घट जाती है। इसके लिए हमने सिल्ट ट्रैप का इस्तेमाल करने, डेयरी फार्मिंग, बायोगैस प्लांट के ऑप्शन दिए हैं, ताकि तालाबों को गहरा करने के लिए बार बार मेहनत ना करनी पड़े, गर्मियों में होने वाला माइग्रेशन रुक सके और नई तरह के रोजगार से साधन उपलब्ध हों।


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एडवोकेट अरविन्द जैन

संपादक, बुंदेलखंड समाचार अधिमान्य पत्रकार मध्यप्रदेश शासन

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