देश/विदेश

Comment of Supreme Court on Maharashtra crisis said a difficult constitutional issue in terms of decision – महाराष्ट्र संकट पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्‍पणी, कहा

नई दिल्ली. उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि शिवसेना में मतभेद से उपजा महाराष्ट्र के राजनीतिक संकट से जुड़े मुद्दे फैसला करने के लिहाज से कठिन संवैधानिक मुद्दे हैं और इसके राजनीति पर ‘बहुत गंभीर’ असर पड़ेंगे. शिवसेना के एकनाथ शिंदे गुट की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे के बयान से असहमति जताते हुए प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि यह मुद्दा केवल अकादमिक कवायद नहीं है. पीठ ने कहा कि यह एक कठिन संवैधानिक मुद्दा है और दोनों ही स्थितियों में इसके राजनीति पर गंभीर असर पड़ेंगे.

शीर्ष अदालत ने कहा कि यदि आप नाबाम रेबिया (उच्चतम न्यायालय का वर्ष 2016 का फैसला) की स्थिति को लेते हैं, जैसा कि हमने महाराष्ट्र में देखा, तो यह एक दल से दूसरे दल में मानव संसाधन के मुक्त प्रवाह की अनुमति देता है. पीठ ने कहा कि दूसरी स्थिति यह है कि राजनीति दल का नेता भले ही अपना गुट छोड़ चुका हो, वह इससे जुड़ा रह सकता है. लेकिन यदि हम नाबाम रेबिया के खिलाफ जाते हैं, तो इसे स्वीकार करने का मतलब यह होगा कि राजनीतिक समानता सुनिश्चित करें भले ही नेता विधायकों के समूह के बीच अपना नेतृत्व खो चुका हो. पीठ ने कहा कि जो भी रास्ता आप स्वीकार करेंगे, सियासी फलक के दोनों ही सिरों के बहुत गंभीर प्रभाव पड़ेंगे और दोनों ही वांछनीय नहीं हैं.

उद्धव ठाकरे गुट और एकनाथ शिंदे गुट है आमने- सामने
वर्ष 2016 में पांच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने अरुणाच प्रदेश के नाबाम रेबिया मामले में फैसला दिया था कि विधानसभा अध्यक्ष विधायकों की अयोग्यता संबंधित याचिका पर उस स्थिति में कार्यवाही नहीं कर सकते जब उनको हटाने को लेकर एक पूर्व नोटिस सदन में लंबित हो. महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे गुट एकनाथ शिंदे गुट के विधायकों की अयोग्यता का अनुरोध कर रहा है जबकि शिंदे गुट की ओर से एक नोटिस सदन में पहले से लंबित था जिसमें महाराष्ट्र विधानसभा के उपध्यक्ष नरहरि सीताराम जिरवाल (ठाकरे के वफादार) को हटाने को लेकर है.

मामले को सात सदस्यीय बृहद पीठ को रेफर करने का विरोध
साल्वे ने कहा कि शीर्ष अदालत को नाबाम रेबिया फैसले पर पुनर्विचार करके अपना ‘मूल्यवान न्यायिक समय’ नहीं नष्ट करना चाहिए. शिंदे गुट की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता नीरज किशन कौल ने कहा कि पार्टी में आंतरिक असहमति लोकतंत्र का सार है और इसे बढ़ावा दिया जाना चाहिए. साल्वे और महाराष्ट्र के राज्यपाल की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी मामले को सात सदस्यीय बृहद पीठ को रेफर करने का विरोध किया.

Tags: Justice DY Chandrachud, Maharashtra, Supreme Court, सुप्रीम कोर्ट


Source link

एडवोकेट अरविन्द जैन

संपादक, बुंदेलखंड समाचार अधिमान्य पत्रकार मध्यप्रदेश शासन

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!