पीयूष मिश्रा की जिंदगी का ‘पहला चुंबन’

पीयूष मिश्रा जब मंच पर होते हैं, तो वहां उनके अलावा सिर्फ उनका आवेग दिखाई देता है. जिन लोगों ने भी उन्हें एकल करता देखा है, वे उनकी ऊर्जा से वाकिफ हैं. फिल्मों में भी उनकी दमदार एक्टिंग चाहे वो 5 मिनट की स्क्रीन शेयरिंग हो या फिर 50 मिनट की, अपने हर रोल में उन्होंने दर्शकों पर अपनी छाप छोड़ी है. अपने गीत, अपने संगीत, अपनी देह और अपनी कला में आकंठ एक संपूर्ण अभिनेता हैं पीयूष मिश्रा. फिल्में, गीत, संगीत, कविता और कहानियों से होते हुए, पीयूष ने साहित्य और कला के अधिकतर पहलुओं को पकड़ने और उसे अपने स्टाइल में ढालने की सफल कोशिश की है.
इसी साल राजकमल पेपरबैक्स से आया उनका आत्मकथात्मक उपन्यास ‘तुम्हारी औकात क्या है पीयूष मिश्रा’ जितनी बाहर की कहानी बताता है, उससे कहीं ज्यादा अंदर वाले पीयूष मिश्रा की कहानी बताता है. ग्वालियर, दिल्ली, एनसडी से होते हुए ये आत्मकथा मुंबई तक पहुंचती है और इन सब जगहों पर मिले पीयूष के अनुभव और साथी कलाकारों के किस्से. उपन्यास को ऐसी गोचर दृश्यावली में पिरोया गया है, जो कभी-कभी ही पढ़ने को मिलता है. इस उपन्यास को पढ़ते हुए हम दिल्ली थिएटर जगत, राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय और मुंबई की फिल्मी दुनिया के कई सुखद-दुखद पहलुओं को आखों के सामने जीवंत होते हुए देखते हैं.
पीयूष मिश्रा का ये उपन्यास एक अभिनेता के निर्माण की आंतरिक यात्रा के साथ-साथ एक संवेदनशील रचनात्मक मानस के भटकाव-विचलन-आशंकाओं को बारीकी से प्रस्तुत करता है. इस उपन्यास की सबसे बड़ी उपलब्धि इसका गद्य है. उपन्यास के बारे में पीयूष लिखते हैं, “आत्मकथा लिखने की औकात नहीं. न ही मिजाज़ है. और न ही मूड. इसे उपन्यास समझकर ही पढ़ें. किसी भी कथा या आत्मकथा को उपन्यास की शक्ल देने में ख़ासी दिक्कत आती है. कल्पना और यथार्थ का भयंकर टकराव होता है. कल्पना ज़बरदस्त उड़ान देने की ज़रूरत महसूस होती है. बाकी अपने पाठकों की सहूलियत के लिए बतला दूं कि इस उपन्यास का मुख्य किरदार… संताप त्रिवेदी उर्फ हैमलेट… मैं हूं.”
तो आइए पढ़ते हैं, संताप त्रिवेदी उर्फ हैमलेट… उर्फ पीयूष मिश्रा की ज़िंदगी के पहले चुंबन के बारे में, जिसे स्वयं पीयूष साहब ने लिखा है-
पुस्तक अंश : पहला चुंबन (पृष्ठ-62)
“ये रातें ये मौसम नदी का किनारा… ये चंचल हवा…” गाना खत्म हो गया.
“नाउ द फ़ी?” वो शरारत से बोलीं.
उसने सर झुका लिया.
उन्होंने धीरे से उसका चेहरा अपनी तरफ़ किया. और उनके होंठ उसके गाल से टकरा गए. हैमलेट को अच्छा लगा.
एक दिन दोनों बैठे हुए थे. स्कूल खत्म हो चुका था. छात्रों की भीड़ छंट चुकी थी. सेकंड बी में सन्नाटा था. उस दिन जिंजर अलग मूड में थीं.
“टुडे सिंग समथिंग डिफरेंट.”
“मीन्स?”
“समथिंग डिफ़रेंट… समथिंग सैड…”
“व्हाई सैड?” वो हंस पड़ा.
“जस्ट लाइक दैट. इच्छा हो रहा है.”
और वो गा पड़ा.
“ये नयन डरे डरे… ये जाम भरे भरे… जरा पीने दो… कल की किसको ख़बर… इक रात होके निडर… मुझे जीने दो… ये नयन डरे डरे…”
आईआईबी में ख़ामोशी थी. उसके गाने ने माहौल को और ख़ामोश कर दिया था. उन्होंने हाथ बढ़ाकर आंखें पोंछीं. फिर मुस्कराईं.
“यू सिंग रियली वैल.”
“आप इसका मतलब समझती हैं.?”
“नो. बट आई कैन फ़ील इट. इट इज सैड.”
दोनों चुपचाप थे.
“लाइफ़ इज स्ट्रेंज. टुडे आई एम हियर. टुमारो आई एम गॉन.”
“व्हेयर डू यू लिव इन केरला?”
“इज्ज़ इफ़ यू नो द प्लेस.” वो उसकी तरफ़ देख के हंसीं.
“आई एम जस्ट आस्किंग.”
“मारान्गाट्टुपिल्ली कोट्टायम डिस्ट्रिक्ट.”
“स्ट्रेंज नेम.”
“स्ट्रेंज फ़ॉर यू.”
दोनों फिर ख़ामोश थे. फिर वो एकटक सामने देखते हुए बोला- “मिस आई वांट टू चेंज माई नेम.”
“व्हाट इज रांग इन दिस नेम?”
“इट रिमाइंड्स मी ऑफ़ माई पास्ट.”
“व्हाट विल बी द न्यू नेम?”
“संताप”
“मीन्स”
“सौरो… अनहैप्पी… डिस्टर्ड.”
“व्हाई सच ए डिप्रैसिंग नेम?”
और अचानक हैमलेट की आंखों में आंसू आ गए.
“प्रियांश…” जिंजर गम्भीर हो गईं. उन्होंने हैमलेट के हाथ में हाथ रखा.
हैमलेट ने अपनी आंखें पोंछीं.
“व्हाई लाइफ़ इज सो स्ट्रेंज?”
उन्होंने प्रियांश की ठोड़ी घुमाई अपनी तरफ़ .
“यू नो वन थिंग? यू शुड हैव बीन बॉर्न एटलीस्ट टेन ईयर्स एगो.
आई वुड हैव बीन वैरी हैप्पी.” वो उसे देख रही थीं. वो उन्हें देख रहा था. और धीमे से उनके होंठ बढ़े और जाके हैमलेट के होंठों से जुड़ गए.
ये हैमलेट के जीवन का पहला चुम्बन था.
ग्वालियर छोटा सा शहर था. कॉन्वेंट उससे भी छोटा. बातें फैलने लगी थीं.
“प्रियांश कहां मिलेगा?”
“स्कूल से पहले 10ए में. और स्कूल के बाद सेकंड बी में.” और एक हंसी दौड़ पड़ती.
घर पर पिताजी बोले-“तुम स्कूल से बहुत लेट आने लगे हो?”
“बास्केट बॉल खेलते हैं.” उसने सर झुका के कहा.
“बास्केट बॉल ही खेलते रहोगे या पढ़ाई भी करोगे? इस साल बोर्ड है.”
अगले दिन सिस्टर रैपरेटा ने उसे अपने चैम्बर में बुलाया था.
“हाउ यूअर स्टडीज़ आर गोइंग ऑन?”
“फ़ाइन सिस्टर.”
“इन सेकंड बी?”
हैमलेट का गला सूख गया.
“व्हाट डू यू हैव टू डू विद ए जूनियर ग्रेड टीचर? सिटिंग डे एंड नाइट विद हर?”
प्रियांश ने सर झुका लिया.
“कॉल युअर पैरेंट्स टुमारो.”
अगले दिन पिताजी आए. वो सिस्टर के चैम्बर में थे. हैमलेट बाहर. फिर घर में उसकी पेशी हुई.
“ये जिंजर मारग्रेट कौन है?”
“जूनियर स्टाफ़ की टीचर हैं.” उसने सूखते गले से कहा.
“तुम उसके साथ इतना क्यों बैठते हो?” बातें पूरे घर के सामने हो रही थीं.
“और सुना, तुम उसके साथ आपत्तिजनक हालत में भी देखे गए?”
जिद्दा ने सिर पीट लिया.
“हे भगवान! ये दिन भी दिखाना था.”
“तुम स्कूल से सीधे घर आओगे. और तुम्हारे एग्जाम्स होने तक ये गाना- बजाना और ये पेंटिंग-वेंटिंग बिलकुल बन्द.”
अगले दिन से उसने जिंजर से मिलना बिलकुल छोड़ दिया.
वो रास्ते में पड़तीं. वो कन्नी काटके निकल जाता. वो कभी बात करने की कोशिश करतीं. वो ‘एक्सक्यूज़ मी’ करके कट लेता. एक बार वो लाइब्रेरी में कोई किताब देख रहा था. मुड़ा तो पीछे जिंजर खड़ी थीं. चेहरे पर तकलीफ़ थी. वो पीछे हटा. उनके पास से निकलने की कोशिश की. उन्होंने उसका हाथ पकड़ लिया. “व्हॉट हैप्पंड?”
उसने झटके से अपना हाथ छुड़ा लिया और बाहर निकल लिया. दरवाजे पर पहुंचकर पीछे देखा. वो बुत बनी उसे देख रही थीं. आंखों में गीलापन था. कई बार गुजरते हुए उसे लगता कि कोई उसे देख रहा है. वो आसपास देखता. उसे दूर पेड़ के नीचे जिंजर बैठी दिखतीं. वो उसे देखती रहतीं. और जगह भी उनकी आंखें उसका पीछा करती रहतीं. उसके बाद जिंजर का रहन-सहन ही बदल गया. हमेशा चहकती रहने वाली मिस जिंजर एकदम ख़ामोश रहने लगीं. अब वो बहुत कम हंसती-मुस्करातीं. ये बदलाव सबने महसूस किया.
“आजकल लाल परी चुप रहने लगी है.” जाजू बोला.
“तुझसे झगड़ा हो गया क्या?”
संताप कुछ नहीं बोला.
एग्जाम के दिन क़रीब आ गए थे. सारा स्कूल पढ़ाई में लग गया था. बहुत कम लोग खेलते नजर आते. बोर्ड का सामना करने का सबका पहला मौक़ा था. जनवरी की ठंड कड़कड़ा के पड़ रही थी. मगर हैमलेट पढ़ाई से कोसों दूर था. उसे फ़िज़िक्स, कैमिस्ट्री टॉर्चर लगते. मैथ्स से उसे डर लगता. हिस्ट्री और हिन्दी उसे अच्छे लगते. मगर पढ़ने का मन नहीं करता. उसे नाटक के दिन और जिंजर के साथ बिताई शामें झकझोर देतीं. कई बार उसकी आंखें यूं ही गीली हो जातीं. एक दिन ऐसे ही अपने कमरे में पढ़ाई का ढोंग कर रहा था. अचानक जिद्दा धड़धड़ाती हुई कमरे में घुसीं. उसने फुर्ती से अपनी किताब ऊपर की. मगर फिर भी किताब के नीचे से उसका हाल ही बनाया हुआ स्केच जिद्दा की घाघ नजरों से बच ना सका.
उन्होंने उसकी चादर उघाड़ मारी. अन्दर सैकड़ों स्केच उजागर हो गए.
“ये पढ़ाई हो रही है? प्रभाषऽऽऽ” वो चिल्लाई.
और ‘तड़ाक्!’
ये उसके चेहरे पर पड़ने वाले अब तक के सारे चाटों में सबसे तगड़ा चांटा था.
“गेट आउट ऑफ़ दी हाउस! आउट.” पिताजी चीखे थे.
और अगली दोपहर में वो सेकंड बी के सामने खड़ा था. कॉपीज़ चेक करती जिंजर ने उसे सर उठाकर देखा. वो आगे बढ़ा और सीधे जिंजर की बांहों में समा गया. वो सिसक रहा था. जिंजर ने उसे कस लिया. और बाहर आहट हुई. दोनों ने सर उठाकर देखा. सामने मैरी खड़ी उन्हें घूर रही थीं.
और परिणाम सामने था.
टेंथ बोर्ड में हैमलेट की दो सब्जेक्ट्स में कम्पार्टमेंट थी, साथ ही कॉन्वेंट स्कूल से देश निकाला. ट्रांसफ़र सर्टिफ़िकेट. वजह… जूनियर स्कूल की जवान टीचर से प्रेम सम्बन्ध और स्कूल की बदनामी.
पिताजी स्तब्ध थे, मां हैरान, जिद्दा सुन्न और भोले चाचा ख़ामोश!
और हैमलेट अकेले में रो रहा था. क्योंकि आज जिंजर मारग्रेट का स्कूल में आखिरी दिन था. वो हमेशा के लिए स्कूल छोड़के जा रही थीं. अपने घर… केरला!
ग्वालियर स्टेशन पर केरला एक्सप्रेस ने सीटी दी थी. स्टेशन पर हलचल थी. मगर खिड़की में जिंजर थीं. और उनके सामने हैमलेट! उसका हाथ जिंजर के हाथ में था.
दोनों चुप थे. फिर वो बोलीं-
“से समथिंग…” उनकी आंखें गीली थीं.
“व्हॉट?”
“एनी थिंग! आई एम गोइंग फ़ार एवर.”
हैमलेट ने एक सांस ली.
“नथिंग टू से!”
फिर ख़ामोशी थी.
“विल यू रिमेम्बर मी?” उन्होंने छलछलाई आंखों से कहा.
“यस.” उसने ख़ामोशी से सर हिला दिया.
“विल यू कम टू केरला?” उन्होंने पूछा.
“नो, ” हैमलेट ख़ामोशी से बोला.
“व्हाई?”
“जस्ट लाइक दैट, ” हैमलेट ने ख़ामोश स्वर में कहा.
“यू नो? आई मीन इट. यू शुड हैव बीन बॉर्न टेन ईयर्स एगो!”
गाड़ी ने फिर सीटी दी. ट्रेन ने सरकना शुरू कर दिया.
“संताप…”
और हैमलेट ने महसूस किया कि उसको इस नाम से बुलाने वाली वो पहली शख्स थीं.
“आई विल नेवर बी ऐबल टू फ़ारगेट यू. यू आर माई फ़र्स्ट लव!”
उनकी रुलाई फूट पड़ी थी.
गाड़ी अब स्पीड पकड़ने लगी थी.
“प्लीज कम टू केरला. प्रॉमिस मी.” उन्होंने खिड़की से झांकने की कोशिश की.
“आई विल ट्राई.”
मगर अब केरला जाने से कुछ फ़ायदा नहीं था. अगले महीने उनकी शादी होने वाली थी. धनबाद. और गाड़ी स्पीड पकड़ चुकी थी.
जिंजर जा चुकी थीं.
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FIRST PUBLISHED : December 14, 2023, 19:00 IST
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