अजब गजब

पहला बिजनेस फेल, दूसरे को डेढ़ साल नहीं मिला कोई बड़ा ऑर्डर, आज डोमिनोज़, बर्गर किंग इनके कस्टमर

हाइलाइट्स

3 लाख रुपये महीना कमाने की शर्त पूरी करने पर विराज को पिता ने फैमिली बिजनेस में आने दिया.2008 में विराज के पिता राजीव बहल ने ‘फन फूड्स’ को जर्मनी की कंपनी को बेच दिया.इसके बाद विराज ने दो बिजनेस किए. पहला बिजनेस रेस्तरां का था, जो फेल हो गया.

Success Story: विराज बहल की प्रेरणादायक कहानी उन सभी के लिए एक मिसाल है, जो अपने दम पर कुछ बड़ा करने का सपना देखते हैं. विराज का सफर कठिनाईयों से भरा था, लेकिन उनके जुनून और मेहनत ने उनकी किस्मत को बदल दिया. बचपन से ही अपने पिता के फूड प्रोसेसिंग बिजनेस से प्रभावित होकर विराज ने इसी क्षेत्र में अपना करियर बनाने का सपना देखा. मगर उनके पिता ने इस काम के लिए ऐसी शर्त रखी, जो लगभग असंभव थी. इसी शर्त के साथ विराज का संघर्ष शुरू हुआ और आज वे करोड़ों रुपये की कंपनी के मालिक हैं. उनकी संघर्षगाथा शानदार और दिलचस्त है.

विराज बहल ने जब अपने फैमिली बिजनेस में शामिल होने की इच्छा जताई तो उनके पिता ने कहा कि वे तब तक उस बिजनेस का हिस्सा नहीं बन सकते, जब तक कि वे खुद से 3 लाख रुपये महीना कमाने नहीं लग जाते. 90 के दशक में 3 लाख रुपये महीना, बहुत बड़ा काम था. आज भी नौकरी करने वाले अधिकांश लोगों की सैलरी 1 लाख रुपये से कम है.

अपने पिता की चुनौती को पूरा करने के लिए विराज ने सिंगापुर की एक मर्चेंट नेवी कंपनी में काम शुरू किया. इस दौरान उन्होंने अपनी पढ़ाई भी जारी रखी. कड़ी मेहनत और अपने दृढ़ संकल्प के बल पर वे वर्ष 2002 तक 3 लाख रुपये प्रतिमाह की कमाई तक पहुंच गए. अब वे अपने पिता की शर्त को पूरा कर पाए और अपने फैमिली बिजनेस से जुड़ने के योग्य हो गए. अब उन्हें अपने फैमिली बिजनेस ‘फन फूड्स’ में एंट्री मिल गई. इस कंपनी में विराज ने पूरी लगन से काम किया और छह सालों के भीतर ‘फन फूड्स’ को एक सफल ब्रांड में तब्दील कर दिया.

फन फूड्स बिकी तो विराज की नई शुरुआत!
2008 में विराज के पिता राजीव बहल ने ‘फन फूड्स’ को जर्मनी की कंपनी डॉ. ओटकर (Dr Oetker) को बेचने का निर्णय लिया. विराज ने इस निर्णय को रोकने की पूरी कोशिश की, लेकिन उनके पिता ने परिवार के भविष्य को ध्यान में रखते हुए 110 करोड़ रुपये की डील को आगे बढ़ाया. यह विराज के लिए एक बड़ा झटका था, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. कंपनी की बिक्री से मिले हिस्से का उपयोग करते हुए उन्होंने 2009 में एक रेस्तरां व्यवसाय ‘पॉकेट फुल’ की शुरुआत की.

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चार साल की कड़ी मेहनत के बाद भी यह रेस्तरां व्यवसाय सफल नहीं हो पाया और 2013 में उन्हें ‘पॉकेट फुल’ के सभी छह आउटलेट्स बंद करने पड़े. इस असफलता से निराश होकर विराज ने अपने बचे हुए पैसे भी गंवा दिए. इस कठिन समय में उनकी पत्नी ने उनका साथ दिया और दोनों ने घर बेचकर फिर से शुरुआत करने का निर्णय लिया. इस बार विराज ने फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री में फिर से कदम रखा और राजस्थान के नीमराना में ‘वीबा’ कंपनी की स्थापना की.

वीबा के सामने चुनौतियां
विराज ने वीबा को एक अलग दृष्टिकोण के साथ शुरू किया. उन्होंने इसे एक पूरी तरह से पेशेवर कंपनी बनाने का निर्णय लिया, जहां पारिवारिक रिश्तों का कोई हस्तक्षेप नहीं होगा. इसके अलावा, उन्होंने अपने बिजनेस मॉडल को बी2बी रखा ताकि वह खुली प्रतिस्पर्धा से दूर रहे. हालांकि, शुरुआत में उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा. महीनों तक उन्हें ऑर्डर नहीं मिले और वे संघर्ष करते रहे.

लेकिन उनकी मेहनत और धैर्य रंग लाया. डीएसजी कंज्यूमर पार्टनर्स के दीपक शाहदादपुरी ने वीबा में निवेश किया, जिससे विराज को कुछ राहत मिली. धीरे-धीरे, वीबा ने फास्ट फूड चेन जैसे डोमिनोज़, केएफसी, और पिज्जा हट जैसे बड़े ग्राहकों को आकर्षित करना शुरू किया.

सफलता की राह पर वीबा
धीरे-धीरे वीबा ने भारतीय बाजार में अपनी पकड़ मजबूत कर ली और आज यह भारतीय सॉस और कंडिमेंट्स इंडस्ट्री में एक अग्रणी ब्रांड बन चुका है. कंपनी की 92% बिक्री रिटेल मार्केट से होती है, और इसका नेटवर्क 700 से अधिक शहरों और 1.5 लाख रिटेल आउटलेट्स में फैला हुआ है. वीबा के उत्पादों में कम फैट और शुगर वाले स्वस्थ विकल्पों का विशेष ध्यान रखा गया है, जिससे यह उपभोक्ताओं के बीच लोकप्रिय हो गया.

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वीबा के ग्रोथ के साथ ही अन्य निवेशकों ने भी इस कंपनी में रुचि दिखाई. सामा कैपिटल और वर्लिनवेस्ट जैसी कंपनियों ने वीबा में 40 करोड़ रुपये का निवेश किया, जिससे इसकी वैल्यू 400 करोड़ रुपये तक पहुंच गई. 2019 तक वीबा का राजस्व 290 करोड़ रुपये हो गया और इसमें 150 करोड़ रुपये का अतिरिक्त निवेश भी हासिल हुआ. कोविड-19 के कठिन समय में भी वीबा की विकास यात्रा रुकी नहीं, और यह 700 शहरों, 28 डिपो, और 1.5 लाख दुकानों तक फैल गया.

आज वीबा के 80 से अधिक उत्पाद
आज, वीबा के पास 14 श्रेणियों में 80 से अधिक उत्पाद हैं. कंपनी ने बाजार में विभिन्न प्रकार की सॉस और कंडिमेंट्स पेश किए हैं, जिनमें से प्रत्येक का उद्देश्य उपभोक्ताओं की बदलती पसंद को पूरा करना है. आज वीबा बर्गर किंग, डोमिनोज, नानडोज़, और PVR जैसी प्रमुख कंपनियों के साथ काम कर रही है.

विराज कहते हैं, “सॉस किसी भी फास्ट फूड का असली हीरो होता है, और हमारे प्रयासों का मुख्य उद्देश्य ग्राहकों को सबसे बेहतरीन उत्पाद उपलब्ध कराना है.” उनकी इस सोच और उनकी मेहनत ने वीबा को भारतीय सॉस उद्योग का एक प्रमुख ब्रांड बना दिया है.

विराज बहल की पत्नी और मां
विराज बहल की शादी शिवांगी बहल से हुई है. हालांकि उनके बारे में सार्वजनिक तौर पर बहुत ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है, लेकिन वे विराज को उनके बिजनेस में सहायता करने के लिए जानी जाती हैं. विराज ने एक बार खुद बताया था कि उन्होंने अपनी कंपनी का नाम वीबा अपनी मां के नाम पर रखा है, जो उनके जीवन और व्यवसाय में परिवार के महत्व को दर्शाता है.

विराज बहल की नेट वर्थ
वीबा के संस्थापक विराज बहल के पास कुल कितनी संपत्ति है, इस बात की पुष्ट जानकारी नहीं है. पिछले साल की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ‘उनकी कंपनी वित्त वर्ष 2023-24 के लिए लगभग 1,000 करोड़ रुपये का रेवेन्यू हासिल करने की तरफ बढ़ रही थी.’ वीबा में कुछ निवेशकों के अलावा बड़ी हिस्सेदारी विराज बहल के पास है. फिलहाल यह कंपनी लिस्टेड भी नहीं है.


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एडवोकेट अरविन्द जैन

संपादक, बुंदेलखंड समाचार अधिमान्य पत्रकार मध्यप्रदेश शासन

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