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Success Story : पिता की पंक्चर सुधारने की दुकान, बेटे आईबी और सेना में, पढ़िए संघर्ष से सफलता तक की कहानी

सारण. दुनिया में कुछ लोग ऐसे हैं जो किस्मत नहीं कर्म में भरोसा रखते हैं. और किस्मत भी उन्हीं का साथ देती है जो कर्म करते हैं. ऐसे ही हैं सारण के एक छोटे से गांव में रहने वाले एक शख्स. वो खुद साइकिल का पंक्चर सुधारते हैं लेकिन बच्चों को देश की श्रेष्ठ सरकारी नौकरी तक पहुंचाया. लेकिन अपना कर्म यानि साइकिल सुधारने का काम उन्होंने अभी तक जारी रखा है.

हम बात कर रहे हैं अजमेरगंज गांव के वार्ड नंबर 21 में रहने वाले मिट्ठू राय की. मिट्ठू राय साइकिल के पंक्चर सुधारते हैं. उनका जीवन इसी काम में निकल गया. दिनरात मेहनत कर पायी पायी जोड़ी. बच्चों को पढ़ाया लिखाया. मकसद यही था कि जो कमी उनके अपने जीवन में रह गयी वो बेटों के जीवन में न रहे. उनकी मेहनत और जिंदगी के प्रति सकारात्मक सोच का नतीजा है कि मिट्ठू राय का एक बेटा इंटेलिजेंस ब्यूरो में और एक सेना में है.

संघर्ष का सफर
इस कामयाबी के पीछे मिट्ठू राय के संघर्ष का सफर है. एक समय था. जब घर में खाने के लिए लाले पड़े थे. रहने के लिए घर नहीं था. बरसात में टपकते छप्पर के नीचे एक ही कमरे में गाय भैंस को रखना और उसी में रहना काफी मुश्किल भरा था. लेकिन अब सब ये बीते दिनों की बात हो गया है. मिट्ठू राय का एक बेटा विक्रम प्रसाद यादव इंटेलिजेंस ब्यूरो में और दूसरा पुत्र विकास प्रसाद यादव बिहार पुलिस की नौकरी से रिजाइन कर, आर्मी में है.

पिता आज भी सुधारते हैं पंक्चर
खास बात ये कि बेटों की इस कामयाबी के बाद भी मिट्ठू राय ने अपना पेशा नहीं छोड़ा. वो आज 74 साल की उम्र में भी रोज दुकान पर जाते हैं और साइकिल का पंक्चर ठीक करते हैं. आसपास के कुछ लोगों ने इनकी जमीन पर कब्जा करने की नीयत से मारपीट भी की. जिसमें एफईआर हुई. इससे मिट्ठू मिस्त्री परेशान जरूर हुए लेकिन अपने बच्चों को लक्ष्य तक पहुंचाने में पीछे नहीं हटे, इसका परिणाम काफी सुखद रहा.

बस इतना सा ख्वाब है
मिट्ठू राय ने बताया घर परिवार चलाना काफी मुश्किल था. एक वक्त के भोजन की व्यवस्था करने में पूरे दिन बैल की तरह मेहनत करना पड़ती थी. सबसे पहले दूसरे राज्य में जाकर फैक्ट्री में साबुन बनाने का काम शुरू किया. लेकिन वहां से मिलने वाले मजदूरी से घर नहीं चल रहा था. उसके बाद गांव आए, और साइकिल बनाने का काम शुरू किया. ये काम मैं आज 74 वर्ष की उम्र में आज भी कर रहा हूं. मिट्ठू राय ने बताया मैं गरीबी के कारण सातवीं तक ही पढ़ पाया. लेकिन अपने बच्चों को उच्च शिक्षा देना चाहता था. इसलिए जी तोड़ मेहनत की. सुबह 3:00 बजे उठकर दिनचर्या शुरू कर देते थे. घर के काम करने के बाद दुकान पर जाकर साइकिल के पंक्चर बनाते थे. उससे घर का खर्च चलता था और बच्चों को पढ़ाते थे. उसी पैसे से दो बच्चों को सरकारी नौकरी तक पहुंचाया. वो कहते हैं साइकिल बनाकर ही अपने दो बच्चों को अधिकारी बनाया हूं. तीसरा बच्चा दिल्ली में रहकर पढ़ाई कर रहा है. बस अब उसे और योग्य अफसर बनाना है.

Tags: Chhapra News, Job and career, Local18, Success Story


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एडवोकेट अरविन्द जैन

संपादक, बुंदेलखंड समाचार अधिमान्य पत्रकार मध्यप्रदेश शासन

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