अजब गजब

With determination and passion, girls left the male-dominated society behind and broke records, read the special story. – News18 हिंदी

राहुल मनोहर/ सीकर:- आज राष्ट्रीय बालिका दिवस है, जो नारी शक्ति को उनकी ताकत का एहसास कराता है. आज का दिन उस पुरुष प्रधान समाज को एहसास कराता है कि बेटियां भी बेटों से कम नहीं है, बेटियों को भी आज समाज में समानता की दृष्टि से देखा जाता है. बेटियां आज खुद की मेहनत से समाज में अपनी पहचान बना रही हैं. राष्ट्रीय बालिका दिवस पर आज हम आपको एक ऐसी तीन बालिकाओ की कहानी के बारे में बताएंगे, जिन्होंने जिद और जुनून से खुद सफलता पाई है. पुरुष प्रधान समाज से परे होकर उन्होंने खुद अपनी पहचान बनाई है.

(1) जिद और जुनून से गीता समोता बनी सबसे तेज पर्वतारोही
खुद अपने दम पर जिद और जुनून की कहानी लिखने वाली एक बालिका का नाम गीता समोता है. गीता ने अब तक विश्व की चार सबसे बड़ी चोटियों को फतह किया है. इसके अलावा गीता सबसे कम उम्र और सबसे तेज पर्वतारोही का खिताब भी अपने नाम कर चुकी हैं. यह कोई आसान बात नहीं है, क्योंकि सभी पुरुषों को टक्कर देते हुए इस लड़की ने बड़ी मेहनत से यह खिताब अपने नाम किया है.

वर्तमान में गीता समोता उदयपुर एयरपोर्ट पर सीआईएसफ सब इंस्पेक्टर पद पर तैनात हैं. हाल ही में गीता समोता को नागरिक उड्डयन मंत्रालय द्वारा प्रतिष्ठित ‘गिविंग विंग्स टू ड्रीम्स अवार्ड्स 2023’ से सम्मानित किया गया है. गीता का कहना है कि हर लड़की को अपनी जिद और जुनून से अपने जीवन की कहानी खुद लिखनी चाहिए.

(2) तानों को पीछे छोड़ रिकॉर्ड तोड़ती गई सरोज
दूसरी कहानी वॉलीबॉल खिलाड़ी सरोज पिपलोदा की है. महज सातवीं कक्षा में पढ़ने वाली सरोज पिपलोदा वॉलीबॉल खेलने के लिए मैदान में निकली, तो आस-पास के लोगों ने उनके पिता को खूब ताना दिया. गांव के लोगों का कहना था कि कौन बाप ऐसे अपनी बेटी को खेलने के लिए भेज सकता है. सीकर जिले के चोमू पुरोहितान की रहने वाली सरोज ने तानों को पीछे छोड़ रिकॉर्ड तोड़ने की कसम खाई. लोगों के तानों को टक्कर देकर अपनी मेहनत पर विश्वास करते हुए सरोज पिपलोदा ने अपने मुकाम को हासिल कर लिया है.

सरोज ने भी पुरुष प्रधान समाज के तानों को नजरअंदाज करते हुए अपनी मेहनत से वॉलीबॉल में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं. बेहतरीन खेल के कारण सरोज को राजस्थान पुलिस में नौकरी मिल गई है. अब आस-पड़ोस के ताने सरोज के कंधे पर लगे दो स्टार की जगमग की रोशनी से धूमिल हो गए हैं. सरोज का कहना है कि लड़कियां भी लड़कों से कम नहीं हैं. अगर वे मेहनत और अपनी ताकत को समझे, तो वह लड़कों से भी कई अधिक बेहतर कर सकती हैं.

(3) परिवार के सपोर्ट से जीतू बनी एसडीम
सीकर जिले के छोटे से गांव पचार में रहने वाली जीतू कुलहरी ने उपखंड अधिकारी बनकर अपने पिता का सपना पूरा किया है. जीतू कुलहरी की कहानी भी कोई आम लड़की की कहानी नहीं है. जीतू ने भी अपनी प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही पूरी की है. उनके पिता एक सामान्य कृषक हैं, लेकिन जीतू के पिता ने लड़का-लड़की में असमानता की बात को ठुकराते हुए उन्हें RAS परीक्षा की तैयारी के लिए बड़े शहर में भेजा.

जीतू को बड़े शहर में भेजने पर लोगों ने खूब बातें बनाई, लेकिन पिता का बेटी के प्रति अटूट विश्वास ने जीतू को ताकत दी. पिता के विश्वास और मेहनत के कारण जीतू ने RAS की मुख्य परीक्षा को पास कर उपखंड अधिकारी का कार्यभार संभाला. फिलहाल जीतू कुलहरी नागौर जिले में कार्यरत हैं. जीतू का कहना है कि मेहनत,विश्वास,जिद और जुनून से हर मुकाम को हासिल किया जा सकता है.

इन तीन लड़कियों की कहानी सुनकर कहा जा सकता है कि लड़कियां भी लड़कों से कम नहीं हैं. पुरुष प्रधान समाज को पीछे छोड़ते हुए इन लड़कियों के अलावा भी लाखों लड़कियों ने अपने सपने को हासिल किया है.

Tags: Local18, Rajasthan news, Sikar news, Success Story


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एडवोकेट अरविन्द जैन

संपादक, बुंदेलखंड समाचार अधिमान्य पत्रकार मध्यप्रदेश शासन

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