This is how Amit Shah fights elections | रूठों को मनाया, काम पर लगाया; MP में BJP के वॉर रूम से मैदान तक शाह स्टाइल का असर

भोपाल14 मिनट पहलेलेखक: राजेश शर्मा
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केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह रविवार को मध्यप्रदेश के दौरे पर हैं। पिछले 25 दिन में उनका यह तीसरा दौरा है। मप्र विधानसभा चुनाव की कमान शाह के हाथों में ही है। पिछले चुनाव में हारी हुई 39 सीटों पर उम्मीदवारों के ऐलान के साथ ही शाह की चुनाव मैनेजमेंट की ‘स्टाइल’ दिखने भी लगी है।
शाह का मैनेजमेंट तुरंत शुरू नहीं होता है। वे बहुत पहले से ही इस पर काम शुरू कर देते हैं। सबसे पहले रूठों को मनाते हैं और जब रूठे मान जाते हैं तो उन्हें साथ लेकर एक्शन शुरू करते हैं।
दैनिक भास्कर ने शाह के चुनावी मैनेजमेंट और उनकी वर्किंग को नजदीक से देखने वाले जानकारों से समझा कि आखिर मप्र में इस बार भाजपा के वार रूम से लेकर मैदानी स्तर पर कैसा दृश्य देखने को मिल सकता है…

1. नाराज नेताओं को मनाया : अमित शाह ने अप्रैल में मध्यप्रदेश में चुनाव की कमान संभाली थी। शाह को आभास था कि जमीनी नेता संगठन और सरकार से खासे नाराज चल रहे हैं। उन्होंने संकट के समय हमेशा पार्टी के साथ रहने वाले, वोटरों में प्रभाव रखने वाले, पार्टी के निष्ठावान और बड़े कार्यकर्ताओं की उपेक्षा को गंभीरता से लिया। रूठों को मनाने की जिम्मेदारी भाजपा के 14 वरिष्ठ नेताओं को सौंपी गई और लगभग इन नेताओं को मना लिया गया है।
2. कार्यकर्ताओं को पूरी तवज्जो : बड़े नेताओं को मनाने के बाद शाह ने जमीनी कार्यकर्ता पर ध्यान दिया। 30 जुलाई को इंदौर की सभा में राज्य के नेताओं के सामने कहा कि मंच पर बैठे नेताओं से सरकार नहीं बनती, सरकार नीचे बैठे कार्यकर्ता ही बनाते हैं। इसके बाद ग्वालियर में प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में प्रदेश से 1200 पदाधिकारियों को बुलाया। यह अमित शाह की चुनावी रणनीति का हिस्सा है। राजनीति पर नजर रखने वालों का कहना है कि सेना की तरह वे अनुशासन पर भी जोर देते हैं और जोश भी भरते हैं। उन्हें जीत के प्रति निष्ठावान भी बनाते हैं।
3. सांसदों को काम पर लगाया : 10 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मप्र और छत्तीसगढ़ के बीजेपी सांसदों की बैठक में कहा था कि विधानसभा चुनाव जिताना सांसदों की भी जिम्मेदारी है। दोनों राज्यों के चुनाव में सांसदों की भी जवाबदेही तय होगी। कोई भी सांसद यह सोचकर निश्चिन्त न बैठ जाए कि यह विधानसभा चुनाव है और इससे उनका क्या लेना-देना है? पार्टी सूत्रों का कहना है कि सांसदों को स्पष्ट संदेश और जिम्मेदारी देना शाह की चुनावी रणनीति का हिस्सा है।
4. दूसरे राज्यों के 230 विधायकों की ड्यूटी : अमित शाह की चुनावी रणनीति का ही हिस्सा है कि एमपी में उन्होंने केन्द्रीय मंत्रियों को मैदान में उतार दिया। इतना ही नहीं, असल हालात जानने के लिए दूसरे राज्यों के 230 विधायकों को मप्र की विधानसभा सीटों पर पड़ताल के लिए भेज दिया है। शनिवार को भोपाल में इन सभी विधायकों को ट्रेनिंग देकर विधानसभा क्षेत्रों में रवाना कर दिया गया। इससे मैदानी स्तर पर कार्यकर्ताओं व नेताओं के बीच हलचल रहेगी।

1. चुनाव संगठन के नाम पर लड़ा जाए
अमित शाह ने इंदौर में पार्टी की संभागीय बैठक में इसके संकेत दे दिए थे कि इस बार का विधानसभा चुनाव पार्टी के नाम पर लड़ा जाएगा। उन्होंने कहा था किसी भी विधायक या सांसद के नाम पर चुनाव नहीं लड़ें। विधानसभा चुनाव में किसी भी नेता को चेहरे के रूप में प्रोजेक्ट नहीं करें।
असर – बीजेपी विजय संकल्प यात्रा निकालने वाली है। ये यात्राएं अलग-अगल पांच क्षेत्रों से निकलेगी और केंद्र तय करेगा कि किस यात्रा की लीडरशिप कौन करेगा।
2- बूथ मैनेजमेंट पर फोकस
हर राज्य में शाह बूथ मैनेजमेंट पर ही सबसे ज्यादा वर्किंग करते हैं। मप्र में भी इस पर काफी पहले से काम शुरू हो गया है। वे एक बैठक में एमपी के नेताओं से कह चुके हैं कि अगर 2023 का विधानसभा चुनाव जीतना है तो सबसे ज्यादा फोकस बूथ पर करना होगा। हर कार्यकर्ता अपने-अपने बूथ को मजबूत करे। कार्यकर्ता सक्रियता के साथ लोगों के पास जाएं और पार्टी की विचारधारा से जोड़कर पार्टी को मजबूत करें।
असर – भोपाल मे 27 जून को बूथ प्रभारियों का सम्मेलन आयोजित किया गया था, जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संबोधित किया।
3- आदिवासी सीटों पर नजर
मध्यप्रदेश में आदिवासी वोट बैंक को साधने के लिए बीजेपी पूरी ताकत झोंक रही है, क्योंकि पिछले चुनाव में बीजेपी को बड़ा नुकसान हुआ था। अमित शाह ने भी इस फैक्ट पर गौर किया। इसके बाद से ही पार्टी का सबसे ज्यादा फोकस आदिवासी बाहुल्य सीटों पर है। गौरतलब है कि 2018 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को आदिवासी सीटों पर नुकसान हुआ था।
असर- मालवा-निमाड़ की आदिवासी सीटों की जिम्मेदारी राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को सौंपी गई है।
4- नाराज लोगों काे मनाया जाए
मप्र में पहली बार कई विधानसभा क्षेत्रा में पार्टी के नेताओं ने संगठन को लेकर नाराजगी जताई। वरिष्ठ नेता सत्यनारायण सत्तन, भंवर सिंह शेखावत जैसे नेताओं ने पार्टी के खिलाफ ही बयान दे दिए थे। शाह प्रदेश के दौरे पर आए तो उन्होंने स्पष्ट संदेश दिया कि नाराज नेताओं को फिर से भरोसे में लेकर उन्हें चुनावी काम में जोड़ें। दरअसल, कर्नाटक चुनाव में बीजेपी की हार के बाद कई नेताओं ने बगावती तेवर दिखाना शुरू कर दिए थे।
असर – बीजेपी ने घोषणा पत्र समिति और चुनाव प्रबंधन समिति में कई ऐसे नेताओं को जगह दी गई है, जो लंबे समय से हाशिए पर थे और नाराज चल रहे थे।

माइक्रो लेवल प्लानिंग का एक यह भी उदाहरण…
सीटों की ABCD कैटेगरी
भाजपा के एक पदाधिकारी ने बताया कि संगठन ने मप्र की विधानसभा सीटों को 4 कैटेगरी में बांटा है..
A- जिन पर पार्टी ज्यादातर जीत हासिल करती है।
B – जहां पार्टी मामूली अंतर से हारी है।
C – जहां पार्टी के पास मजबूत वोट शेयर है, लेकिन वह जीत नहीं रही है।
D – जिन सीटों पर पार्टी के जीतने की संभावना नहीं है और अन्य पार्टियों का गढ़ हैं।
भाजपा पदाधिकारी ने कहा कि यह कैटेगरी अमित शाह ने ही बनाई हैं। अब हम D से C, C से B और B से A तक ले जाने के लिए काम कर रहे हैं। इस फॉर्मूले को हैदराबाद नगर निगम के चुनाव में किया गया था, जिसका फायदा हुआ था।


एक स्टाइल यह भी…
विरोधियों को मानसिक रूप से कमजोर करना
शाह की चुनावी रणनीति इतनी आक्रामक होती है कि विपक्ष डर जाए या डर का अहसास करे। राजनीतिक विश्लेषक अरुण दीक्षित कहते हैं कि अमित शाह में विरोधियों को मानसिक रूप से कमजोर करने का हुनर है। उनकी बीजेपी का 39 हारी हुई सीटों पर उम्मीदवार उतारना भी अमित शाह की ही रणनीति का हिस्सा है। उधर कांग्रेस सिर्फ बयानबाजी करती रह गई कि कमजोर सीटों पर छह महीने पहले टिकिट घोषित कर दिए जाएंगे। कांग्रेस ऐसा तो अब तो कर नहीं पाई, बल्कि चुनाव के एन वक्त पर प्रदेश का प्रभारी बदल दिया। इससे पहले पता चलता है कि भाजपा की इस रणनीति का असर कांग्रेस पर पड़ा है।

ये तय करते हैं कि कैसे लड़ा जाएगा चुनाव
1. दीपक पटेल – बीजेपी नेताओं की सक्रियता पर नजर रखते हैं
एसोसिएशन ऑफ ब्रिलियंट माइंड्स (ABM) के संस्थापक हैं। 2018 में जब बीजेपी मध्यप्रदेश, राजस्थान व छत्तीसगढ़ में हार गई थी। तब एबीएम टीम ने इसके कारण जानने के लिए तीनों राज्यों में सर्वे किया और पाया कि कांग्रेस की किसान कर्ज माफी इसकी मुख्य वजह है। इसके बाद ही केन्द्र सरकार ने लोकसभा चुनाव से पहले किसान समृद्धि योजना शुरू की थी।
जिम्मेदारी – अब अलग-अलग जगहों पर बीजेपी की हालत क्या है, इस पर रिपोर्ट तैयार कर रहे हैं। मंत्रियों और विधायकों की कंडीशन क्या है, उस पर भी रिपोर्ट बना रहे हैं। इनकी टीम चुनाव के लिए रणनीति और मुद्दे बना रही है।
2. हिमांशु सिंह – चुनाव में मीडिया कैंपेन इन्हीं के कंधे पर
बीजेपी के लिए विधानसभा चुनाव में मीडिया कैंपेन के साथ अमित शाह की मौजूदा टीम के साथ काम कर रहे हैं। इन्हें लोकसभा चुनाव के हिसाब से मध्य प्रदेश भेजा गया है, लेकिन विधानसभा चुनाव में भी एक्टिव रहेंगे। ‘मोदी के मन में एमपी…’कैपेन हिमांशु ने ही तैयार किया है।
जिम्मेदारी – बीजेपी का नारा और चुनावी जिंगल तय करेंगे। इसके लिए लोक कलाकारों और गीतकारों से संपर्क किया जा रहा है। ये नुक्कड़ नाटकों के साथ छोटे-छोटे प्रभावी प्रोग्रामों पर काम करेंगे।

1. बीएल संतोष – राष्ट्रीय संगठन महासचिव
संगठन महासचिव बीएल संतोष, अमित शाह के भरोसेमंद सहयोगियों में से एक हैं। संघ के हार्डलाइनर प्रचारक की छवि वाले बीएल संतोष चुनावों के दौरान वॉररूम के कुशल संचालन के लिए जाने जाते हैं। परदे के पीछे रणनीति बनाने में माहिर हैं। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता के मुताबिक बीएल संतोष की पहचान राजनीतिक संकट पैदा करने वालों को सख्त संदेश देने या दिए गए टास्क को किसी भी तरह पूरा करने वाले नेता के रूप में होती है। वे हर बड़े टास्क को शीर्ष नेतृत्व की इच्छा के अनुसार अंजाम देते हैं। चाहे वह गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय रूपाणी से इस्तीफा दिलाने और भूपेंद्र पटेल के लिए रास्ता बनाने का मसला हो या त्रिपुरा में बिप्लब देब को मुख्यमंत्री के रूप में स्थापित करने का हो।
2. भूपेंद्र यादव – मध्यप्रदेश के चुनाव प्रभारी
भूपेंद्र यादव पर अमित शाह के कितने भरोसेमंद हैं, इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि जब शाह ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को खत्म करने वाले बिल का ड्राफ्ट तैयार करना शुरू किया था, तो यह जानकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, संगठन महासचिव बीएल संतोष के अलावा महासचिव भूपेंद्र यादव को ही थी। पार्टी नेताओं के बीच यह स्पष्ट है कि शाह जो भी योजना बनाते हैं भूपेंद्र यादव उस पर वैसे ही अमल करते हैं।
पार्टी सूत्रों का कहना है कि शाह जुलाई 2014 में राष्ट्रीय अध्यक्ष बने थे तो उन्होंने यादव को प्रमोट कर सचिव से महासचिव बनाया था। इसके बाद से यादव उन महत्वपूर्ण राज्यों में चुनाव की जिम्मेदारी निभा रहे हैं, जहां शाह काे लगता है कि विशेष रूप से ध्यान देने की जरूरत है। यादव ने 2014 में झारखंड, 2015 में बिहार, 2017 में गुजरात के राज्य प्रभारी की भूमिका निभाई। इसके बाद इनकी ही देखरेख में महाराष्ट्र में चुनाव लड़ा गया।
3. कैलाश विजयवर्गीय – राष्ट्रीय महासचिव
कैलाश विजयवर्गीय को अमित शाह की कोर टीम का हिस्सा माना जाता है। यही वजह है कि उन्हें मध्य प्रदेश सहित पांचों राज्यों के पॉलिटिकल फीडबैक विंग की कमान सौंपी गई है। राज्यों के राजनीतिक घटनाक्रमों की जानकारी जुटाने के साथ-साथ योग्य उम्मीदवारों के चयन में भी विजयवर्गीय की भूमिका रहेगी। यह विंग केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह की निगरानी में काम कर रही है।

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