5 years of lockdown, did not get the status of martyr nor 50 | पांच साल में न तो आर्थिक सहायता मिली, न नौकरी: कोरोना ड्यूटी में जान गंवाने वाले कर्मचारियों के परिजन बोले- केवल आश्वासन मिला – Madhya Pradesh News

.
ये कहना है भोपाल के रहने वाले श्रवण शर्मा का। श्रवण की पत्नी रजनी भोपाल नगर निगम के जोन नंबर 9 में सफाई कर्मचारी थीं। वह कोरोना के समय भी अपनी ड्यूटी पर तैनात थी। इसी दौरान कोरोना की चपेट में आने से रजनी की मौत हो गई। ये केवल रजनी की कहानी नहीं है।
दरअसल, कोरोना काल में मप्र सरकार ने मुख्यमंत्री कोविड-19 योद्धा कल्याण’ योजना शुरू की थी। इसके तहत कोरोना में ड्यूटी के दौरान सरकारी कर्मचारियों की मौत पर आर्थिक सहायता का ऐलान किया था। मगर, इस योजना का फायदा चुनिंदा कर्मचारियों को ही मिला। कुछ कर्मचारियों के परिजन को तो कोर्ट के दखल के बाद आर्थिक सहायता मिली।
24 मार्च 2020 को देश में पहला लॉकडाउन घोषित किया गया गया था। कोविड-19 के पांच साल पूरे होने पर भास्कर ने ऐसे कर्मचारियों के परिजन से बात की जिनकी कोविड में ड्यूटी के दौरान मौत हो गई, मगर उन्हें आज तक आर्थिक सहायता नहीं मिली। पढ़िए रिपोर्ट…
चार केस से समझिए कैसे सरकार ने कोविड योद्धाओं को भुला दिया
केस1: अधिकारी बोले- कोविड में ड्यूटी ही नहीं लगी थी भोपाल के हमीदिया अस्पताल में सर्जरी डिपार्टमेंट में ओपीडी संभालने वाले राजेंद्र सिंह ठाकुर का 8 अक्टूबर 2021 में निधन हो गया था। उनके बेटे निशांत कहते हैं कि कोविड से पहले पापा अक्सर हमीदिया में आने वाले बेसहारा मरीजों की मदद करते थे। कोविड के दौरान भी वो बिना नागा किए अस्पताल जाते थे।
28 सितंबर कोविड की दूसरी लहर में वो पॉजिटिव हो गए। उन्हें हमीदिया अस्पताल में ही एडमिट किया था। उनका ऑक्सीजन लेवल लगातार गिर गया। जब हालत बिगड़ी तो बाजार से रेमडेसिविर का डोज भी दिया, मगर हालत में सुधार नहीं हुआ। उनके निधन के बाद हमने मुख्यमंत्री कोविड-19 योद्धा कल्याण योजना में आर्थिक सहायता के बारे में पता किया।
हमें बताया गया कि इंश्योरेंस कंपनी के जरिए राहत राशि मिलेगी। जब कंपनी ने जब दस्तावेज मांगे तो हमीदिया के अधिकारियों ने कहा कि उनकी ड्यूटी तो कोविड में थी ही नहीं। ये हमारे लिए बहुत बड़ा झटका था। पापा मरीजों के इतने पास थे कि इन्फेक्शन से बचना मुश्किल था, लेकिन उन्होंने कभी अपने काम को टालने की कोशिश नहीं की।

केस2: अधिकारियों के चक्कर काटे, मगर मदद नहीं मिली रजनी शर्मा भोपाल नगर निगम के जोन नंबर 9 के वार्ड 38 में सफाईकर्मी थीं। रजनी अप्रैल 2021 में कोरोना की चपेट में आई और 19 अप्रैल को उनकी मौत हो गई। रजनी के पति श्रवण बताते हैं- रजनी कोरोना काल में भी अपनी ड्यूटी बखूबी कर रही थी। वह बताती थी कि कई लोगों का घर पर ही इलाज चल रहा है। कोरोना घर-घर तक पहुंच गया है।
उसकी बातों से हमें डर लगता था, लेकिन वह रोज अपने काम पर निकल जाती थी। कोरोना की पहली लहर जैसे-तैसे गुजर गई, लेकिन दूसरी लहर में काम करने के दौरान वह संक्रमित हो गई थी। उसकी हालत बेहद खराब हो गई थी। एक प्राइवेट अस्पताल में उसे भर्ती कराया। वहां भी हालत में सुधार नहीं हुआ। वह ऑक्सीजन सपोर्ट पर थी।
19 अप्रैल 2021 को अस्पताल की ऑक्सीजन सप्लाई अचानक बंद हो गई। उस दिन एक साथ 19 लोगों की मौत हुई थी। उसमें रजनी भी शामिल थी। श्रवण कहते हैं कि पहले तो डॉक्टरों ने कोविड से मौत का सर्टिफिकेट ही नहीं दिया। दफ्तरों के चक्कर काटे तब सर्टिफिकेट मिला। सरकार से उम्मीद थी कि आर्थिक सहायता मिलेगी जिसे बच्चों को सहारा मिलेगा, लेकिन हमारा इंतजार खत्म ही नहीं हुआ।

केस3: आंदोलन हुआ तो 10 हजार रुपए की आर्थिक सहायता मिली ग्वालियर की रहने वाली संध्या राठौर नर्स थीं। कोविड के दौरान सरकार ने उन्हें एग्रीमेंट के आधार पर ज्वॉइनिंग दी थी। संध्या की बड़ी बहन वंदना बताती हैं, वह पहले से नौकरी कर रही थी। हमने उसे नौकरी जॉइन करने के लिए मना किया था। मगर, उसने कहा- अभी मौका है, देश के काम नहीं आएंगे तो कब आएंगे?
संध्या ने हजीरा सिविल अस्पताल में सेवाएं देनी शुरू की। जैसे–जैसे केस बढ़ते गए उस पर काम का दबाव भी बढ़ता गया। वह 15 से 16 घंटे नौकरी करती और कुछ देर के लिए घर आती तो भी मास्क पहने रहती। पहली लहर तो निकल गई, लेकिन 2021 में दूसरी लहर में वह संक्रमित हो गई।
28 जून को ड्यूटी के दौरान उसे सांस लेने में दिक्कत होने लगी तो उसे भर्ती कराया गया, लेकिन उसकी हालत बिगड़ चुकी थी। 29 जून को वह हमसे बिछुड़ गई। मेरी छोटी बहन ने एक साल से अधिक समय तक कोविड मरीजों की सेवा की। जब डेथ सर्टिफिकेट मिला तो लिखा गया कार्डिएक अरेस्ट।
संध्या की मौत पर काफी हंगामा हुआ, साथियों ने प्रदर्शन किया सोशल मीडिया पर भी विरोध दर्ज कराया। इतने के बाद अधिकारियों ने कहा कि संध्या की मौत पर आपको 10 हजार रुपए की आर्थिक सहायता दी जा सकती है। यह केवल संध्या का अपमान नहीं था, बल्कि जान हथेली पर रखकर उसने जो कोविड मरीजों की सेवा की थी उसका भी अपमान था।

केस4: अंतिम संस्कार में राजकीय सम्मान, लेकिन आर्थिक सहायता नहीं दी मुरैना निवासी रामकुमार शर्मा कुश्ती के राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी थे और एसएएफ की पांचवीं बटालियन मुरैना में तैनात थे। पिछले कई सालों से वे जनरल ड्यूटी कर रहे थे। रामकुमार के बेटे रमाकांत बताते हैं- उन्हें कोरोना में सोशल डिस्टेंसिंग और अन्य नियमों का पालन कराने के लिए गेट पर तैनात कर दिया गया था।
कोरोना संक्रमण के मामले बढ़ते गए तो बटालियन के बाकी कर्मचारी घर से काम करने लगे, लेकिन पिताजी गेट ड्यूटी पर डटे रहे। चार महीने से अधिक की ड्यूटी के बीच वे लगातार कई लोगों के संपर्क में आ रहे थे। आखिर में इसी ड्यूटी के दौरान वे खुद संक्रमित हो गए। 9 सितंबर को ड्यूटी के दौरान उनकी तबीयत बिगड़ी तो उन्हें जिला चिकित्सालय में भर्ती कराया गया।
हालत बिगड़ने पर वहां से उन्हें भोपाल रेफर किया गया। भोपाल के प्राइवेट मेडिकल कॉलेज में उनका इलाज हुआ, लेकिन हालत में सुधार नहीं हुआ और 14 सितंबर को उनकी मौत हो गई। अस्पताल ने मौत की वजह कोविड और निमोनिया बताई थी। उनके अंतिम संस्कार में गॉर्ड ऑफ ऑनर दिया गया।
कुछ महीनों बाद हमने कोविड 19 योद्धा के तहत आवेदन किया। अधिकारियों ने यह कहकर प्रकरण खारिज कर दिया कि वे कोविड ड्यूटी ही नहीं कर रहे थे।

अनुबंधित कर्मचारियों को सम्मान तक नहीं मिला कोविड संक्रमण से निपटने के लिए सरकार ने 4 हजार अनुबंधित कर्मचारियों की सेवाएं ली थीं। इनसे दो साल तक कोविड की ड्यूटी कराई गई। साल 2022 में जैसे ही कोविड खत्म हुआ सरकार ने इनका एग्रीमेंट भी खत्म कर दिया। इन कर्मचारियों के हक की लड़ाई लड़ रहे डॉ. अंकित असाटी कहते हैं कि इन कर्मचारियों की तो कोई चर्चा ही नहीं करता।
जब ज्यादातर लोग सामने आने से बच रहे थे, तब इन युवाओं ने आगे बढ़कर अपनी जान जोखिम में डाली। दिन-रात ड्यूटी की। असाटी कहते हैं कि सरकार की तरफ से आश्वासन मिला था कि अनुबंधित कर्मचारियों को कोविड योद्धा माना जाएगा। मगर, कोरोना योद्धा होने के नाते इन्हें सम्मान पत्र तक नहीं मिला।

जीतू पटवारी बोले- सरकार को दायित्व पूरा करना चाहिए कोरोना योद्धाओं को योजना का फायदा नहीं मिला। इसे लेकर विपक्ष ने भी कई बार सरकार को घेरने की कोशिश की है। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी कहते हैं कि जब मानवता पर खतरा मंडराया तो सरकारी कर्मचारियों ने जो काम किया उसे भुलाया नहीं जा सकता।
सरकार ने योजना लाकर कर्मचारियों को आश्वासन दिया था, लेकिन घोषणा पर अमल नहीं किया। सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि मुसीबत में साथ देने वालों के हितों की रक्षा करें। इसके बजाय उन्हें अनदेखा किया गया। ये धोखा है।

Source link