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Success Story: PMT Fail ने खड़ी कर दी इंडिया की टॉप कंपनी, डॉक्टर नहीं बन पाईं.. पर बना रहीं कैंसर की दवा

जबलपुर. सपना डॉक्टर बनने का थी, पर PMT में फेल हो गई. पापा बोले… बेटी अब टीचर बन जाओ… लेकिन बेटी ने हार नहीं मानी. मेडिकल क्षेत्र की एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी कर ली. बाद में खुद का स्टार्टअप शुरू किया और अब दो बड़ी कंपनी की मालकिन है. इनमें से एक कंपनी कैंसर की दवा बनाती है. जी हां, ये कहानी जबलपुर की प्रसिद्ध महिला उद्यमी नीति भारद्वाज की है.

नीति की सक्सेस स्टोरी किसी फिल्म से कम नहीं. शहर से 25 किलोमीटर औद्योगिक केंद्र उमरिया डुंगरिया में नीति ने अपनी दुनिया बसा रखी है. रेवाक्योर लाइफ साइंसेज कंपनी की लैब में जब लोकल 18 की टीम पहुंची तो नीति ने अपने जीवन के संघर्ष की दास्तां सुनाई, जिसे जानकर यकीनन आपको भी प्रेरणा मिलेगी. ये कहानी उन युवाओं के लिए भी प्रेरणा है, जो फेल होने पर निराश हो जाते हैं. तो जानिए… नीति की असफलता से सफलता तक की कहानी.

12वीं में मेरिट पर पीएमटी में Fail
नीति भारद्वाज ने बताया कि बचपन से ही डॉक्टर बनने का शौक था. साइंस लेकर 12वीं की तक पढ़ाई की. मेरिट में आई. इसके बाद प्री मेडिकल टेस्ट का एंट्रेंस दिया. लेकिन फेल हो गई. करियर का डर सताने लगा. इसी दौरान ग्रेजुएशन के लिए आगे पढ़ाई शुरू की. केमिस्ट्री से ग्रेजुएशन पूरा किया. पिता चाहते थे पीएचडी की पढ़ाई कर मेडिकल फील्ड में बेटी टीचर बने. लेकिन, मुझे रास नहीं आया, क्योंकि स्टार्टअप करने की जिद थी.

स्टार्टअप करने के पहले अनुभव लेना जरूरी
आगे बताया, धीरे-धीरे उम्र बढ़ रही थी. स्टार्टअप शुरू करने के पहले खुद को काबिल बनाना था. मेडिकल फील्ड में ट्रेनिंग की. शिद्दत से काम सीखा. लेकिन, जिस कंपनी में ट्रेनिंग की, उस कंपनी में लड़कियों को ज्यादा प्राथमिकता नहीं दी जाती थी. बावजूद इसके इंटरव्यू दिया और घर आ गई. बाद में कंपनी में सिलेक्शन हो गया. बतौर ऑफिसर 6 साल अपनी कंपनी समझकर काम किया. इस दौरान अनुभव आ गया था.

परिवार ने कर दी शादी, फिर दिल्ली शिफ्ट
नीति ने बताया, 6 साल कंपनी में काम करने के बाद मेरी शादी हो गई. 2 से 3 साल का गैप हो गया. बच्चा छोटा था. इसी दौरान पति का ट्रांसफर दिल्ली हो गया, जिसके चलते फैमिली के साथ दिल्ली शिफ्ट होना पड़ा. इसके बाद फिर से शुरुआत की. लेकिन, इस बार कंसलटेंट बनना था, क्योंकि कंसलटेंट की बात सभी मानते हैं. जर्मन कंसल्टेंसी कंपनी थी, वहां जाकर ट्राई किया. कंपनी में अप्लाई किया और सिलेक्शन हो गया. ज्वाइन करने के कुछ साल बाद कंपनी को किसी दूसरी कंपनी ने हायर कर लिया.

दोस्तों ने किया पुश, शुरू हुआ सिलसिला
इस दौरान मेरे कंपनी के दोस्तों ने कहा, आप अच्छा काम करती हो, खुद का काम भी कर सकती हो. यदि आप काम करेंगी. तब हम आपके साथ काम करेंगे. इसके बाद से ही मेरा स्टार्टअप का सिलसिला शुरू हुआ. फिर मैंने तुरंत ही कंपनी को छोड़ दिया और उसी तरीके की कंसल्टिंग कंपनी को 2009 में शुरू की. अब इस कंपनी को 15 साल हो चुके हैं. जहां इंडिया की टॉप थ्री कंसल्टिंग कंपनी में हमारा नाम शामिल है. हमारी कंपनी फार्मा कंपनियों के डिजाइनिंग, ऑडिट और प्रोजेक्ट बनाने का काम करती है.

अपनों को देख कैंसर के लिए खोली दूसरी कंपनी
नीति ने आगे बताया, कजिन भाई और दोस्त को कैंसर हो चुका है. जब भी हॉस्पिटल जाती थी, तब कैंसर को लेकर और कैंसर के बारे में सोच कर बहुत अजीब लगता था. इसके बाद पार्टनरशिप में कैंसर के लिए काम करना शुरू किया और दूसरी कंपनी 2015 में मध्यप्रदेश के जबलपुर में शुरू की. जो फार्मा की मैन्युफैक्चरिंग कंपनी है, जिसमें कैंसर की दवा के लिए काम किया जाता है. कैंसर के कीमोथेरेपी में उपयोग होता है. इतना ही नहीं, नीति ने बताया कि कोविड के दौरान ब्लैक फंगस का ट्रीटमेंट एमपी में सबसे पहले हमारी कंपनी ने शुरू किया था, जिसे सीएम के हाथों सम्मानित किया गया था.

कभी खुद थे वर्कर, अब 200 से अधिक को रोजगार
नीति ने कहा, पहले मैं खुद वर्कर थी, लेकिन हमारी कंपनी ने 200 से अधिक लोगों को रोजगार देने का काम किया है. हमारी कंपनियों में वह साथी भी काम करने के लिए उत्सुक हैं, जिनके साथ पहले हमने काम किया है. कॉलेज के टीचर्स भी कैंपस के लिए छात्रों को कंपनियों में भेजते हैं. यह उपलब्धि देखकर बहुत अच्छा लगता है. उन्होंने बताया कि जबलपुर में 40 फ़ीसदी से ज्यादा महिलाएं काम करती हैं, जिसके पीछे का उद्देश्य महिला को सशक्त करना है. क्योंकि वर्क करने के दौरान मैंने पाया कि पुरुषों को अधिकतर कंपनियां ज्यादा तवज्जो देती हैं.

1994 में शुरू किया था काम, साढ़े 3 हजार मिलते थे
नीति ने बताया, 1994 में पहली जॉब की थी. इस दौरान साढ़े 3 हजार रुपये मेहनताना मिला करता था. स्टार्टअप को लेकर उन्होंने कहा ग्रोथ एकदम से नहीं होती है, ग्रोथ धीरे-धीरे ही होती है. आजकल के नौजवानों को लगता है पैसा जादू है… पैसा एकदम से आ जाता है. लेकिन, इसके पीछे मेहनत लगती है. उन्होंने बताया कि स्टार्टअप करना रिस्क जरूर है. क्योंकि, इसमें एक बार में पूरी कमाई लग जाती है. मैंने अपनी नौकरी का सारा पैसा स्टार्टअप में लगाया था. कोविड के दौरान लग रहा था, अब नहीं हो पाएगा. लेकिन, बिना रिस्क के कोई भी काम नहीं हो सकता. सफलता भले ही देर से मिले, लेकिन मिलती जरूर है.

मेहनत और अच्छा इंटेंशन के मायने
यदि किसी भी कार्य को मेहनत और अच्छे इंटेंशन से किया जाए, तब काम पूरा और सफल होता है. मेरी इस सक्सेस के पीछे सभी लोगों का हाथ रहा है… मेरे कार्य से कई लोग प्रभावित होते गए और मुझसे जुड़ते गए. जिनसे बहुत कुछ सीखने का मौका मिला, क्योंकि अच्छे काम करने के कारण अच्छे लोग खुद ही जुड़ते जाते हैं. इसके लिए मन में संकल्प होना जरूरी है.

Tags: Jabalpur news, Local18, Success Story


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एडवोकेट अरविन्द जैन

संपादक, बुंदेलखंड समाचार अधिमान्य पत्रकार मध्यप्रदेश शासन

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