Hanuman Janmotsav 2023:दमोह में हैं बजरंगबली के दो चमत्कारी धाम, जहां सबकी मनोकामनाएं पूरी करते हैं हनुमान – Visit Famous Hanuman Temples Of Damoh District On Hanuman Janmotsav

हनुमान जी को कलयुग का प्रत्यक्ष देवता कहा जाता है। उनके पूजन-अर्चन से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। मध्यप्रदेश में संकट मोचन हनुमान के कई प्रसिद्ध मंदिर मौजूद हैं। आइए आज हनुमान जन्मोत्सव के अवसर पर आपको प्रदेश के कुछ ऐसे ही दिव्य मंदिरों के दर्शन कराते हैं।
दोनी गांव का प्रसिद्ध हनुमान मंदिर
दमोह जिले के तेंदूखेड़ा ब्लॉक के दोनी गांव में हनुमान जी का एक प्राचीन मंदिर है। यहां विराजमान भगवान की प्रतिमा का एक पैर पाताल तक गया है, जिसका अंतिम छोर किसी को नहीं मिला। वहीं, दूसरा पैर ऊपर है। कहते हैं इस दर पर आने वाले हर भक्त की मनोकामना बजरंगबली पूरी करते हैं। यहीं वजह है जिलेभर के लोग इस मंदिर में हनुमान जी की पूजा-अर्चना करने पहुंचते हैं। प्रतिमा की स्थापना किसने कराई इसकी सटीक जानकारी नहीं मिलती। हालांकि गांव के बुजुर्गों का कहना है कि हनुमान जी की प्रतिमा अपने आप जमीन से निकालकर पेड़ के नीचे स्थापित हो गई थी। बाद में भक्तों और ग्रामीणों के सहयोग से राशि एकत्रित करके मंदिर का निर्माण कराया, लेकिन पेड़ आज भी मंदिर के बीच से निकला हुआ है। ग्रामीणों के अनुसार मंदिर निर्माण के समय छत डाली गई, लेकिन वह गिर गई इसलिए बाद में चारों और से दीवार उठाई गईं और पेड़ को सुरक्षित छोड़कर ही मंदिर का निर्माण किया गया।
पाताल तक है हनुमान जी का पैर
हनुमान जी का एक पैर जमीन में और दूसरा पैर पाताल में है, जिसकी खोज कई बार हुई, लेकिन पैर की गहराई कम नहीं हुई। यहां सच्चे मन से जो मन्नत मांगी जाती है। वह पूरी होती है। मंदिर के पीछे एक बावड़ी है जिसकी गहराई 15 फीट है, लेकिन उसका पानी कभी खत्म नहीं होता। ग्रामीणों का कहना हैं जितना बावड़ी से पानी निकलता है उतना ही उसमें अचानक आ जाता है। जब गर्मियों के दिनों में चारों ओर अकाल पड़ जाता है। उस समय आस-पास के कई गांवों के लोग इसी बावड़ी से पानी लेकर जाते हैं। ग्रामीणों का मानना है कि हनुमान जी की कृपा से इस बावड़ी में सालभर पानी भरा रहता है।
इमला वाले हनुमान
दमोह-छतरपुर मार्ग पर बटियागढ़ ब्लॉक के बकायन गांव में इमला वाले हनुमान जी का प्रसिद्ध मंदिर है। हनुमानजी की प्रतिमा इमली के पेड़ के नीचे खुदाई में मिली थी, इसलिए इन्हें इमला वाले हनुमान कहा जाने लगा। यहां मांगी गई मनोकामना पूरी होने पर कपूर की आरती कराई जाती है। कहते हैं यहां पांच मंगलवार हाजरी लगाने से लोगों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इमला वाले हनुमानजी के दर्शन करने पूरे प्रदेश से श्रद्धालु आते हैं और अपनी मनोकामना पूरी होने पर कपूर की आरती करवाते हैं। हनुमान जन्मोत्सव पर 125 किलो कपूर से हनुमानजी की आरती की जाएगी। मंगलवार और शनिवार को भगवान को झंडा और चोला चढ़ाने की परंपरा है।
250 साल पुरानी है प्रतिमा
बताया जाता है कि इमला वाले हनुमान की प्रतिमा 250 साल पुरानी है। गांव के बड़े बुजुर्ग बताते हैं कि यहां पहले श्मशानघाट हुआ करता था, जहां बड़ी संख्या में खजूर और इमली के पेड़ लगे थे। यहां एक संत महाजनदास आए थे। रात में उन्होंने यहां विश्राम किया। तब उन्हें एक सपना आया कि यहां एक हनुमान जी की मूर्ति है। सुबह होते ही संत ने यह बात ग्रामीणों को बताई और इमली के पेड़ के नीचे खुदाई करने पर हनुमान जी की प्रतिमा निकली, जिसे यहां विराजमान किया गया और तभी से यह स्थान इमला वाले हनुमान मंदिर के रूप में पहचाना जाने लगा। इस स्थान के बारे में कहा जाता है कि कई साल पहले माफीदार के यहां एक पुत्र ने जन्म लिया था, जिसके पैर पीछे थे। तब उसने हनुमान जी से विनती की कि उसके बेटे के पैरे सीधे हो जाएं। जैसे ही माफीदार घर पहुंचा उसके बेटे के पैर सीधे मिले, तभी से यह स्थान चमत्कारी माना जाने लगा। इसके बाद यहां सुंदरकांड, भजन, कीर्तन शुरू हो गया और कपूर आरती भी तभी से प्रारंभ हुई। कहते हैं मंदिर में कपूर आरती करने का सिलसिला करीब 110 वर्षों से जारी है।
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