कृष्ण कथा से हुई 48 वें खजुराहो नृत्योत्सव की शुरुआत

खजुराहो। 48 वें खजुराहो नृत्य समारोह की शुरुआत स्व.पं.बिरजू महाराज की शिष्या शास्वती सेन तथा ममता महाराज के मार्गदर्शन में दिल्ली स्थित कलाश्रम के शिष्यगणों द्वारा कथक समूह नृत्य से की गई। कार्यक्रम का शुभारंभ मप्र के राज्यपाल मंगूभाई पटेल, पर्यटन मंत्री ऊषा ठाकुर, जिले के प्रभारी मंत्री ओमप्रकाश सखलेचा, भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष एवं सांसद वीडी शर्मा, पर्यटन एवं संस्कृति मंत्रालय के सचिव शिवशेखर शुक्ला, संस्कृति विभाग की संचालक अदिति कुमार त्रिपाठी, कार्यक्रम प्रभारी तथा उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत एवं कला अकादमी के उपनिदेशक राहुल रस्तोगी, छतरपुर कलेक्टर संदीप जी आर, एसपी सचिन शर्मा सहित अनेक गणमान्य नागरिकों की उपस्थिति में हुआ। शुभारंभ में अतिथियों ने दीप प्रज्जवलित कर इस 48वें आयोजन का आगाज किया। तदोपरांत संस्कृति विभाग के प्रमुख सचिव शिवशेखर शुक्ला ने स्वागत भाषण देकर अतिथियों का स्वागत किया और कहा कि आने वाले समय में समारोह को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ले जाया जाएगा। इस दौरान वीपी धनंजयन, उनकी पत्नि डॉ. शांता एवं सुनैना हजारी को राष्ट्रीय कालीदास सम्मान से सम्मानित किया गया। आयोजन की शुरूआत कंदरिया महादेव तथा देवी जगदम्बी के बीच बने मंच पर कृष्ण कथा से हुई जिसमें भगवान कृष्ण की पूजा आराधना का नृत्य भजन प्रस्तुत हुआ। नृत्य के माध्यम से मंदिर काल में कथा, पुराण कहने वाले कथाकारों से कथक नृत्य की उत्पत्ति को दर्शाया गया, जिसे स्व.पंडित बिरजू महाराज ने स्वयं लिखा और अपनी आवाज में गाया। इसके बाद होली आई रे की प्रस्तुति हुई जिसमें रंगों के त्यौहार होली पर्व को नृत्य के माध्यम से दर्शाया गया। इसके बाद राजमहल में होने वाले कथक नृत्य के माध्यम से दादरे,शोहरे लय और ताल का समावेश देखने मिला।इसके बाद आज की दूसरी प्रस्तुति में देश-विदेश में कई पुरुस्कारों से सम्मानित तथा इस वर्ष के कालीदास सम्मान से सम्मानित प्रसिद्ध नृत्य साधक वी.पी.धनंजय ने अपनी पत्नी डॉ.शांता के शिष्यगणों द्वारा भरतनाट्यम समूह नृत्य प्रस्तुत किया। पहली प्रस्तुति कालिदास का कुमार संभव रचना के माध्यम से नृत्यांगना शोभना बालचन्द्र, दिव्या, शिवदास, श्रीनिवास सहित अन्य नर्तक तथा नृत्यांगनाओं द्वारा दी गई। इसके बाद दीपांजलि की प्रस्तुति में वंदेमातरम प्रस्तुत किया गया। तदोपरांत भगवान विष्णु को समर्पित दशावतार की प्रस्तुति हुई जिसमें भगवान विष्णु के दशावतारों को नृत्य के माध्यम से दर्शाया गया। इसके बाद भगवान शिव माता पार्वती का विवाह उपरांत पहले मिलन को नृत्य शिल्प के माध्यम से दिखाया गया।